रविवार, 11 अक्तूबर 2009

इन्टरनेट आरटीआई का दिल


इन्टरनेट आरटीआई का दिल है, यह बात किसी आईटी प्रोफेसनल या इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर द्वारा अथवा ईमेल सेवा प्रदाता कंपनी ने नहीं कही। बल्कि ऐसे शख्स श्री वजाहत हबीबुल्लाह ने कही, जो न केवल पूर्व नौकरषाह है बल्कि वर्तमान में केन्द्रीय सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त हैं। जिस कार्यक्रम में मुख्य सूचना आयुक्त ने दिल की बात दिल से जोड़कर कही। उस कार्यक्रम में मध्यप्रदेश और छग के प्रतिनिधि के रूप में मैं भी मौजूद था। कार्यक्रम था इन्टरनेट पर केन्द्रित आईनेट देहली 2009 जिसका आयोजन 17 सितम्बर 2009 को इन्टरनेट सोसायटी (आईसाॅक) तथा डिजीटल इंपावरमेंट फांउडेषन (डीईएफ) ने किया था। भारत के मुख्य सूचना आयुक्त की टिप्पणी देष की राजधानी के समाचार पत्रों में अगले दिन नदारत थी। टीवी चैनलों व 24 घंटे के खबरिया चैनलों में दिखना तो दूर की बात रही। यद्यपि मैं इन्टरनेट मीडिया से पिछले कई वर्षो से जुड़ा हूं। इसलिए मुख्य सूचना आयुक्त श्री हबीबुल्लाह की टिप्पणी पर मेरा ध्यान ठहर गया। मैंने कार्यक्रम में आये भारत के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों व अन्य देषों से आये विषय विषेषज्ञों से आरटीआई को इन्टरनेट के जरिए प्रोत्साहित करने की बात षिद्दत के साथ कही। अब सवाल उठता है कि आरटीआई इन्टरनेट का हदृय है या नहीं। यह तो समय बतायेगा। अलबत्ता मैं यहां बताना न केवल समीचीन समझता हूं बल्कि प्रासांगिक भी है कि लखनऊ में साॅल्यूषन एक्सचेंज का डीसेन्ट्रलाइजेषन कम्यूनिटी पर केन्द्रित वार्षिक फोरम 22 से 24 अक्टूबर 2009 को होने जा रहा है। जिसमें आरटीआई पर विषेषज्ञों से पेपर आमंत्रित किए गए हैं। यूएनडीपी समर्थित संस्था साॅल्यूषन एक्सचेंज के भारत में 18 हजार सदस्य हैं तथा 30 हजार पाठक। आरटीआई के असर से अच्छे-अच्छे प्रभावषाली तक भय खाने लगे हैं। आरटीआई के जरिए सूचना क्रांति लाने के उपक्रम की कड़ी में सीडेक हैदराबाद द्वारा एक ई-लर्निंग कोर्स प्रारंभ किया गया, जबकि कार्मिक लोक षिकायत एवं पेंषन मंत्रालय, कार्मिक और प्रषिक्षण विभाग भारत सरकार द्वारा आरटीआई को बढ़ावा देने के लिए एक आनलाइन ई-डिग्री कोर्स प्रारंभ किया गया है। इस कोर्स के प्रति लोगों में जागरूकता देखी गई है। कुछ मीडिया की व बड़ी संस्थाओं ने आरटीआई पर केन्द्रित अवार्ड भी स्थापित किए हैं। ये उदाहरण इस बात के द्योतक हैं कि आरटीआई शनैः शनैः अपनी जड़े मजबूत करता जा रहा है। कितना कारगर है सूचना का अधिकार यानि आरटीआई। सूचना का अधिकार को स्वतंत्र भारत में एक क्रांतिकारी बदलाव की तरह देखा गया है, ऐसी मान्यता रही है कि यह कानून जनता के हाथ में एक ऐसा औजार रहेगा जो सरकार को या सरकार से अनुदान प्राप्त संस्थाओं और आरटीआई के दायरे में आने वालों को कठघरे में उसे जवाबदेय और पारदर्षी होने पर मजबूर करता है। इससे सरकारी कामकाज में क्या पारदर्षिता आयी है और क्या लोग अपने आपको ज्यादा ताकतवर महसूस करते है सरकारी तंत्र के सामने? रेखांकित करने लायक बात यह है कि पूरी दुनिया में सूचना की आजादी के आंदोलनों ने भारत में भी इसकी जरूरत प्रमाणित की थी। हालांकि यह माना जाता रहा है कि भारत के संविधान की धारा 19(1)(क) में जानने का अधिकार भी निहित है। इसमें कहा गया है कि सभी नागरिकों को वाक्-स्वातंत्र्य एवं अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का अधिकार होगा। इस प्रावधान की व्यापक व्याख्या की गयी है। संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का कहीं अलग से उल्लेख नहीं है। हर नागरिक के लिए प्रदत्त इस स्वतंत्रता में ही प्रेस की स्वंतत्रता को भी अंतर्निहित माना गया है। इसी तरह, सूचना के अधिकार को भी इसका अनिवार्य अंग बताया गया है। इंडियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स बनाम भारत संघ 1985, एसीसी 641 मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नागरिकों को सरकार के संचालन-संबंधी सूचनाओं के विषय में जानने का अधिकार है।सूचना का अधिकार यानि सबसे प्रभावी अधिकारः यह कानून नागरिकों को, संसद और राज्य विधानमण्डल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार प्रदान करता है। इसके अनुसार, वैसी सूचना जिसे संसद अथवा राज्य विधानमण्डल को देने से इन्कार नहीं किया जा सकता, उसे किसी आमजन को भी देने से इंकार नहीं किया जा सकता।आरटीआई के अंतर्गत जानकारी लेने के लिए आवेदक को जरूरी शुल्क, जिस नाम से व जिस रूप में जमा करना हो, उसका विवरण ई-मेल के माध्यम से भेजना, ई-मेल से भेजे आवेदन की प्राप्ति तिथि वह मानी जाएगी, जिस तारीख को आवेदक ने आवश्यक शुल्क जमा किया हो, सूचना के अधिकार कानून- 2005 के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदक से शुल्क लिये जाने का प्रावधान है। सूचना प्राप्त करने के इच्छुक आवेदकों को आवेदन-पत्र के साथ 10 रुपये का शुल्क भुगतान करना होगा। इसे लोक प्राधिकारी के लेखा पदाधिकारी के नाम से बने बैंक ड्राफ्ट या बैंकर चेक या भारतीय पोस्टल ऑर्डर के रूप में या नकद रूप में जमा किया जा सकता है, आवेदन शुल्क नकद जमा करने की स्थिति में उससे संबंधित रसीद अवश्य प्राप्त कर लें। सूचना से क्या तात्पर्य है ? सूचना का मतलब है- रिकार्डों, दस्तावेजों, ज्ञापनों, ई-मेल, विचार, सलाह, प्रेस विज्ञप्तियाँ, परिपत्र, आदेश, लॉग पुस्तिकाएँ, निविदा, टिप्पणियाँ, पत्र, उदाहरण, नमूने, आँकड़े सहित कोई भी सामग्री, जो किसी भी रूप में उपलब्ध हों। साथ ही, वह सूचना जो किसी भी निजी निकाय से संबंधित हो, किसी लोक प्राधिकारी के द्वारा उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून के अंतर्गत प्राप्त किया जा सकता है, बसर्ते कि उसमें फाईल नोटिंग शामिल नहीं हो। सूचना के अधिकार का क्या अर्थ है ? सूचना अधिकार से तात्पर्य है- कार्यों, दस्तावेजों, रिकार्डों का निरीक्षण, दस्तावेजों या रिकार्डों की प्रस्तावनाध्सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना, सामग्री का प्रमाणित नमूने लेना, प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लॉपी, टेपों, वीडियो कैसेटों के रूप में या कोई अन्य ईलेक्ट्रॉनिक रूप में जानकारी प्राप्त करना। सूचना का अधिकार में जिन सूचनाओं को आम जनता को उपलब्ध कराने की मनाही है। साथ ही, यह कानून केन्द्र सरकार के अंतर्गत कार्यरत कुछ संगठनों को सूचना उपलब्ध नहीं कराने की छूट देता है अर्थात् इन संगठनों से संबंधित सूचना माँगे जाने की स्थिति में लोक सूचना अधिकारी आवेदन को अस्वीकार कर सकते हैं। ये संगठन हैं अन्वेषण ब्यूरो, अनुसंधान और विश्लेषण विंग, राजस्व आसूचना निदेशालय, केन्द्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, नार्कोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो, वैमानिक अनुसंधान केन्द्र, विशेष सीमान्त बल, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, असम राइफल्स, विशेष सेवा ब्यूरो, विशेष शाखा (सी.आई.डी), अंडमान व निकोबार, अपराध शाखा (सी.आई.डी)-सी.बी, दादरा नागर हवेली, विशेष शाखा लक्षद्बीप पुलिस। ऐसी सूचना जिसके प्रकाशन से भारत की स्वतंत्रता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, कार्य योजना, वैज्ञानिक या आर्थिक हित प्रभावित होता हो, विदेशी संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हों या जो अपराध के लिए लोगों को उत्तेजित करता हों। सूचना जिसे किसी भी न्यायालय या खण्डपीठ द्वारा प्रकाशित किए जाने से रोका गया हो या जिसके प्रदर्शन से न्यायालय के आदेश का उल्लंघन होता है, जिसके प्रकाशन से संसद या राज्य विधानमंडल के विशेषाधिकार प्रभावित होते हों। वाणिज्यिक गोपनीयता, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक संपदा से संबंधित सूचना, जिसके प्रकाशन से तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्धात्मक स्तर को क्षति पहुँचने की संभावना हों, जब तक कि सक्षम प्राधिकरी इस बात से संतुष्ट नहीं हो जाते कि ऐसी सूचना का प्रकाशन जनहित में है, ऐसी सूचना, जिसे विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त की गई हो, सूचना, जिसके प्रदर्शन से किसी व्यक्ति की जिन्दगी या शारीरिक सुरक्षा को खतरा हो या कानून के कार्यान्वयन या सुरक्षा उद्देश्यों के लिए विश्वास में दी गई सूचना या सहायता हो, सूचना जिससे अपराधी की जाँच करने या उसे हिरासत में लेने या उस पर मुकदमा चलाने में बाधा उत्पन्न हो सकती हो। मंत्रिपरिषद्, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श से संबंधित मंत्रिमंडल के दस्तावेज,ऐसी सूचना जो किसी व्यक्ति के निजी जिंदगी से संबंधित हो और उसका संबंध किसी नागरिक हित से नहीं हो और उसके प्रकाशन से किसी व्यक्ति के निजी जिंदगी की गोपनीयता भंग होती हो, वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग, 2006 ने तो इस कानून को निरस्त कर देने का सुझाव दिया है।आरटीआई में आईसीटी का उपयोग क्यों नहीं?शासकीय कामकाज में पारदर्षिता और सूचना के अधिकार के लिए दुनियाभर में विभिन्न रूपों में मांग उठी, लेकिन सबसे पहले स्वीडेन देष ने 243 साल पहले सूचना अधिकार लागू किया था। जबकि भारत में सूचना का अधिकार 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ। 15 जून 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन। हिन्दुस्तान में 12 अक्टूबर 2009 को सूचना के अधिकार के अधिनियम के चार वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। आरटीआई के बारे में हिन्दुस्तान के हर नागरिक को मालूम होना चाहिए। इसके लिये सरकारी और अन्य स्तरों पर प्रचार-प्रसार के लिये अभियान चालू होना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को सूचना के अधिकार को षिक्षा के पाठ्यक्रम में भी शामिल करना चाहिए। आरटीआई कानून में जनमानस के लिये एक बहुत बड़ा प्रावधान यह है कि कोई भी व्यक्ति आरटीआई से संबंधित जानकारी ईमेल के जरिए भी प्राप्त कर सकता है। इंटरनेट के द्वारा जानकारी लेने का यह माध्यम सबसे सस्ता और प्रभावी है इसमें पैसे और समय की बचत के साथ-साथ आवेदनकर्ता के लिए समयसीमा का कोई बंधन नहीं है। न ही किसी सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाने की जरूरत है। व्यक्ति अपने घर से किसी भी समय आवेदन कर सकता है। आमजन ने इस माध्यम को अपना लिया तो देष में सूचना प्राप्त करने की एक बड़ी क्रांति का सूत्रपात होगा। भारत में इन्टरनेट की उपलब्धता के बारे में एक तथ्य यह भी है कि भारत सरकार के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो अगस्त 2009 तक भारत में 64 लाख से अधिक ब्राडबैंड कनेक्षन उपलब्ध कराये गये हैं। देष के सभी ढ़ाई लाख ग्राम पंचायतों में सन् 2012 तक ब्राडबैंड इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराई जायेगी। अभी 30 हजार ग्राम पंचायतों को ब्राडबैंड से जोड़ दिया गया है। भारत में निजी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों द्वारा भी लाखों की संख्या में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। अभी भारत में सात करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर हैं। भारत में लगभग सभी महानगरों के शाॅपिंग माॅल, तीन सितारा और पांच सितारा होटलों, कैफे, एयरपोर्ट, कार्पोरेट कार्यालयों, आईटी इंडस्ट्री से जुड़ी हुई संस्थाओं के कार्यालयों के साथ-साथ कुछ प्रमुख सार्वजनिक स्थानों पर फिलवक्त इंटरनेट की सुविधा वाय-फाय के माध्यम से निषुल्क उपलब्ध कराई जा रही है। शीघ्र ही रेल मंत्रालय टेªनों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करायेगा। सभी टेªनों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कैसे जल्द से जल्द प्रारंभ हो इस गरज से रेल मंत्रालय ने ताने-बाने बुन लिये हैं। बहरहाल 2005 से लेकर मतलब 2009 तक बीते इन वर्षो के दौरान आरटीआई को लेकर आम जन में जो भी प्रतिक्रिया, जागरूकता और उत्साह देखा गया हो। यह बात अलहदा है। लेकिन जिस तकनीकी यानि संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से इस कानून को घर-घर में पहुंचाने में न केवल मदद मिलती बल्कि आरटीआई कानून की सार्थकता भी सिद्ध होती। प्रष्न यह है कि फिर इस तकनीक को क्यों अमल में नहीं लाया गया। साथ ही इसके प्रचार-प्रसार के लिये अभियान क्यों नहीं छेड़ा गया। इसके पीछे जानकार अनेक कारण बता रहे हैं। हाॅं, यदि इंफारमेषन कम्यूनिकेषन टेक्नालाॅजी यानि आईसीटी का आरटीआई में उपयोग ज्यादा से ज्यादा सरकारी व अन्य स्तरों पर होता, तो आज इसके परिणाम अलग दिखते। वैसे आरटीआई अभी शैष्वकाल में है। खैर, विलंब से ही सही यदि इसके उपयोग की शुरूआत हो तो भारत में न केवल भ्रष्टाचार में अंकुष लगेगा। बल्कि इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। आरटीआई कानून का प्रचार-प्रसार व लोगों को इस कानून के तहत आईसीटी के जरिए लाभ लेने के बारें में जब केन्द्रीय सूचना आयुक्त एमएल शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी अदान-प्रदान करने को लेकर हालही में एक साफ्टवेयर विकसित किया गया है। जो शीघ्र काम करने लगेगा। तदोपरांत द्वितीय अपील के आवेदन आनलाइन स्वीकार हो सकेंगे। अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है कि किसी भी आवेदनकर्ता ने उनके कार्यालय से ईमेल के माध्यम से पत्राचार किया हो। वैसे इस पर भी विचार किया जा रहा है कि आरटीआई के अंतर्गत जमा होने वाली फीस क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी प्राप्त की जाए। यह सच है कि कुछ हद तक केन्द्रीय सूचना आयोग व राज्य सूचना आयोग तथा केन्द्र और राज्यों की सरकारों ने आरटीआई कानून के बारे में जनमानस को व स्वयंसेवी संगठनों को जागरूक किया है। लेकिन जो सबसे सस्ता और प्रभावी सब जगह और हर समय असरकारी होने वाली विधि आईसीटी से मिली है। उस पर विषेष ध्यान नहीं दिया गया है। यह विचारणीय प्रष्न है। आरटीआई में आईसीटी के उपयोग के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए अभियान नहीं चलाया गया है। आयोगों ने अपने स्तर पर इस तरह का कोई प्रयास भी नहीं किया है। वैसे आरटीआई के प्रचार-प्रसार करने का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकारों का है। फिलहाल आरटीआई के संबंध में काॅल सेंटर के माध्यम से आवेदन स्वीकार करने की परंपरा अभी भारत में नहीं है। साथ ही वीडियों काॅंफ्रेंसिंग के जरिए भी प्रकरणों की सुनवाई न के बराबर हो रही है। ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने से संबंधित जब पत्राचार ईमेल के माध्यम से होने लगेगा। तो काफी समस्याओं का समाधान कम खर्च पर समय पर हो सकेगा। साथ ही नतीजे भी बेहतर आयेंगे। आरटीआई के कुछ कर्ताधर्ताओं ने स्वयं स्वीकार किया है कि वे इंटरनेट या कम्प्यूटर सेवी नहीं है। इंटरनेट और कम्प्यूटर के आरटीआई में इस्तेमाल को लेकर एक आयुक्त ने साफगोई से स्वीकार किया था कि उनकी ईमेल खोलने में रूचि नहीं है। अब देखना यह है कि आरटीआई को आमजन तक पहुंचाने में सबसे सस्ते माध्यम आईसीटी का उपयोग बढ़ाने के लिए सरकारें व जानकार आगे आते हैं अथवा नहीं। आरटीआई का इंटरनेट दिल है। इस शब्द की रक्षा और सार्थकता तब सिद्ध होगी जब आरटीआई से जुड़े इन सवालों पर विषेष ध्यान दिया जाएगा। मसलन- आरटीआई के तहत आने वाली षिकायतों का समाधान वीडियों क्रांफेंसिंग के जरिए होना चाहिए। काॅल सेंटर के माध्यम से आरटीआई के आवेदन स्वीकार होना चाहिए। ई-मेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने की संस्कृति विकसित होना चाहिए। के्रडिट कार्ड के माध्यम से आरटीआई के अंतर्गत ली जानी वाली फीस का भुगतान स्वीकार किया जाना चाहिए। शासन स्तर पर आईसीटी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए साथ आरटीआई के कार्य में संलग्न अधिकारियों को आईसीटी के बारे में प्रषिक्षित किया जाना चाहिए। भारत के हर नागरिक को षिक्षा के अधिकार की तरह आरटीआई के अधिकार के बारे मंे जागरूक बनाना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को यथा संभव पाठ्यक्रमों में आरटीआई को शामिल किया जाना चाहिए।
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सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

मप्र के मुख्यमंत्री श्री चैहान और राज्य के अफसरों का अक्टूबर माह बैठकों के नाम रहेगा

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान और राज्य के अधिकारियों का अक्टूबर माह बैठकों के नाम रहेगा। माह अक्टूबर मुख्यमंत्री और अफसरों के नाम इसलिए रहेगा, क्योंकि इस माह मुख्यमंत्री की अक्टूबर माह के शुरूआत से ही मैराथन बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। मुख्यमंत्री ने इसकी शुरूआत सोमवार 5 अक्टूबर 2009 को प्रशासन अकादेमी भोपाल में दो दिवसीय मंथन-2009 कार्यशाला का शुभारंभ से की है। श्री चैहान 6 अक्टूबर को भी प्रषासन अकादमी में हो रही मंथन बैठक में मौजूद रहेंगे। कार्यशाला में मंत्रिपरिषद के सदस्यों सहित प्रमुख सचिव, सचिव, विभागाध्यक्ष, संभाग आयुक्त, जिला कलेक्टर, जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी और अन्य विकास और निर्माण विभागों के अधिकारियों सहित करीब 200 अधिकारी भाग ले रहे हैं।
मुख्यमंत्री श्री चैहान माह के प्रथम मंगलवार को वीडियों कांफ्रेंसिंग आधारित कार्यक्रम समाधान आॅनलाइन में कलेक्टर, एसपी सहित विभिन्न अधिकारियों से रूबरू होते हैं। मौके पर ही मुख्यमंत्री आमजन की समस्या का समाधान करते हैं। मुख्यमंत्री श्री चैहान माह के प्रथम मंगलवार को समाधान आॅनलाइन में उपस्थित नहीं रहेंगे। इसलिए वे माह के द्वितीय मंगलवार यानि 13 अक्टूबर को समाधान आॅनलाइन में आमजन की समस्याओं का समाधान करेंगे। इस दौरान वे राज्य के अधिकारियों से रूबरू होंगे तथा आवष्यक निर्देष भी देंगे।
मुख्यमंत्री श्री चैहान प्रत्येक माह के तीसरे गुरूवार को परख कार्यक्रम के दौरान प्रदेष के समस्त अधिकारियों से बातचीत करते हैं। इस दौरान वे अधिकारियों को निर्देष भी देते हैं। इस बार का परख कार्यक्रम 22 अक्टूबर गुरूवार को विंध्याचल भवन स्थित एनआईसी के कांफ्रंेस हाॅल में होगा। परख कार्यक्रम मूलभूत सुविधाओं, सेवाओं की प्रबंधन प्रणाली है। इस कार्यक्रम में प्रत्येक ग्राम से मासिक जानकारी एकत्रित की जाती है। परख कार्यक्रम ग्राम शालाएं, स्वास्थ्य, कृषि पट्टा, वृद्धावस्था सामाजिक सुरक्षा पेंषन, छात्रावास, आश्रम, हैंडपंप, ट्रांसफार्मर, शालाओं, अस्पतालों, आंगनवाड़ियों, उचित मूल्य की दुकानों का संचालन, कृषि एवं पषु सेवाओं का रियलटी चेक है। परख के अंतर्गत राज्य के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं, सेवाओं के संबंध में आॅनलाइन षिकायत दर्ज करने की सुविधा है। प्रतिमाह नोडल अधिकारी द्वारा प्रदेष के ग्राम भ्रमण कर मूलभूत सुविधाओं और सेवाओं का सत्यापन एवं समस्याओं का चिन्हांकन करते है। नागरिकों द्वारा दर्ज एवं नोडल अधिकारी द्वारा चिन्हांकन समस्याओं के निराकरण के अनुश्रवण की संपूर्ण प्रक्रिया आॅनलाइन है।
समस्याओं के निराकरण के लिए चार स्तरों पर नियमित रूप से माॅनिटरिंग होती है। शासन स्तर पर मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और सचिव, संभाग स्तर पर संभागायुक्त, जिला स्तर पर कलेक्टर और अनुविभाग स्तर पर अनुविभागीय अधिकारी द्वारा माॅनिटरिंग की जाती है। मुख्यमंत्री द्वारा अधिकारियों से निरंतर बातचीत करने का यह सिलसिला लम्बे समय से चल रहा है। लिहाजा अधिकारी वर्ग उनसे रूबरू होने से पहले पूरी तैयारी करता है। तब मुख्यमंत्री के समक्ष उपस्थित होते हैं।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री सहित प्रदेष के समस्त अधिकारियों के लिए अक्टूबर माह बैठकों के नाम इसलिए रहेगा, क्योंकि 5 एवं 6 अक्टूबर को मंथन बैठक को आयोजन हो रहा है, इसके बाद 13 अक्टूबर को मुख्यमंत्री समाधान आॅनलाइन में अधिकारियों से रूबरू होंगे, तदोपरांत 22 अक्टूबर को मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान परख कार्यक्रम के दौरान सीधे बातचीत करेंगे। मुख्यमंत्री इस दौरान अधिकारियों को आवष्यक निर्देष भी देंगे। कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री व प्रदेष के अधिकारियों का माह अक्टूबर बैठकों के नाम रहेगा।

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

गूगल के सर्च इंजन में जी की जगह गांधीजी यानि गूगल की गांधीगिरी

मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं
आज दो अक्टूबर है और देर रात से गूगल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चित्र ग्राफिक्स में बना हुआ। दर्शको को देखने के लिए मिला। प्रसिद्ध इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने बापू को अपना जी यानि गूगल के पहले शब्द जी के स्थान पर गांधी जी का चित्र बनाया है। इसलिए कहा जा सकता है कि गूगल भी भारत में जड़े जमाने के लिए गांधी जी के नाम का न केवल उपयोग कर रहा है, बल्कि गांधीगिरी अपना रहा है। टेलीविजन चैनलों पर भी आज महात्मा गांधी को सजाया व बेचा जाएगा। भोपाल, दिल्ली और मुंबई में गांधी जी पर केन्द्रित फिल्मों का प्रदर्शन किया गया।
भोपाल में 11 फिल्मों का प्रदर्शन आज से प्रारंभ हुआ। ये फिल्में मार्केट से अलग हैं। कुछ न्यूज चैनलों ने गांधी के जीवन पर कुछ विशेष कार्यक्रम भी बनाये हैं। दो अक्टूबर के दिन मीडिया के लोग गांधीनुमा व्यक्तियों की तलाश करते हैं। कुछ बुर्जुग गांधीवादी व्यक्तियों की इस दिन मांग बढ़ जाती है। दो अक्टूबर के दिन गांधी जी की समाधी पर व उनकी मूर्तियों पर माल्र्यापण कर लोग इतिश्री कर लेते हैं। लेकिन इस रस्म अदायगी में कोई भी पीछे नहीं रहता है। भारत में गांधी जी के प्रति प्रेम को देखकर गैर भारतीय इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने गांधी जी को अपने सर्च इंजन के माध्यम से न केवल दर्शको को लुभाने की कोशिश की है बल्कि गांधी जी के प्रति अपनी आस्था और प्रेम का इजहार करने का प्रयास किया है। गांधी जी ने हमेशा यह संदेश दिया है कि बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो।
रेखांकित करने योग्य बात यह है कि जो वर्ग गांधीजी के विचारों से व उनके द्वारा बताए गए मार्ग से अलग होता जा रहा है। उस वर्ग के बीच में गांधीजी की जयंती यानि दो अक्टूबर के दिन गूगल ने कम से कम यह तो कर दिखाया है कि लोग दो अक्टूबर के दिन गांधीजी को याद करें, उनको विस्मृत करने जैसे उपक्रम से बचाये रखने का सराहनीय प्रयास किया है। यह बात अलग है कि गूगल के सर्च इंजन पर गांधीजी के चित्र को देखकर कितने लोग खुश हुए, ओर कितने लोग मायूस। अलबत्ता गूगल के सर्च इंजन पर पूरी दुनिया में जिस गति से लोग जाते हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि करोड़ों लोगों के मनमस्तिष्क पर गांधीजी ने एक बार फिर गूगल के माध्यम से अपना परचम फहराया है। दो अक्टूबर के दिन ही सही करोड़ों लोगों को गूगल के जरिए गांधीजी याद आए।
गांधी जयंती के अवसर पर प्रासांगिक और सामयिक कविता यहां प्रस्तुत है-
मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं
बचपन में पाठ्य पुस्तक में एक कविता पढ़ी थी, “मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं।” कविता में एक बच्चा मां से गांधी जी के जैसी वस्तुएं दिलवाने की मनुहार करता है ताकि वह भी उन्हें लेकर गांधी जी जैसा दिख सके। उसमें गांधी जी की मशहूर घड़ी का जिक्र था। गांधी जी घड़ी हाथ में नहीं बांधते थे, कमर में लटकाते थे। “घड़ी कमर में लटकाऊंगा”
तब बाल मन के लिए गांधी जी आदर्श थे, उनकी तरह कमर में घड़ी बांधने की उत्सुकता होती
थी। आज वही घड़ी तस्वीर में देखने को मिल रही है क्योंकि उसकी अमेरिका में नीलामी हुई
है। क्या आपको वह पूरी कविता और लेखक का नाम याद है?
कविता कुछ इस प्रकार थी-
मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं
सब मित्रों के बीच बैठ कर रघुपति राघव गांऊ
घड़ी कमर में लटकाऊंगा सैर सवेरे कर आऊंगा
मुझे श्ई की पोनी दे दे
तकली खूब चलाऊं
मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

आरटीआई में आईसीटी का उपयोग क्यों नहीं?

शासकीय कामकाज में पारदर्शिता और सूचना के अधिकार के लिए दुनियाभर में विभिन्न रूपों में मांग उठी, लेकिन सबसे पहले स्वीडेन देश ने 243 साल पहले सूचना अधिकार लागू किया था। जबकि भारत में सूचना का अधिकार 15 जून 2005 को लागू हुआ है।
आरटीआई के बारे में हिन्दुस्तान के हर नागरिक को मालूम होना चाहिए। इसके लिये सरकारी और अन्य स्तरों पर प्रचार-प्रसार के लिये अभियान चालू होना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को सूचना के अधिकार को शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी शामिल करना चाहिए। आरटीआई कानून में जनमानस के लिये एक बहुत बड़ा प्रावधान यह है कि कोई भी व्यक्ति आरटीआई से संबंधित जानकारी ईमेल के जरिए भी प्राप्त कर सकता है। इसका प्रावधान आरटीआई में भी है।
इंटरनेट के द्वारा जानकारी लेने का यह माध्यम सबसे सस्ता और प्रभावी है इसमें पैसे और समय की बचत के साथ-साथ आवेदनकर्ता के लिए समयसीमा का कोई बंधन नहीं है। न ही किसी सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाने की जरूरत है। व्यक्ति अपने घर से किसी भी समय आवेदन कर सकता है। आमजन ने इस माध्यम को अपना लिया तो देश में एक सूचना प्राप्त करने की एक बड़ी क्रांति होगी।
भारत में सरकारी स्तर पर कुछ संस्थाओं ने आरटीआई के आनलाइन सर्टिफिकेट ई-कोर्स व ई-लर्निंग कोर्स भी शुरू किए हैं।यह अधिनियम जम्मू-कष्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू है। इस अधिनियम के दायरे में भारत सरकार के अन्वेषण ब्यूरो और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के अलावा एक दर्जन से अधिक विभाग नहीं आते हैं। सूचना का मतलब है ईमेल, रिकार्डो, दस्तावेजो, ज्ञापनों, विचार, सलाह, परिपत्र, प्रेस विज्ञप्तियां, निविदा, टिप्पणियां, आदेश, लाॅग पुस्तिकाएं, पत्र, उदाहरण, नमूने, आंकड़े सहित कोई भी सामग्री जो किसी भी रूप में उपलब्ध हो, साथ ही वह सूचना जो किसी भी निजी निकाय से संबंध हो, किसी लोक प्राधिकारी के द्वारा उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून के तहत प्राप्त किया जा सकता है बषर्ते उसमें फाइल नोटिंग शामिल नहीं हो।
2005 से लेकर मतलब 2009 तक बीते इन पांच वर्षो के दौरान आरटीआई को लेकर आम जन में जो भी प्रतिक्रिया, जागरूकता और उत्साह देखा गया हो। यह बात अलहदा है। लेकिन जिस तकनीकी यानि संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से इस कानून को घर-घर में पहुंचाने में न केवल मदद मिलती बल्कि आरटीआई कानून की सार्थकता भी सिद्ध होती। अब सवाल उठता है कि इस तकनीक को क्यों? अमल में नहीं लाया गया। साथ ही इसके प्रचार-प्रसार के लिये अभियान क्यों नहीं छेड़ा गया। इसके पीछे जानकार अनेक कारण बता रहे हैं। हाॅं, यदि इंफारमेशन कम्यूनिकेशन टेक्नालाजी यानि आईसीटी का आरटीआई में उपयोग ज्यादा से ज्यादा सरकारी व अन्य स्तरों पर होता, तो आज इसके परिणाम अलग दिखते।
खैर, विलंब से ही सही यदि इसके उपयोग की शुरूआत हो तो भारत में न केवल भ्रष्टाचार में अंकुश लगेगा। बल्कि इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। आरटीआई कानून का प्रचार-प्रसार व लोगों को इस कानून के तहत आईसीटी के जरिए लाभ लेने के बारें में जब केन्द्रीय सूचना आयुक्त एमएल शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी अदान-प्रदान करने को लेकर हालही में एक साफ्टवेयर विकसित किया गया है। जो तीन चार सप्ताह पश्चात काम करने लगेगा। तदोपरांत द्वितीय अपील के आवेदन आनलाइन स्वीकार हो सकेंगे। उन्होंने बताया कि उनकी जानकारी में अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है कि किसी भी आवेदनकर्ता ने उनके कार्यालय से ईमेल के माध्यम से पत्राचार किया हो। उन्होंने बताया कि इस पर भी विचार किया जा रहा है कि आरटीआई के अंतर्गत जमा होने वाली फीस क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी प्राप्त की जाए। केन्द्रीय सूचना आयोग व राज्य सूचना आयोग तथा केन्द्र और राज्यों की सरकारों ने आरटीआई कानून के बारे में जनमानस को व स्वयंसेवी संगठनों को जागरूक किया है। लेकिन जो सबसे सस्ता और प्रभावी हर समय असरकारी होने वाली विधि आईसीटी से मिली है। उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। यह विचारणीय प्रश्न है।
श्री शर्मा ने एक सवाल के जवाब में बताया कि आरटीआई में आईसीटी के उपयोग के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए अभियान नहीं चलाया गया है। आयोग ने अपने स्तर पर इस तरह का कोई प्रयास भी नहीं किया है। उन्होंने कहा कि आरटीआई के प्रचार-प्रसार करने का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकारों का है।
श्री शर्मा का कहना है कि आरटीआई के संबंध में काल सेंटर के माध्यम से आवेदन स्वीकार करने की परंपरा अभी भारत में नहीं है। साथ ही वीडियों कांफ्रेंसिंग के जरिए भी प्रकरणों की सुनवाई न के बराबर हो रही है। उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने से संबंधित जब पत्राचार ईमेल के माध्यम से होने लगेगा। तो काफी समस्याओं को समाधान कम खर्च में परिणाम मूलक सामने आएगा।
श्री शर्मा ने स्वयं स्वीकार किया है कि वे इंटरनेट या कम्प्यूटर सेवी नहीं है। कुछ समय पूर्व जब दूसरे सूचना आयुक्त श्री केजरीवाल से इंटरनेट और कम्प्यूटर के आरटीआई में इस्तेमाल को लेकर बातचीत की थी तो उन्होंने भी साफगोई से स्वीकार किया था कि उनकी ईमेल खोलने में रूचि नहीं है। अब देखना यह है कि आरटीआई को आमजन तक पहुंचाने में सबसे सस्ते माध्यम आईसीटी का उपयोग बढ़ाने के लिए सरकारें व जानकार आगे आते हैं अथवा नहीं।
आरटीआई से जुड़े कुछ सवाल -
· आरटीआई के तहत आने वाली शिकायतों का समाधान वीडियों क्रांफेंसिंग के जरिए होना चाहिए।
· काल सेंटर के माध्यम से आरटीआई के आवेदन स्वीकार होना चाहिए।
· ई-मेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने की संस्कृति विकसित होना चाहिए।
· क्रेडिट कार्ड के माध्यम से आरटीआई के अंतर्गत ली जानी वाली फीस का भुगतान स्वीकार किया जाना चाहिए।
· शासन स्तर पर आईसीटी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए साथ आरटीआई के कार्य में संलग्न अधिकारियों को आईसीटी के बारे में प्रषिक्षित किया जाना चाहिए।
· भारत के हर नागरिक को षिक्षा के अधिकार की तरह आरटीआई के अधिकार के बारे में जागरूक बनाना चाहिए।
· केन्द्र और राज्य सरकारों को यथा संभव पाठ्यक्रमों में आरटीआई को शामिल किया जाना चाहिए।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

40 साल का हुआ इंटरनेट


इंटरनेट आज 40 साल का हो गया है। जी हां आज से 40 साल पहले इंटरनेट का आविष्कार किया गया था। 'ई-मेल' और 'चौटिंग' के जरिए हम पलक झपकते ही अपने दोस्तों से बात करने लगते हैं, कोई भी जानकारी चाहिए तो गूगल पर जाकर 'सर्च' करते हैं। वाकई इंटरनेट की खोज ने पत्र-व्यवहार के सारे मायने ही बदल दिए हैं। चालीस साल पहले लेली जी.रॉबर्ट ने इंटरनेट का आविष्कार करने में मदद की थी। उन्होंने दो कम्प्यूटरों को 15 फुट के तार से जोड़कर एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर को संदेश भेजे थे। तब से लेकर आज तक का लम्बा सफर कम्प्यूटर ने सफलतापूर्वक तय किया है।
इंटरनेट की बुनियाद तो 1969 में पड़ गई थी मगर हम जिस 'ई-मेल' का इस्तेमाल करते हैं उसकी खोज 1972 में हुई थी और जिस श् यानि 'वर्ल्ड वाइड वेब' के जरिए इंटरनेट पर वेबसाइट बनाई जाती है उसे 1990 में टिम बर्नस ली ने ईजाद किया था। यानि हम जिस गूगल, फेसबुक, याहू या रेडिफ का इस्तेमाल करते हैं वो टिम बर्नस ली की खोज के बाद ही सम्भव हो पाया है।आज भारत इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है। लेकिन तमाम विकास के बाबजूद अभी मजह 60 प्रतिशत लोग ही इसका इस्तेमाल करते हैं। चीन में हमसे कई गुना ज्यादा लोग इंटरनेट का इस्तेमाल कर रहें हैं। कुछ देश इंटरनेट का इस्तेमाल हथियार की तरह करते हैं।
लेन क्लेनरॉक अपने बीस साथियों के साथ जब अपनी प्रयोगशाला में दो कंप्यूटरों के बीच डेटा ट्रांसफर करने की कोशिश कर रहे थे तब उन्होंने ये नहीं सोचा था कि उनकी ये शुरूआत एक दिन दुनिया भर के करोड़ों लोगों के निजी और सामाजिक जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन जाएगी।
2 सितंबर 1969 को कैलिफोनिया विश्वविद्यालय की प्रयोगशाला में पहली बार 15 मीटर लंबी केबल द्वारा दो कंप्यूटरों के बीच डेटा का आदान-प्रदान हुआ जिसे इंटरनेट कहा गया। अनुसंधानकर्ता मुक्त जानकारी के लिए सुविधा की खोज करने की कोशिश कर रहे थे और उन्हें इसमें सफलता हाथ लगी इंटरनेट के रूप में। 1971 में टीसीपी और आईपी प्रोटोकॉल बनने के बाद ईमेल की शुरूआत हुई। सबसे पहले अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाली कंपनी 'बोल्ट बेरानेक एंड न्यूमैन' (बीबीएन) के कंप्यूटर इंजीनियर रहे रे. टॉमलिनसन ने वर्ष 1971 में ईमेल का इस्तेमाल किया। 1983 में डोमेन की शुरूआत हुई और वेबसाइट्स बनने लगीं।
ईमेल का उपयोग पहले तो औपचारिक आवश्यकताओं के लिए किया जाता था लेकिन अब ये आम जिंदगी की जरूरत बन गया है। ईमेल के बाद उसका एक त्वरित रूप आया चौटिंग। युवाओं में चौटिंग आज की एक आम आदत बन गई है। लगातार चौटिंग करने की प्रवृत्तिा के चलते कई युवा इसके आदि भी बन जाते हैं। ऑनलाइन बातचीत की दुनिया में पिछले कुछ सालों में एक और नाम जुड़ गया है सोशल नेटवर्किंग। फेसबुक, टि्वटर, ऑरकुट जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स युवाओं में खासी लोकप्रिय है। आज शायद ही कोई ऐसा युवा होगा जिसका इनमें से किसी साइट पर अकाउंट न हो।
आज गूगल की सर्च में 1 खरब से ज्यादा वेबसाइटों के नाम सूचीबध्द हैं। आलम ये है कि अगर आप हर पेज को देखने के लिए एक मिनट लगाते हैं तो उपलब्ध वेबसाइटों की संख्या आपको 31 हजार वर्षों तक व्यस्त रख सकती है, वो भी बिना सोए। इतना ही नहीं आपको वेब पर दी गई सामग्री पढ़ने के लिए 600 हजार दशक के समय की जरूरत होगी। है ना कमाल!!
आज विश्व की जनसंख्या लगभग 6 अरब 70 करोड़ है। इसका मतलब विश्व में प्रत्येक व्यक्ति के लिए 150 वेब पेज उपलब्ध हैं।
वर्ष दर वर्ष दुनिया भर में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस वर्ष विश्व की ऑनलाइन जनसंख्या में पिछले वर्ष की तुलना में 16 प्रतिशत की वृध्दि दर्ज की गई है। आज दुनिया में लगभग 1 अरब 46 करोड़ लोग इंटरनेट का उपयोग करते हैं।
एक ओर इंटरनेट संपर्कों और संबंधों का तानाबाना बुन रहा है तो दूसरी ओर इसके दुरूपयोग से होने वाले दुष्प्रभावों से भी हम बच नहीं पाए हैं। सायबर अपराधों में हर रोज बढ़ाेतरी हो रही है। हैकिंग, स्पैमिंग और फिशिंग जैसे कारनामों से परेशान होने वाले यूजर्स की आज कमी नहीं है। मजे की बात तो ये है कि जब तक एक वायरस से बचने के लिए एंटीवायरस सॉफ्टवेयर तैयार किया जाता है तब तक हैकर्स दूसरा वायरस तैयार कर लोगों के बैंक अकाउंट और क्रेडिट कार्ड नंबर तक में सेंधमारी कर जाते हैं। सायबर अपराधों के जरिए अश्लीलता फैलाने वालों को बढ़ावा मिल रहा है। हाल ही में इंटरनेट सुरक्षा कंपनी नॉर्टन ने 100 सबसे खतरनाक और अश्लील वेबसाइटों की सूची जारी की है।

दस साल का हुआ ब्लॉग

यदि अंग्रेजी, हिंदी और अन्य भाषाओं में ऑनलाइन अभिव्यक्ति के माध्यमों की बात की जाए तो जिस एक शब्द पर सबकी निगाहें रुकती है, वह ब्लॉग है। वर्ष 1999 में पीटर मर्होल्ज नाम के एक व्यक्ति ने इस शब्द का इजाद किया था।
पीटर ने वी ब्लॉग के नाम से एक निजी वेबसाइट को ब्लॉग की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया था और बाद में इसमें से वी को हटा दिया। यही वजह है कि वर्ष 2009 इस शुरुआत के 10 साल पूरे होने का गवाह बन रहा है।
वर्ष 1999 ब्लॉग जगत के लिए कई अर्थो में अहम है। इसी साल सैन फ्रांसिस्को की पियारा लैब्स ने वी ब्लॉग से आगे बढ़कर एक से अधिक लोगों को लिखने की सुविधा देना शुरू किया। जब लोगों की संख्या बढ़ी तो मार्च 1999 में ब्रैड फिजपेट्रिक ने श्लाइव जर्नलश् का निर्माण किया, जो ब्लॉगरों को होस्टिंग की सुविधा देती थी।
इन दस सालों में ब्लॉग ने पूरी दुनिया में हर खासो आम को चपेट में ले लिया। वर्ष 2003 में जब ब्लॉग शब्द चार साल का हुआ तो दो और बड़ी घटनाएं हुई, जिससे ब्लॉगिंग को व्यापक विस्तार मिल गया। इस संबंध में विस्फोट डॉट कॉम ने टिप्पणी की है, इस साल ओपेन सोर्स ब्लॉगिंग प्लेटफार्म वर्डप्रेस का जन्म हुआ और पियारा लैब्स की ब्लॉगर को गूगल ने खरीद लिया।
विस्फोट डॉट कॉम ने टिप्पणी की, पियारा लैब्स के ब्लॉगर को खरीदने के बाद ब्लॉगस्पॉट को गूगल ने अपनी सेवाओं का हिस्सा बना लिया और दुनिया की उन सभी भाषाओं में ब्लाॉगग की सुविधा दे दी, जिसमें वह खोज सेवाएं प्रदान कर रहा है। उधर वर्डप्रेस ने ब्लॉगस्पॉट को कड़ी टक्कर दी और देखते-देखते वर्डप्रेस ब्लॉगिंग का सबसे बड़ा प्लेटफार्म बन गया।
अभिव्यक्ति के इस मजबूत माध्यम से दुनिया भर में हर रोज बड़ी संख्या में लोग जुड़ते जा रहे है। टेक्नारॉटी द्वारा वर्ष 2008 में जारी आंकड़ों के हिसाब से पूरी दुनिया में ब्लॉगरों की संख्या 13.3 करोड़ पहुंच गई है। भारत में लगभग 32 लाख लोग ब्लॉगिंग कर रहे है। हिंदी में भी ब्लॉग ने काफी तेजी से विकास किया है और वर्डप्रेस व जुमला नामक मुफ्त सॉफ्टवेयर के कारण बहुत सारे ब्लॉगर अपनी-अपनी वेबसाइट तैयार करने लगे है
इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की नई परिभाषा गढ़ रहे ब्लॉग जगत में लोगों को अपार संभावनाएं दिखती है। कहा जा रहा है कि यदि पिछले दस साल ब्लॉग के उत्थान के साल रहे है तो अगले दस साल ब्लॉग में बदलाव के साल होंगे।
ऐसे बनाएं ब्लाँग
ब्लॉग बनाने के लिए ई-मेल एकाउंट होना जरूरी है। मसलन जीमेल पर एकाउंट है तो ब्लॉगर डॉट कॉम पर जाएं और वहां अपना जीमेल आईडी लिख दें। दूसरे चरण में ब्लॉग का नाम रजिस्टर कर दें। इसके बाद ब्लॉग टाइट पूछा जाएगा जिसकी उपलब्धता देखकर ब्लॉग टाइटल चुन लें। इसके बाद ब्लॉग का डिजाइन चुनने के लिए टेम्पलेट मिलेंगे, इसमें से किसी एक टेम्पलेट को चुन लें, बस आपका ब्लॉग तैयार हो गया। इसके बाद यूआरएल में ब्लॉगटाइटल टाइप कर दें। इसके बाद साइन इन करने पर आपका ब्लॉग ओपन हो जाएगा। इसके बाद आप नई पोस्ट लिख सकते हैं। अगर हिन्दी में ब्लॉग लिखना चाहते हैं तो यूनीकोड फॉन्ट होना चाहिए। सेटिंग्स और कमेंट्स में जाकर अन्य लोगो को ब्लॉग में लिखने के लिए आमंत्रित कर सकते हैं। हिन्दी में सक्रिय ब्लॉग देष में दस हजार, भारत में अंग्रेजी ब्लॉग लगभग एक लाख, पूरे विष्व में ब्लॉग सात करोड़।

गुरुवार, 3 सितंबर 2009

मीडिया विशेषज्ञों ने मल्टीमीडिया पर विचार रखे, पत्रकार श्री नगेले वर्तमान समय में वेबजर्नलिज्म विषय पर बोले

मीडिया प्रबंधन पर तीन दिवसीय कार्यशाला का समापन
दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय में आयोजित तीन दिवसीय मीडिया प्रबंधन कार्यशाला का एक सितम्बर मंगलवार को समापन हुआ। कार्यशाला के अंतिम दिन एक्सप्रेस न्यूज के संपादक व ईएमएस के कार्यकारी अधिकारी सनत जैन ने ''इलेक्ट्रानिक मीडिया और वर्तमान समय'' विषय पर बोले हुए कहा कि मीडिया की प्रकृति गिरगिट से भी तेज है। जो अपना स्वरूप बहुत ही प्रभावशाली ढ़ंग से बदलती है। उन्होंने कहा कि मीडिया भारत में मनुष्य के पीछे पीछे चल रहा है। मीडिया ने जनमानस के हर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति सुनिश्चित कर ली है। उन्होंने मोबाईल क्रांति का जिक्र करते हुए बताया कि इसके अनेक लाभ हैं।
कार्यशाला में ''वर्तमान समय में वेब जर्नलिज्म'' विषय पर न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट के संपादक सरमन नगेले ने बोलते हुए कहा कि मीडिया पांच प्रकार का है। पहला प्रिंट मीडिया, इसके बाद दूसरे रूप में आया रेडियो, तीसरा मीडिया दूरदर्षन, आकाशवाणी और सरकारी पत्र-पत्रिकाओं को माना गया है, जबकि चौथा मीडिया इलेक्ट्रानिक मीडिया यानि टीवी चैनल हैं और अब पांचवे मीडिया का तेजी के साथ पर्दापण हुआ है वह है इंटरनेट मीडिया जिसको न्यू मीडिया के रूप में भी जाना जाता है। इस मीडिया का उद्भव आईटी और इंटरनेट से हुआ है।
स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति का सबसे बड़ा कारगर साधन है वेब जर्नलिज्म। उन्होंने वेब जर्नलिज्म के गुण-दोष के बारे में अपने वक्तव्य की शुरूआत की। उन्होंने बताया कि कोई भी व्यक्ति अपनी भावनाओं को बिना शुल्क के ब्लाग के माध्यम से कुछ क्षणों में पूरी दुनिया में व्यक्त कर सकते हैं। कम अनुभवी पत्रकार भी वेब जर्नलिज्म कर रहे हैं। सिटीजन आधारित वेबसाइटस्, ब्लाग, या अन्य वेबसाइट में जो कम अनुभवी पत्रकारों द्वारा संचालित की जाती है। उनमें आम तौर पर तथ्यों की व प्रषासनीक, सामाजिक, भौगोलिक व राजनैतिक समझ की भारी कमी देखी जाती है।
उन्होंने वेब जर्नलिज्म के विभिन्न प्रकारों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि वैसे वेब जर्नलिज्म मुख्य रूप से न्यूज पोर्टल और समाचार वेबसाइट के माध्यम से तथा इससे जुड़कर की जाती है। सोशलनेटवर्किंग साइट्स फेसबुक, टिवटर, यूटयूब और ऑरकूट, ब्लागस, फॉरम, मेलर सेवा, सिटीजन जर्नलिज्म आधारित वेबसाइट भी वेब जर्नलिज्म का हिस्सा है। खेती किसानी व किसानों के हितों में भी काम करने की गुंजाइष इस क्षेत्र में व्यापक है। साइबर क्राइम जर्नलिज्म वेब जर्नलिज्म का ही अंग है।
उन्होंने कहा कि यहां यह बताना न केवल समीचीन होगा बल्कि प्रासांगिक भी है कि हाल ही में भारत में लोकसभा के आम चुनाव संपन्न हुए हैं। इस चुनाव में लगभग सभी राजनैतिक दलों ने वोटरों को लुभाने के लिए सर्वाधिक सहारा इंटरनेट आधारित ब्लाग, वेबसाइट और यूटयूब, ईमेल का लिया है।
उन्होंने चर्चा की कि आम तौर पर ऐसा कहा जाता है कि सूचना का मुक्त प्रसार करने में न्यू मीडिया यानि इंटरनेट मीडिया का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ब्लाग और सिटीजन आधारित वेबसाइट के जरिए वेब जर्नलिज्म करने के दौरान लोग धन भी कमा रहे हैं। कुछ लोग अपने ब्लाग और वेबसाइट पर गूगल द्वारा प्रदत्त एडसेंस विज्ञापन के माध्यम से कमाई कर रहे हैं। तो कुछ लोग शादी डॉट कॉम या अन्य बड़े प्रॉडक्ट के विज्ञापन के जरिए कर रहे हैं। कुछ लोग मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा सुषासन के लिए शुरू की गई वेबसाइट आइडियाज फार सीएम पर अपना सुझाव प्रेषित कर सम्मानित भी हो सकते हैं।
ब्लाग की उपयोगिता की सार्थकता पर विचार रखते हुए बताया कि पश्चिम बंगाल के एक निर्वाचन अधिकारी ने निर्वाचन प्रक्रिया संपन्न कराने के दौरान ब्लाग का उपयोग किया। पंजाब सरकार के वित्तमंत्री ने अपने बजट को ब्लाग के माध्यम से आमंत्रित किए गए सुझावों के बाद अंतिम रूप दिया है। भारत निर्वाचन आयोग ने न केवल विधानसभा चुनाव में बल्कि लोकसभा चुनाव में इंटरनेट आधारित सुविधाओं का इस्तेमाल आमजन व अधिकारियों के लिए व्यापक पैमाने कारगर ढ़ंग से किया है।
वेब जर्नलिज्म में जिन क्षेत्रों में अपार संभावनाएं है उनके बारे में चर्चा करते हुए बताया कि आडियो, वीडियो वेब, फोटो वेब और फिल्म वेब जर्नलिज्म के अलावा कला, संस्कृति और साहित्य जगत, खेल, व्यापार व षिक्षा तथा ईकॉनोमिक जर्नलिज्म, ई-गवर्नेंस की परियोजनाओं, इनफॉरमेषन टेक्नॉलाजी तथा इनफॉरमेषन कम्यूनिकेषन टेक्नॉलाजी के क्षेत्र में भी वेब जर्नलिज्म के लिए काफी संभावनाएं है। इसको लोग आश्चर्यजनक नजर से देख रहे हैं।
उन्होंने वेब जर्नलिज्म को साहित्य, कला व संस्कृति के क्षेत्र में अंगीकार करने पर जोर देते हुए कहा कि इस माध्यम में बहुत प्रभावशाली अवसर प्रदान किया है। जिसका साहित्य जगत के लोगों को लाभ उठाना चाहिए। उन्होंने बताया कि रचनाकार अपनी नई-नई रचनाओं, ऑनलाइन कविता प्रतियोगियों आदि के जरिए अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर वेब जर्नलिज्म जैसे नए क्षेत्र में अपना उचित स्थान हासिल कर सकते हैं। कुछ लोग इसके जरिए धन भी कमा सकते हैं।
बहरहाल, इंटरनेट ही एकमात्र ऐसा साधन है जिसके द्वारा सृजनकार अपनी किसी भी रचना या खोज का प्रदर्शन विश्व स्तर पर बिना किसी रोक टोक के मिनटों में कर सकते हैं। वेब जर्नलिज्म के जरिए जनमानस के उत्थान के लिए लोक चेतना तथा सूचना के अधिकार के बारे में लोगों को न केवल जागरूक किया जा सकता है। बल्कि अपडेट भी रख सकते हैं। उन्होंने पब्लिक रिलेषन में वेब जर्नलिज्म की भूमिका को रेखांकित करते हुए बताया कि जिन लोगों के उपर पीआर का दायित्व हैं वे अपने संस्थान के समाचार, फोटो, वीडियों क्लिप, वेबसाइट और ब्लाग के जरिए आमजन तक पहुंचा सकते है। समाचार पत्रों में अपनी सभी प्रकार की गतिविधियों की जानकारी समाचार पत्रों के व अन्य मीडिया के कार्यालयों में ई-मेल सेवा के द्वारा भेज सकते हैं। अपने संस्थान की वेबसाइट बनाकर उस पर मीडिया के लिए एक लिंक भी दे सकते हैं जिसमें संस्थान की सारी गतिविधियों का समावेष हो। उन्होंने वेब जर्नलिज्म और आरटीआई के संबंधों के बारे में प्रकाश डालते हुए बताया कि वेब जर्नलिज्म के माध्यम से आरटीआई का प्रचार-प्रसार किया जा सकता है। आरटीआई के बारे में लोगों को जागरूक बनाया जा सकता है। इसके अलावा आरटीआई का उपयोग ई-मेल के माध्यम से किस प्रकार करें, उसके बारे में भी बताया। उन्होंने बताया कि वेब जर्नलिज्म के द्वारा ई-गवर्नेंस की परियोजनाएं, किसानों के कल्याण, गरीबों के हितार्थ, विद्यार्थियों के हित में, आम नागरिकों की सुविधाओं के लिए, सरकार में पारदर्षिता लाने के लिए, सरकार में अपने विचारों को तवज्जों देने सहित अनेक क्षेत्रों में काम किया जा सकता है।
उन्होंने दुनियाभर में संसदीय प्रक्रियाओं में प्रवेश करते ई-पालियामेंट की चर्चा करते हुए कहा कि भारत में ही नहीं अन्य देषों की प्रजातांत्रिक व्यवस्था में ई-पालियामेंट का प्रवेश शुरू हो चुका है। इस क्षेत्र में भारत के अलावा अन्य देषों की कुछ संस्थाएं ई-पालियामेंट को प्रमोट करने के लिए आगे आयीं हैं। एक शोध के अनुसार देश की लोकसभा राज्य सभा व विभिन्न विधानसभा व विधानमंडलों के साथ-साथ इन सदनों के कुछेक सदस्यों ने ई-पालियामेंट को अपना लिया है। लिहाजा इस क्षेत्र में भी वेब जर्नलिज्म के लिए अपार संभावनाएं है।
उन्होंने भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ता, उनकी संख्या व इससे जुड़े हुए अन्य विषयों पर तथ्यों को रखते हुए बताया कि भारत सरकार के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो मई 2009 तक भारत में 64 लाख ब्राडबैंड कनेक्षन उपलब्ध कराये गये हैं। देश के सभी ढ़ाई लाख ग्राम पंचायतों में सन् 2012 तक ब्राडबैंड इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराई जायेगी। अभी 30 हजार ग्राम पंचायतों को ब्राडबैंड से जोड़ दिया गया है। भारत में निजी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों द्वारा भी लाखों की संख्या में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। अभी भारत में सात करोड़ इंटरनेट यूजर हैं। उन्होंने बताया कि भारत में 75 करोड़ मोबाईल उपयोगकर्ता हैं।
एक अनुमान के अनुसार भारत में एक इंटरनेट कनेक्शन का लगभग 6 व्यक्ति उपयोग करते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इंटरनेट से खरीदारी करने में भारत का एशिया में तीसरा स्थान है। दुनियाभर में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या 2013 तक 2.2 अरब छूने की संभावना है। नतीजतन एक अनुमान के अनुसार भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऑनलाइन देश हो जाएगा। अभी दुनिया में ब्लागरों के संख्या 13.3 करोड़ के लगभग है। जबकि भारत में 32 लाख लोग ब्लागिंग कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि वेब जर्नलिज्म का भविष्य उज्जवल है। वेब जर्नलिज्म का प्रयोग स्वच्छ व्यवस्था, विष्वास और उत्तरदायित्व, नागरिक कल्याण, लोकतंत्र, राष्ट्र के आर्थिक विकास व सूचना के आदान-प्रदान में व संवाद प्रेषण के साथ व्यवस्था एवं नागरिकों के बीच विभिन्न व्यवस्था एवं सेवाओं के एकीकृत करने, एक संस्था के भीतर तथा सिस्टम के भीतर विभिन्न स्तरों पर सूचनाओं का आदान-प्रदान करने में किया जाए। तो वेब जर्नलिज्म की न केवल सार्थकता सिध्द होगी वरन् एक मील का पत्थर गढ़ेगा।
वेब जर्नलिज्म नागरिकों के सषक्तिकरण के लिए सूचनाएँ प्रदान कर सकती है, सरकार में उसकी सहभागिता संभव बना सकती है और आर्थिक एवं सामाजिक अवसर का लाभ उठाने के लिए उन्हें सक्षम भी बना सकती है।
अंत में उन्होंने कहा कि वेब जर्नलिज्म का संबंध सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक और सूचना टेक्नॉलाजी व इंटरनेट से नहीं है बल्कि यह व्यवस्था के सुधारों को साकार करने का एक शानदार अवसर भी उपलब्ध कराता है। प्रतिभागियों द्वारा इंटरनेट, डेवलेपमेंट वेब जर्नलिज्म, वायरस के उपाय से संबंधित प्रष्न किए तथा उनकी जिज्ञासाओं का श्री नगेले ने समाधान किया।
वरिष्ठ साहित्यकार राजेन्द्र जोशी ने समाचार लेखन की व्यावहारिक तकनीक विषय पर बोलते हुए कहा कि समाचारों को रोजक, सारगर्भित और स्पष्ट तरीके से लिखा जाना चाहिए।
जनसंपर्क संचालनालय में अपर संचालक और उपसचिव जनसंपर्क विभाग लाजपत आहूजा ने विभागीय प्रचार के विभिन्न माध्यम विचार सत्र में जनसंपर्क विभाग द्वारा लोकहितकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार में निभाई जा रही महत्वपूर्ण भूमिका को विश्लेषित किया।
स्टार न्यूज के मध्यप्रदेश ब्यूरो चीफ ब्रजेश राजपूत ने दृष्य और श्रव्य मीडिया लेखन में बुनियादी अंतर पर अपना वक्तव्य दिया। सभी सत्रों का संचालन पूर्वा शर्मा ने किया। राजधानी में तीन दिन से चल रही वर्कशाप का समापन ख्यात फिल्म संगीतकार रवीन्द्र जैन, रंगकर्मी और फिल्म कला निर्देशक जयंत देशमुख, इग्नू के क्षेत्रीय निदेशक केएन तिवारी सहित कई गणमान्य अतिथियों की मौजूदगी में हुआ। वर्कशाप में कई पत्रकारों के अलावा पत्रकारिता के कोर्स का अध्ययन कर रहे छात्रों ने भी भाग लिया।
तीन दिवसीय मीडिया कार्यशाला में पहले दिन 30 अगस्त 2009 को वरिष्ठ पत्रकार महेष श्रीवास्तव ने पत्रकारिता के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला। आईसेक्ट और सीबी रमन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे ने अपने विचार रखते हुए कहा कि इलेक्ट्रानिक मीडिया की एक भाषा होना चाहिए। उन्होंने मीडिया के बदलते स्वरूपों पर प्रकाश डाला। तथा कुछ मुद्दों चिंता भी जाहिर की। राष्ट्रीय मानव संग्रहालय भोपाल के निदेशक विकास भट्ट ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि यह दिन भी आना चाहिए कि नागरिक यह कहते हुए नजर आए कि किसी भी राज्य या देश की सरकार मेरी सरकार है और जो समाचार पत्र प्रकाशित हो रहे हैं। वह भी मेरे हैं।
दूसरे दिन 31 अगस्त 2009 सोमवार को वर्तमान समय में मीडिया की भूमिका विषय पर श्री पुष्पेन्द्रपाल सिंह विभागाध्यक्ष पत्रकारिता विभाग, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल ने विचार रखे। एमएसजे सिंहा महाप्रबंधक एनएचडीसी संस्थानों और विभागों के संदर्भ में मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डाला।

मेरे बारे में

सरमन नगेले
संपादक
ई-समाचार पत्र
http://www.mppost.org/
http://www.mppost.com
पत्रकारिता - साधनों की शुध्दता के साथ लोकहित के उद्देश्य से सत्य उध्दाटित करने की रचनात्मक प्रक्रिया।
पत्रकार - एक चिंतक, योध्दा और सत्य का रक्षक।
सफलता - उत्कृष्ट होना और बने रहना सफल होने से ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।
जन्म - 10 जून 1969 को बुंदेलखण्ड के झांसी शहर के स्व. श्री एम.एल. नगेले एवं श्रीमती शकुन नगेले के मध्यम परिवार में। शिक्षा - हिन्दी में स्नातक,
कैशोर्य की देहरी लांघते ही मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पदार्पण।
जीवन यात्रा - रचनात्मक एवं राजनीतिक लेखन की ओर छात्रावस्था से ही रूझान रहा।
म.प्र. के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री सीडी संस्करण प्रथम एवं द्वितीय। सामाजिक-आर्थिक विषयों पर लेखन की दृष्टि से भारत सरकार ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह, केरल, तामिलनाडू जैसे राज्यों का अध्ययन भ्रमण कराया। इस यात्रा तथा मधयप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र की सामाजिक आर्थिक अधोसंरचना का अधययन भ्रमण के दौरान सृजित हुई।
''माया'' राष्ट्रीय राजनैतिक पत्रिका में कुछ मापदण्ड निर्धारित कर मध्यप्रदेश के टाँप टेन एम.एल.ए. चयनित कर विधायकों पर केन्द्रित विशेषांक का सृजन। अब तक के मप्र विधानसभा के अध्यक्षों पर केन्द्रित सीडी का सृजन। सिंहास्थ 2004 पर केन्द्रित सीडी का सृजन। आईटी स्टेटस इन मध्यप्रदेश, आईटी फॉर डव्लेपमेंट, ई@मध्यप्रदेश विशेषांक का संपादन। मध्यप्रदेश में ई-सेवाएं एक नजर में। प्रवासी भारतीय दिवस 7-9 जनवरी, 2008 पर विशेषांक का संपादन।
लगभग दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय - इंटरनेट मीडिया एक नये स्वरूप में सामने आ रहा है। हिन्दी भाषी राज्यों में इंटरनेट पत्रकारिता का शैशवकाल है। भारत में इंटरनेट पत्रकारिता की संभावनाओं को देखते हुए http://www.mppost.org/ पर मध्यप्रदेश का पहला इंटरनेट हिन्दी समाचार पत्र एक जनवरी 2005 से शुरू किया।
चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, असाम, पंजाब, तमिलनाडू, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात की आई.टी. नीतियों का अध्ययन, इंटरनेट पत्रकारिता से जुड़े लोगों, संस्थाओं प्रमुख, आई.टी. कंपनियों, विशेषज्ञों से सतत् संवाद। इंटरनेट पर आयोजित अंर्तराष्ट्रीय सेमीनार डब्ल्यू3सी में मध्यप्रदेश की ओर से प्रतिनिधित्व किया। साऊथ एषिया की सबसे बड़ी आई.टी. प्रर्दशनी एवं सेमीनार जीटेक्स इंडिया में भाग लिया। साऊथ एशिया के सबसे बड़े संचार एवं आई.टी. इवेंट कर्न्वजेंस इंडिया- 2006 में शामिल हुए। प्रवासी भारतीय दिवस में विशेष रूप से मीडिया प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। म.प्र. सरकार द्वारा आयोजित आई.टी. समिट में हिस्सा लिया।
पत्रकारिता -
बीबीसी- वेबदुनिया द्वारा आयोजित ऑन लाइन पत्रकारिता कार्यशाला में भागीदारी। राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली, अक्षर भारत, दिल्ली, राज्य की नई दुनिया, भोपाल जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में संवाददाता के रूप में कार्य। म.प्र. के प्रमुख दैनिक नवीन दुनिया जबलपुर के भोपाल ब्यूरो प्रमुख के रूप में संबध्द रहे। महाकौशल के प्रमुख सांध्य दैनिक सीटाइम्स के भोपाल ब्यूरो प्रमुख के रूप में संबध्द रहे। राष्ट्रीय राजनैतिक पत्रिका ''माया'' के मध्यप्रदेश विशेष संवाददाता के रूप में संबध्द रहे। दूरदर्शन, आकाशवाणी के लिये संवाद लेखन, विधानसभा कार्यवाही की समीक्षात्मक रिर्पोट लेखन। भोपाल दूरदर्शन से प्रसारित लाइव फोन इन कार्यक्रम शुभ-शाम में 17 अगस्त 2009 को विषय विशेषज्ञ के रूप में वेब जर्नलिज्म में भविष्य का प्रसारण।
संप्रति -
संपादक - एमपीपोस्ट इंटरनेट समाचार एवं विचार सेवा और वेबसाइट http://www.mppost.org/
ब्लाग - http://journocrat.blogspot.com/
समन्वयक, सेन्ट्रल प्रेस क्लब, भोपाल। उपाध्यक्ष, ब्यूरो चीफ एसोशिएशन, भोपाल। संस्थापक, सदस्य एवं संचालक राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्यादित, भोपाल, सदस्य- मध्यप्रदेश जर्नलिस्ट यूनियन (जम्प)। आजीवन सदस्य, मध्यप्रदेश विधानसभा पुस्तकालय, भोपाल। सदस्य, इंटरनेट आधारित सेवा सॉल्यूषन एक्सचेंज। अनेक राष्ट्रीय एवं प्रांतीय सामाजिक एवं रचनात्मक संगोष्ठियों में हिस्सा लिया।
पत्राचार का पता
एफ-45/2,
साऊथ टी.टी. नगर, भोपाल म.प्र.
462 003. दूरभाष - (91)-755-2779562 (निवास)
098260-17170 (मोबाईल)