मीडिया बनाम सोशल मीडिया
सोशल मीडिया ने मास मीडिया को ज़िम्मेदार बनाया
लोकतंत्र को और जीवंत बनाता सोशल मीडिया
( सरमन नगेले )
प्रिंट मीडिया में इन दिनों लगातार एक विज्ञापन प्रकाशित किया जा रहा है जिसमें प्रिंट मीडिया को विश्वसनीय बताने के दावे किए जा रहे हैं। सवाल है कि अगर प्रिंट इतना ही ज़िम्मेदार है तो उसे विज्ञापन देने की ज़रुरत ही क्यों पड़ी ?
सूचना प्रौद्योगिकी का सबसे प्रभावशाली असर सूचनाओं के आवागमन पर पड़ा है। इससे सूचनाओं तक जनता की पहुंच आसान हो गई है। सोशल मीडिया ने सूचनाओं की गति से कदम ताल करने में अपनी क्षमता साबित कर दी है। अब पारंपरिक प्रिंट मीडिया को भी डिजिटल मीडिया का रूप लेना पड़ा है। सभी प्रिंट संस्करण के डिजिटल संस्करण निकल गए है।
प्रामाणिकता पर अब कोई प्रश्न नही उठ रहा है क्योंकि सोशल मीडिया प्रामाणिक समाचार दे रहा है। दूसरी बाधा यह थी कि प्रिन्ट मीडिया पर जिस प्रकार के दबाव और सीमाएं थी वे सोशल नीडिया ने खत्म कर दी। इसलिए सोशल मीडिया पर अब दर्शक और पाठक उतना ही भरोसा कर रहे है जितना वे प्रिंट मीडिया पर कर रहे है। अब सवाल इस बात का नही है कि किसकी प्रमाणिकता ज्यादा है। सवाल यह है कि लोकतंत्र में चेतना आई या नही। कुछ घृणित सोच वालो ने सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का दुरुपयोग जरूर किया है लेकिन इस मीडिया का उपयोग करने वाले पूरी तरह सावधान हो चुके है।
मीडिया बनाम सोशल मीडिया का दौर इस समय भारत में संपन्न हो रहे आम चुनाव 2019 में बढचढकर खूब देखने को मिल रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इस बार का लोकसभा चुनाव सोशल मीडिया पर या कहा जाए कि डिजिटल मीडिया पर सबसे ज्यादा लडा जा रहा है। कह सकते हैं कि लोकसभा चुनाव का सोशल मीडिया सिरमौर बनकर मीडिया के पांचवे स्तंभ की हैसियत प्राप्त करने में सफल रहा है।
['' सोशल मीडिया प्रजातंत्र का एक सर्वाधिक सक्रिय मित्र और प्रहरी बन गया है। भारत में संपन्न हुए सौलहवीं लोकसभा चुनाव में, हाल ही में पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में, अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने प्रजातंत्र की सेहत के लिये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है। कहा जा रहा है कि भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। '']
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महोत्सव यानि भारत के आम चुनाव 2019 में न केवल सर्वाधिक नया कुछ दिख रहा है बल्कि राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग भी जिसका भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। वह है सोशल मीडिया।
परंपरागत मीडिया सोशल मीडिया के अनेक प्लेटफार्म का न केवल उपयोग करता है बल्कि उनके साथ कार्यक्रम भी करते हैं। इसी के पैकेज के सहारे विज्ञापन लेते हैं। डीएवीपी में रेट कराते हैं। अपनी खबरों को इसी मीडिया के जरिए वायरल कराते हैं और अधिमान्यता भी प्राप्त करते हैं। साथ साथ केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में सोशल मीडिया के नाम पर स्थान भी प्राप्त करते हैं। समाचार का सोशल मीडिया वर्तमान समय में न केवल प्रमुख स्त्रोत हो गया है बल्कि परंपरागत मीडिया और पत्रकार गण सोशल मीडिया पर डिपेंडेंट हो गये हैं। लगभग सभी बडे मीडिया संस्थानों में डिजिटल मीडिया की विंग अलग से काम कर रही है।
प्रामाणिक है सोशल मीडिया
फिर कुछेक परंपरागत मीडिया द्वारा सोशल मीडिया को अप्रमाणित मीडिया कहना कहां तक न्याय संगत है। सोशल मीडिया को अप्रमाणित मीडिया कहने के लिए अभियान चलाना सोशल मीडिया के साथ अन्याय होगा। जबकि हक़ीक़त यह है की परंपरागत मीडिया निष्पक्षता की कसौटी पर इस चुनाव में खरा नहीं उतर सका नतीज़तन भारत का अवाम सोशल मीडिया के समर्थन में खड़ा नज़र आ रहा है। इसमें राजनैतिक दल भी शामिल हैं। एक अध्ययन बताता है कि भारत का निर्वाचन आयोग, भारत सरकार, राज्य सरकारें, केन्द्रीय संस्थाएं, एजेंसी, सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। यही नहीं राष्ट्रपति सचिवालय, प्रधानमंत्री सचिवालय, भारत का लोकसभा सचिवालय, राज्यसभा सचिवालय, संवैधानिक संस्थाएं, मंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री सोशल मीडिया के हिस्सा बने हुए हैं।केन्द्र सरकार ने बाक़ायदा सोशल मीडिया विंग के लिए अलग से बजट रखा है। भारत निर्वाचन आयोग ने भी केन्द्रीय स्तर पर, राज्यों के स्तर पर बजट का प्रावधान हुआ है।
भारत का लगभग संपूर्ण पत्रकार जगत व मीडिया संस्थाएं सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। साथ-साथ सोशल मीडिया की विधिवत रूप से ट्रेनिंग भी ले रहा है। अनेक संस्थाएं कोर्स भी संचालित कर रही हैं। कुछेक विश्वविद्यालय सोशल मीडिया से संबंधित कोर्स चला रहे है। अनेक मीडिया संस्थानों ने नियुक्ति के समय सोशल मीडिया ज्ञान होना प्रमुख शर्त रहती है। इसी के साथ ही फेसबुक, गूगल और व्हाटसएप ने अफवाहों से बचने का अभियान चलाया एवं लोग फेक न्यूज से सावधान रहें, इसकी हकीकत का पता लगाने के लिए भारत में कई ट्रेनिंग केम्प भी किये हैं। चुनाव के पहले इन्ही परंपरागत मीडिया के अनेक संस्थाओं ने ट्रेनिंग भी ली है। सोशल मीडिया आम नागरिकों के जीवन का हिस्सा बन गया है।
अभिव्यक्ति का सशक्त मंच
सोशल मीडिया प्रजातांत्रिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण उपकरण बनकर उभरा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये सोशल मीडिया का मंच अधिकाधिक उपयोग किया जा रहा है। संविधान विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में इसका स्पष्ट प्रावधान है। इमरजेंसी के अलावा सामान्य स्थितियों में राज्य का दायित्व है कि नागरिकों के इस अधिकार की रक्षा करे। हालांकि संविधान के मुताबिक यह स्वतंत्रता असीमित या अमर्यादित नहीं है और अनुच्छेद 19 (2) में बताया गया कि राज्य किन स्थितियों में इस स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। ये स्थितियॉं हैं-देश की सम्प्रभुत्ता और एकता की रक्षा, भारत की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक-व्यवस्था (पब्लिक ऑर्डर) या फिर न्यायपालिका की अवमानना, मानहानि या किसी को अपराध के लिए उकसाना।
भारत का संविधान जो अधिकार परंपरागत मीडिया को देता है वही अधिकार सोशल मीडिया को मिल है। यहां तक की भारत में संपन्न होने जा रहे चुनाव के दौरान भारत निर्वाचन आयोग के जो नियम इलेक्टानिक मीडिया के लिए लागू होते हैं वही नियम सोशल मीडिया पर प्रभावशील होते हैं।
मीडिया की आजादी पर रिपोर्ट
मीडिया की आजादी से संबंधित एक सालाना रिपोर्ट में भारत दो पायदान खिसक गया है। 180 देशों में भारत 140वें नंबर पर पहुंच गया है। भारत में चुनाव प्रचार का दौर पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक होता है।वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 यानी ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019’ के अनुसार प्रेस की आजादी के मामले में नॉर्वे शीर्ष पर है। रिपोर्ट में पाया गया है कि दुनियाभर में पत्रकारों के प्रति दुश्मनी की भावना बढ़ी है। इस वजह से भारत में बीते साल अपने काम के कारण कम से कम 6 पत्रकारों की हत्या हो गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय पत्रकारों को कई खतरों का सामना करना पड़ता है। विश्लेषण से पता चलता है कि 2019 के आम चुनाव के दौरान एक दल के समर्थकों द्वारा पत्रकारों पर हमले किये गये। हिंदुत्व को नाराज करने वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर घृणित अभियानों पर चिंता जताई है।
प्रेस की आजादी के मामले में भारत दो पायदान फिसलकर 140 वें, पाकिस्तान 3 पायदान लुढ़ककर 142 वें और बांग्लादेश 4 पायदान लुढ़ककर 150 वें स्थान पर है। नॉर्वे लगातार तीसरे साल पहले पायदान पर है जबकि फिनलैंड दूसरे स्थान पर है। पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) या रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स यह रिपोर्ट जारी करता है।
भारत का निर्वाचन आयोग और सोशल मीडिया
भारत का सोशल मीडिया, इंटरनेट यूजर और मोबाईल यूजर लगातार करोडों की संख्या में पहुंच रहे हैं।परंपरागत मीडिया एकतरफा संवाद बनाता है। जबकि सोशल मीडिया दो तरफा संवाद बनाने और अनेक लोगों को हस्तक्षेप करने की खुली इजाजत देता है भारतीय लोकतंत्र का अभिनव अनुभव डिजिटल लोकतंत्र। 2014 के आम चुनाव के सभी चरणों में सर्वाधिक 66.48 फीसदी मतदान हुआ है। इसके पहले का सर्वाधिक मतदान 1984 में 64.01 प्रतिशत दर्ज किया गया था। कुल मिलाकर सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने में अहम भूमिका 2014 के चुनाव में निभाई है। इस बार के चुनाव में भी पिछले चुनावों की तुलना में कई गुना अधिक सोशल मीडिया व्यापक पैमाने पर एवं प्रभावी ढंग से भूमिका निभा रहा है।
तभी तो भारत का निर्वाचन आयोग एवं राज्यों के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी और जिलों के निर्वाचन अधिकारी सोशल मीडिया की लगातार मॉनीटरिंग कर रहे हैं। साथ साथ फेक न्यूज से निपटने के लिए सोशल मीडिया के प्रमुख मंचों के भारत स्थित प्रतिनिधियों से सहयोग लिया जा रहा है और जिला निर्वाचन अधिकारी को जो प्रदत्त शक्तियां हैं उनका भी वे सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिए उपयोग कर रहे हैं। एक अध्ययन बताता है कि कुछ मीडिया संस्थान तो अब चुनाव परिणाम आने से पहले ई वोटिंग का भी सहारा ले रहा है।
कुछ संस्थाएं आम मतदाता की नब्ज को टटोलने का सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा है।
अधिकाधिक उपयोग
यह साबित हो गया है कि सोशल मीडिया आज एक शक्तिशाली विकल्प के रूप में ऐसे लोग की आवाज बन गया है जिनकी आवाज या तो नहीं थी या अनसुनी कर दी जाती थी। आज शक्तिशाली विचारों को व्यापक रूप से फैलाने के लिये सोशल मीडिया एक शक्तिशाली मंच के रूप में उपयोग हो रहा है। विचारों के फैलाव के साथ ही सोशल मीडिया बड़े सामाजिक परिवर्तनों और सोच में बदलाव का कारण बन रहा है। इस दृष्टि से सोशल मीडिया प्रजातंत्र का एक सर्वाधिक सक्रिय मित्र और प्रहरी बन गया है। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने अपना अलग समुदाय और विशिष्ट नागरिकता की स्थिति बना ली है। सोशल मीडिया से जुड़े नागरिकों ने प्रजातांत्रिक प्रक्रिया में दबाव समूह के रूप में कार्य करने की संस्कृति भी विकसित कर ली है। वे न सिर्फ मत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं बल्कि प्रजातंत्र को भी मजबूत करने का काम कर रहे हैं।
जहां तक सोशल मीडिया के उद्भव की बात है तो इसका जन्म और विस्तार आईटी और इंटरनेट से हुआ है। मुख्य रूप से वेबसाइट, न्यूज पोर्टल, सिटीजन जर्नलिज्म आधारित वेबसाइट- ई-मेल, ब्लॉग, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटस, जैसे फेसबुक, माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट, ट्विटर, यूट्यूब, फ्लिकर, टम्बलर, स्टेमबेलपोन, लिंक्डइन, गूगल प्लस, इंस्टाग्राम, ब्लॉग्स, फॉरम, चैट व्हाट्सअप आदि सोशल मीडिया का हिस्सा है। सोशल मीडिया के विशेषज्ञ मोबाइल मीडिया को भी सोशल मीडिया का रूप मानते हैं जैसे एसएमएस, एमएमएस, मोबाइल वेबसाइट, मोबाइल एप, वीडियो लिंक, चेट, ऑडियो ब्रिज, मोबाइल के माध्यम से वॉयस कॉल, वीडियो चेट और मोबाइल रेडियो आदि।
भारत में तेजी से मोबाईल यूजर,इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर सक्रियता भी बढ़ रही है। जल्दी ही भारत अमेरिका से आगे निकल जायेगा। ऐसी स्थिति निर्मित हो गई है। भारत में संपन्न हुए सौलहवीं लोकसभा चुनाव और विधानसभा के चुनावों में सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने प्रजातंत्र की सेहत के लिये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है। इससे स्पष्ट है कि सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने सजगता के साथ मतदान में भागीदारी की।
भारत में संपन्न हो रहे लोकसभा चुनाव 2019 में सोशल मीडिया पर करोडों रूपये विज्ञापन के रूप में साथ ही व्यापक पैमाने पर उपयोग करने पर व्यय हो रहे हैं।
आम चुनाव 2019 में राजनैतिक वक्तव्यों, सभा, रोड शो, जनसंपर्क एवं मीडिया से होने वाली नियमित बातचीत की लाइव स्ट्रीमिंग लगातार की जा रह है और त्वरित टिप्पणियों की सोशल मीडिया पर धूम मची है। व्हाटसएप पर संदेशों और वीडियो बहुतायात में लक्षित
समूहों के पास लक्षित समय पर भेजे जा रहे हैं। सभी राजनैतिक दलों के बीच और उम्मीदवारों में प्रतिस्पर्धा देखने का मिल रही है। सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया ने पिछले चुनाव में ट्विटर पर सबसे तेज चुनाव नतीजे के ट्रेंड को बताया। इस चुनाव में यह प्रक्रिया और अधिक ढंग से सोशल मीडिया के लगभग सभी प्लेटफार्म पर व्यापक पैमाने पर देखने का निश्चित रूप से मिलेगी। इस तरह की कवायद की जा रही है।
सही कहा है :-"मनुष्य तकनीक को जन्म देता है जो चिरस्थायी हो जाती है,
प्रौद्योगिकी अमर रहती है हालांकि इसके स्वरूप बदलते रहते हैं।"
(लेखक-न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट डॉट कॉम के संपादक हैं और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में 15 वर्षों से सक्रिय हैं ।)