शासकीय कामकाज में पारदर्शिता और सूचना के अधिकार के लिए दुनियाभर में विभिन्न रूपों में मांग उठी, लेकिन सबसे पहले स्वीडेन देश ने 243 साल पहले सूचना अधिकार लागू किया था। जबकि भारत में सूचना का अधिकार 15 जून 2005 को लागू हुआ है।
आरटीआई के बारे में हिन्दुस्तान के हर नागरिक को मालूम होना चाहिए। इसके लिये सरकारी और अन्य स्तरों पर प्रचार-प्रसार के लिये अभियान चालू होना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को सूचना के अधिकार को शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी शामिल करना चाहिए। आरटीआई कानून में जनमानस के लिये एक बहुत बड़ा प्रावधान यह है कि कोई भी व्यक्ति आरटीआई से संबंधित जानकारी ईमेल के जरिए भी प्राप्त कर सकता है। इसका प्रावधान आरटीआई में भी है।
इंटरनेट के द्वारा जानकारी लेने का यह माध्यम सबसे सस्ता और प्रभावी है इसमें पैसे और समय की बचत के साथ-साथ आवेदनकर्ता के लिए समयसीमा का कोई बंधन नहीं है। न ही किसी सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाने की जरूरत है। व्यक्ति अपने घर से किसी भी समय आवेदन कर सकता है। आमजन ने इस माध्यम को अपना लिया तो देश में एक सूचना प्राप्त करने की एक बड़ी क्रांति होगी।
भारत में सरकारी स्तर पर कुछ संस्थाओं ने आरटीआई के आनलाइन सर्टिफिकेट ई-कोर्स व ई-लर्निंग कोर्स भी शुरू किए हैं।यह अधिनियम जम्मू-कष्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू है। इस अधिनियम के दायरे में भारत सरकार के अन्वेषण ब्यूरो और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के अलावा एक दर्जन से अधिक विभाग नहीं आते हैं। सूचना का मतलब है ईमेल, रिकार्डो, दस्तावेजो, ज्ञापनों, विचार, सलाह, परिपत्र, प्रेस विज्ञप्तियां, निविदा, टिप्पणियां, आदेश, लाॅग पुस्तिकाएं, पत्र, उदाहरण, नमूने, आंकड़े सहित कोई भी सामग्री जो किसी भी रूप में उपलब्ध हो, साथ ही वह सूचना जो किसी भी निजी निकाय से संबंध हो, किसी लोक प्राधिकारी के द्वारा उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून के तहत प्राप्त किया जा सकता है बषर्ते उसमें फाइल नोटिंग शामिल नहीं हो।
2005 से लेकर मतलब 2009 तक बीते इन पांच वर्षो के दौरान आरटीआई को लेकर आम जन में जो भी प्रतिक्रिया, जागरूकता और उत्साह देखा गया हो। यह बात अलहदा है। लेकिन जिस तकनीकी यानि संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से इस कानून को घर-घर में पहुंचाने में न केवल मदद मिलती बल्कि आरटीआई कानून की सार्थकता भी सिद्ध होती। अब सवाल उठता है कि इस तकनीक को क्यों? अमल में नहीं लाया गया। साथ ही इसके प्रचार-प्रसार के लिये अभियान क्यों नहीं छेड़ा गया। इसके पीछे जानकार अनेक कारण बता रहे हैं। हाॅं, यदि इंफारमेशन कम्यूनिकेशन टेक्नालाजी यानि आईसीटी का आरटीआई में उपयोग ज्यादा से ज्यादा सरकारी व अन्य स्तरों पर होता, तो आज इसके परिणाम अलग दिखते।
खैर, विलंब से ही सही यदि इसके उपयोग की शुरूआत हो तो भारत में न केवल भ्रष्टाचार में अंकुश लगेगा। बल्कि इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। आरटीआई कानून का प्रचार-प्रसार व लोगों को इस कानून के तहत आईसीटी के जरिए लाभ लेने के बारें में जब केन्द्रीय सूचना आयुक्त एमएल शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी अदान-प्रदान करने को लेकर हालही में एक साफ्टवेयर विकसित किया गया है। जो तीन चार सप्ताह पश्चात काम करने लगेगा। तदोपरांत द्वितीय अपील के आवेदन आनलाइन स्वीकार हो सकेंगे। उन्होंने बताया कि उनकी जानकारी में अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है कि किसी भी आवेदनकर्ता ने उनके कार्यालय से ईमेल के माध्यम से पत्राचार किया हो। उन्होंने बताया कि इस पर भी विचार किया जा रहा है कि आरटीआई के अंतर्गत जमा होने वाली फीस क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी प्राप्त की जाए। केन्द्रीय सूचना आयोग व राज्य सूचना आयोग तथा केन्द्र और राज्यों की सरकारों ने आरटीआई कानून के बारे में जनमानस को व स्वयंसेवी संगठनों को जागरूक किया है। लेकिन जो सबसे सस्ता और प्रभावी हर समय असरकारी होने वाली विधि आईसीटी से मिली है। उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। यह विचारणीय प्रश्न है।
श्री शर्मा ने एक सवाल के जवाब में बताया कि आरटीआई में आईसीटी के उपयोग के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए अभियान नहीं चलाया गया है। आयोग ने अपने स्तर पर इस तरह का कोई प्रयास भी नहीं किया है। उन्होंने कहा कि आरटीआई के प्रचार-प्रसार करने का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकारों का है।
श्री शर्मा का कहना है कि आरटीआई के संबंध में काल सेंटर के माध्यम से आवेदन स्वीकार करने की परंपरा अभी भारत में नहीं है। साथ ही वीडियों कांफ्रेंसिंग के जरिए भी प्रकरणों की सुनवाई न के बराबर हो रही है। उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने से संबंधित जब पत्राचार ईमेल के माध्यम से होने लगेगा। तो काफी समस्याओं को समाधान कम खर्च में परिणाम मूलक सामने आएगा।
श्री शर्मा ने स्वयं स्वीकार किया है कि वे इंटरनेट या कम्प्यूटर सेवी नहीं है। कुछ समय पूर्व जब दूसरे सूचना आयुक्त श्री केजरीवाल से इंटरनेट और कम्प्यूटर के आरटीआई में इस्तेमाल को लेकर बातचीत की थी तो उन्होंने भी साफगोई से स्वीकार किया था कि उनकी ईमेल खोलने में रूचि नहीं है। अब देखना यह है कि आरटीआई को आमजन तक पहुंचाने में सबसे सस्ते माध्यम आईसीटी का उपयोग बढ़ाने के लिए सरकारें व जानकार आगे आते हैं अथवा नहीं।
आरटीआई से जुड़े कुछ सवाल -
· आरटीआई के तहत आने वाली शिकायतों का समाधान वीडियों क्रांफेंसिंग के जरिए होना चाहिए।
· काल सेंटर के माध्यम से आरटीआई के आवेदन स्वीकार होना चाहिए।
· ई-मेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने की संस्कृति विकसित होना चाहिए।
· क्रेडिट कार्ड के माध्यम से आरटीआई के अंतर्गत ली जानी वाली फीस का भुगतान स्वीकार किया जाना चाहिए।
· शासन स्तर पर आईसीटी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए साथ आरटीआई के कार्य में संलग्न अधिकारियों को आईसीटी के बारे में प्रषिक्षित किया जाना चाहिए।
· भारत के हर नागरिक को षिक्षा के अधिकार की तरह आरटीआई के अधिकार के बारे में जागरूक बनाना चाहिए।
· केन्द्र और राज्य सरकारों को यथा संभव पाठ्यक्रमों में आरटीआई को शामिल किया जाना चाहिए।
आरटीआई के बारे में हिन्दुस्तान के हर नागरिक को मालूम होना चाहिए। इसके लिये सरकारी और अन्य स्तरों पर प्रचार-प्रसार के लिये अभियान चालू होना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को सूचना के अधिकार को शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी शामिल करना चाहिए। आरटीआई कानून में जनमानस के लिये एक बहुत बड़ा प्रावधान यह है कि कोई भी व्यक्ति आरटीआई से संबंधित जानकारी ईमेल के जरिए भी प्राप्त कर सकता है। इसका प्रावधान आरटीआई में भी है।
इंटरनेट के द्वारा जानकारी लेने का यह माध्यम सबसे सस्ता और प्रभावी है इसमें पैसे और समय की बचत के साथ-साथ आवेदनकर्ता के लिए समयसीमा का कोई बंधन नहीं है। न ही किसी सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाने की जरूरत है। व्यक्ति अपने घर से किसी भी समय आवेदन कर सकता है। आमजन ने इस माध्यम को अपना लिया तो देश में एक सूचना प्राप्त करने की एक बड़ी क्रांति होगी।
भारत में सरकारी स्तर पर कुछ संस्थाओं ने आरटीआई के आनलाइन सर्टिफिकेट ई-कोर्स व ई-लर्निंग कोर्स भी शुरू किए हैं।यह अधिनियम जम्मू-कष्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू है। इस अधिनियम के दायरे में भारत सरकार के अन्वेषण ब्यूरो और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के अलावा एक दर्जन से अधिक विभाग नहीं आते हैं। सूचना का मतलब है ईमेल, रिकार्डो, दस्तावेजो, ज्ञापनों, विचार, सलाह, परिपत्र, प्रेस विज्ञप्तियां, निविदा, टिप्पणियां, आदेश, लाॅग पुस्तिकाएं, पत्र, उदाहरण, नमूने, आंकड़े सहित कोई भी सामग्री जो किसी भी रूप में उपलब्ध हो, साथ ही वह सूचना जो किसी भी निजी निकाय से संबंध हो, किसी लोक प्राधिकारी के द्वारा उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून के तहत प्राप्त किया जा सकता है बषर्ते उसमें फाइल नोटिंग शामिल नहीं हो।
2005 से लेकर मतलब 2009 तक बीते इन पांच वर्षो के दौरान आरटीआई को लेकर आम जन में जो भी प्रतिक्रिया, जागरूकता और उत्साह देखा गया हो। यह बात अलहदा है। लेकिन जिस तकनीकी यानि संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से इस कानून को घर-घर में पहुंचाने में न केवल मदद मिलती बल्कि आरटीआई कानून की सार्थकता भी सिद्ध होती। अब सवाल उठता है कि इस तकनीक को क्यों? अमल में नहीं लाया गया। साथ ही इसके प्रचार-प्रसार के लिये अभियान क्यों नहीं छेड़ा गया। इसके पीछे जानकार अनेक कारण बता रहे हैं। हाॅं, यदि इंफारमेशन कम्यूनिकेशन टेक्नालाजी यानि आईसीटी का आरटीआई में उपयोग ज्यादा से ज्यादा सरकारी व अन्य स्तरों पर होता, तो आज इसके परिणाम अलग दिखते।
खैर, विलंब से ही सही यदि इसके उपयोग की शुरूआत हो तो भारत में न केवल भ्रष्टाचार में अंकुश लगेगा। बल्कि इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। आरटीआई कानून का प्रचार-प्रसार व लोगों को इस कानून के तहत आईसीटी के जरिए लाभ लेने के बारें में जब केन्द्रीय सूचना आयुक्त एमएल शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी अदान-प्रदान करने को लेकर हालही में एक साफ्टवेयर विकसित किया गया है। जो तीन चार सप्ताह पश्चात काम करने लगेगा। तदोपरांत द्वितीय अपील के आवेदन आनलाइन स्वीकार हो सकेंगे। उन्होंने बताया कि उनकी जानकारी में अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है कि किसी भी आवेदनकर्ता ने उनके कार्यालय से ईमेल के माध्यम से पत्राचार किया हो। उन्होंने बताया कि इस पर भी विचार किया जा रहा है कि आरटीआई के अंतर्गत जमा होने वाली फीस क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी प्राप्त की जाए। केन्द्रीय सूचना आयोग व राज्य सूचना आयोग तथा केन्द्र और राज्यों की सरकारों ने आरटीआई कानून के बारे में जनमानस को व स्वयंसेवी संगठनों को जागरूक किया है। लेकिन जो सबसे सस्ता और प्रभावी हर समय असरकारी होने वाली विधि आईसीटी से मिली है। उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। यह विचारणीय प्रश्न है।
श्री शर्मा ने एक सवाल के जवाब में बताया कि आरटीआई में आईसीटी के उपयोग के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए अभियान नहीं चलाया गया है। आयोग ने अपने स्तर पर इस तरह का कोई प्रयास भी नहीं किया है। उन्होंने कहा कि आरटीआई के प्रचार-प्रसार करने का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकारों का है।
श्री शर्मा का कहना है कि आरटीआई के संबंध में काल सेंटर के माध्यम से आवेदन स्वीकार करने की परंपरा अभी भारत में नहीं है। साथ ही वीडियों कांफ्रेंसिंग के जरिए भी प्रकरणों की सुनवाई न के बराबर हो रही है। उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने से संबंधित जब पत्राचार ईमेल के माध्यम से होने लगेगा। तो काफी समस्याओं को समाधान कम खर्च में परिणाम मूलक सामने आएगा।
श्री शर्मा ने स्वयं स्वीकार किया है कि वे इंटरनेट या कम्प्यूटर सेवी नहीं है। कुछ समय पूर्व जब दूसरे सूचना आयुक्त श्री केजरीवाल से इंटरनेट और कम्प्यूटर के आरटीआई में इस्तेमाल को लेकर बातचीत की थी तो उन्होंने भी साफगोई से स्वीकार किया था कि उनकी ईमेल खोलने में रूचि नहीं है। अब देखना यह है कि आरटीआई को आमजन तक पहुंचाने में सबसे सस्ते माध्यम आईसीटी का उपयोग बढ़ाने के लिए सरकारें व जानकार आगे आते हैं अथवा नहीं।
आरटीआई से जुड़े कुछ सवाल -
· आरटीआई के तहत आने वाली शिकायतों का समाधान वीडियों क्रांफेंसिंग के जरिए होना चाहिए।
· काल सेंटर के माध्यम से आरटीआई के आवेदन स्वीकार होना चाहिए।
· ई-मेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने की संस्कृति विकसित होना चाहिए।
· क्रेडिट कार्ड के माध्यम से आरटीआई के अंतर्गत ली जानी वाली फीस का भुगतान स्वीकार किया जाना चाहिए।
· शासन स्तर पर आईसीटी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए साथ आरटीआई के कार्य में संलग्न अधिकारियों को आईसीटी के बारे में प्रषिक्षित किया जाना चाहिए।
· भारत के हर नागरिक को षिक्षा के अधिकार की तरह आरटीआई के अधिकार के बारे में जागरूक बनाना चाहिए।
· केन्द्र और राज्य सरकारों को यथा संभव पाठ्यक्रमों में आरटीआई को शामिल किया जाना चाहिए।