मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं
आज दो अक्टूबर है और देर रात से गूगल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चित्र ग्राफिक्स में बना हुआ। दर्शको को देखने के लिए मिला। प्रसिद्ध इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने बापू को अपना जी यानि गूगल के पहले शब्द जी के स्थान पर गांधी जी का चित्र बनाया है। इसलिए कहा जा सकता है कि गूगल भी भारत में जड़े जमाने के लिए गांधी जी के नाम का न केवल उपयोग कर रहा है, बल्कि गांधीगिरी अपना रहा है। टेलीविजन चैनलों पर भी आज महात्मा गांधी को सजाया व बेचा जाएगा। भोपाल, दिल्ली और मुंबई में गांधी जी पर केन्द्रित फिल्मों का प्रदर्शन किया गया।
आज दो अक्टूबर है और देर रात से गूगल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चित्र ग्राफिक्स में बना हुआ। दर्शको को देखने के लिए मिला। प्रसिद्ध इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने बापू को अपना जी यानि गूगल के पहले शब्द जी के स्थान पर गांधी जी का चित्र बनाया है। इसलिए कहा जा सकता है कि गूगल भी भारत में जड़े जमाने के लिए गांधी जी के नाम का न केवल उपयोग कर रहा है, बल्कि गांधीगिरी अपना रहा है। टेलीविजन चैनलों पर भी आज महात्मा गांधी को सजाया व बेचा जाएगा। भोपाल, दिल्ली और मुंबई में गांधी जी पर केन्द्रित फिल्मों का प्रदर्शन किया गया।
भोपाल में 11 फिल्मों का प्रदर्शन आज से प्रारंभ हुआ। ये फिल्में मार्केट से अलग हैं। कुछ न्यूज चैनलों ने गांधी के जीवन पर कुछ विशेष कार्यक्रम भी बनाये हैं। दो अक्टूबर के दिन मीडिया के लोग गांधीनुमा व्यक्तियों की तलाश करते हैं। कुछ बुर्जुग गांधीवादी व्यक्तियों की इस दिन मांग बढ़ जाती है। दो अक्टूबर के दिन गांधी जी की समाधी पर व उनकी मूर्तियों पर माल्र्यापण कर लोग इतिश्री कर लेते हैं। लेकिन इस रस्म अदायगी में कोई भी पीछे नहीं रहता है। भारत में गांधी जी के प्रति प्रेम को देखकर गैर भारतीय इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने गांधी जी को अपने सर्च इंजन के माध्यम से न केवल दर्शको को लुभाने की कोशिश की है बल्कि गांधी जी के प्रति अपनी आस्था और प्रेम का इजहार करने का प्रयास किया है। गांधी जी ने हमेशा यह संदेश दिया है कि बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो।
रेखांकित करने योग्य बात यह है कि जो वर्ग गांधीजी के विचारों से व उनके द्वारा बताए गए मार्ग से अलग होता जा रहा है। उस वर्ग के बीच में गांधीजी की जयंती यानि दो अक्टूबर के दिन गूगल ने कम से कम यह तो कर दिखाया है कि लोग दो अक्टूबर के दिन गांधीजी को याद करें, उनको विस्मृत करने जैसे उपक्रम से बचाये रखने का सराहनीय प्रयास किया है। यह बात अलग है कि गूगल के सर्च इंजन पर गांधीजी के चित्र को देखकर कितने लोग खुश हुए, ओर कितने लोग मायूस। अलबत्ता गूगल के सर्च इंजन पर पूरी दुनिया में जिस गति से लोग जाते हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि करोड़ों लोगों के मनमस्तिष्क पर गांधीजी ने एक बार फिर गूगल के माध्यम से अपना परचम फहराया है। दो अक्टूबर के दिन ही सही करोड़ों लोगों को गूगल के जरिए गांधीजी याद आए।
गांधी जयंती के अवसर पर प्रासांगिक और सामयिक कविता यहां प्रस्तुत है-
मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं
बचपन में पाठ्य पुस्तक में एक कविता पढ़ी थी, “मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं।” कविता में एक बच्चा मां से गांधी जी के जैसी वस्तुएं दिलवाने की मनुहार करता है ताकि वह भी उन्हें लेकर गांधी जी जैसा दिख सके। उसमें गांधी जी की मशहूर घड़ी का जिक्र था। गांधी जी घड़ी हाथ में नहीं बांधते थे, कमर में लटकाते थे। “घड़ी कमर में लटकाऊंगा”
तब बाल मन के लिए गांधी जी आदर्श थे, उनकी तरह कमर में घड़ी बांधने की उत्सुकता होती
थी। आज वही घड़ी तस्वीर में देखने को मिल रही है क्योंकि उसकी अमेरिका में नीलामी हुई
है। क्या आपको वह पूरी कविता और लेखक का नाम याद है?
कविता कुछ इस प्रकार थी-
मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं
सब मित्रों के बीच बैठ कर रघुपति राघव गांऊ
घड़ी कमर में लटकाऊंगा सैर सवेरे कर आऊंगा
मुझे श्ई की पोनी दे दे
तकली खूब चलाऊं
मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं
रेखांकित करने योग्य बात यह है कि जो वर्ग गांधीजी के विचारों से व उनके द्वारा बताए गए मार्ग से अलग होता जा रहा है। उस वर्ग के बीच में गांधीजी की जयंती यानि दो अक्टूबर के दिन गूगल ने कम से कम यह तो कर दिखाया है कि लोग दो अक्टूबर के दिन गांधीजी को याद करें, उनको विस्मृत करने जैसे उपक्रम से बचाये रखने का सराहनीय प्रयास किया है। यह बात अलग है कि गूगल के सर्च इंजन पर गांधीजी के चित्र को देखकर कितने लोग खुश हुए, ओर कितने लोग मायूस। अलबत्ता गूगल के सर्च इंजन पर पूरी दुनिया में जिस गति से लोग जाते हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि करोड़ों लोगों के मनमस्तिष्क पर गांधीजी ने एक बार फिर गूगल के माध्यम से अपना परचम फहराया है। दो अक्टूबर के दिन ही सही करोड़ों लोगों को गूगल के जरिए गांधीजी याद आए।
गांधी जयंती के अवसर पर प्रासांगिक और सामयिक कविता यहां प्रस्तुत है-
मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं
बचपन में पाठ्य पुस्तक में एक कविता पढ़ी थी, “मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं।” कविता में एक बच्चा मां से गांधी जी के जैसी वस्तुएं दिलवाने की मनुहार करता है ताकि वह भी उन्हें लेकर गांधी जी जैसा दिख सके। उसमें गांधी जी की मशहूर घड़ी का जिक्र था। गांधी जी घड़ी हाथ में नहीं बांधते थे, कमर में लटकाते थे। “घड़ी कमर में लटकाऊंगा”
तब बाल मन के लिए गांधी जी आदर्श थे, उनकी तरह कमर में घड़ी बांधने की उत्सुकता होती
थी। आज वही घड़ी तस्वीर में देखने को मिल रही है क्योंकि उसकी अमेरिका में नीलामी हुई
है। क्या आपको वह पूरी कविता और लेखक का नाम याद है?
कविता कुछ इस प्रकार थी-
मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं
सब मित्रों के बीच बैठ कर रघुपति राघव गांऊ
घड़ी कमर में लटकाऊंगा सैर सवेरे कर आऊंगा
मुझे श्ई की पोनी दे दे
तकली खूब चलाऊं
मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं