इन्टरनेट आरटीआई का दिल है, यह बात किसी आईटी प्रोफेसनल या इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर द्वारा अथवा ईमेल सेवा प्रदाता कंपनी ने नहीं कही। बल्कि ऐसे शख्स श्री वजाहत हबीबुल्लाह ने कही, जो न केवल पूर्व नौकरषाह है बल्कि वर्तमान में केन्द्रीय सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त हैं। जिस कार्यक्रम में मुख्य सूचना आयुक्त ने दिल की बात दिल से जोड़कर कही। उस कार्यक्रम में मध्यप्रदेश और छग के प्रतिनिधि के रूप में मैं भी मौजूद था। कार्यक्रम था इन्टरनेट पर केन्द्रित आईनेट देहली 2009 जिसका आयोजन 17 सितम्बर 2009 को इन्टरनेट सोसायटी (आईसाॅक) तथा डिजीटल इंपावरमेंट फांउडेषन (डीईएफ) ने किया था। भारत के मुख्य सूचना आयुक्त की टिप्पणी देष की राजधानी के समाचार पत्रों में अगले दिन नदारत थी। टीवी चैनलों व 24 घंटे के खबरिया चैनलों में दिखना तो दूर की बात रही। यद्यपि मैं इन्टरनेट मीडिया से पिछले कई वर्षो से जुड़ा हूं। इसलिए मुख्य सूचना आयुक्त श्री हबीबुल्लाह की टिप्पणी पर मेरा ध्यान ठहर गया। मैंने कार्यक्रम में आये भारत के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों व अन्य देषों से आये विषय विषेषज्ञों से आरटीआई को इन्टरनेट के जरिए प्रोत्साहित करने की बात षिद्दत के साथ कही। अब सवाल उठता है कि आरटीआई इन्टरनेट का हदृय है या नहीं। यह तो समय बतायेगा। अलबत्ता मैं यहां बताना न केवल समीचीन समझता हूं बल्कि प्रासांगिक भी है कि लखनऊ में साॅल्यूषन एक्सचेंज का डीसेन्ट्रलाइजेषन कम्यूनिटी पर केन्द्रित वार्षिक फोरम 22 से 24 अक्टूबर 2009 को होने जा रहा है। जिसमें आरटीआई पर विषेषज्ञों से पेपर आमंत्रित किए गए हैं। यूएनडीपी समर्थित संस्था साॅल्यूषन एक्सचेंज के भारत में 18 हजार सदस्य हैं तथा 30 हजार पाठक। आरटीआई के असर से अच्छे-अच्छे प्रभावषाली तक भय खाने लगे हैं। आरटीआई के जरिए सूचना क्रांति लाने के उपक्रम की कड़ी में सीडेक हैदराबाद द्वारा एक ई-लर्निंग कोर्स प्रारंभ किया गया, जबकि कार्मिक लोक षिकायत एवं पेंषन मंत्रालय, कार्मिक और प्रषिक्षण विभाग भारत सरकार द्वारा आरटीआई को बढ़ावा देने के लिए एक आनलाइन ई-डिग्री कोर्स प्रारंभ किया गया है। इस कोर्स के प्रति लोगों में जागरूकता देखी गई है। कुछ मीडिया की व बड़ी संस्थाओं ने आरटीआई पर केन्द्रित अवार्ड भी स्थापित किए हैं। ये उदाहरण इस बात के द्योतक हैं कि आरटीआई शनैः शनैः अपनी जड़े मजबूत करता जा रहा है। कितना कारगर है सूचना का अधिकार यानि आरटीआई। सूचना का अधिकार को स्वतंत्र भारत में एक क्रांतिकारी बदलाव की तरह देखा गया है, ऐसी मान्यता रही है कि यह कानून जनता के हाथ में एक ऐसा औजार रहेगा जो सरकार को या सरकार से अनुदान प्राप्त संस्थाओं और आरटीआई के दायरे में आने वालों को कठघरे में उसे जवाबदेय और पारदर्षी होने पर मजबूर करता है। इससे सरकारी कामकाज में क्या पारदर्षिता आयी है और क्या लोग अपने आपको ज्यादा ताकतवर महसूस करते है सरकारी तंत्र के सामने? रेखांकित करने लायक बात यह है कि पूरी दुनिया में सूचना की आजादी के आंदोलनों ने भारत में भी इसकी जरूरत प्रमाणित की थी। हालांकि यह माना जाता रहा है कि भारत के संविधान की धारा 19(1)(क) में जानने का अधिकार भी निहित है। इसमें कहा गया है कि सभी नागरिकों को वाक्-स्वातंत्र्य एवं अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का अधिकार होगा। इस प्रावधान की व्यापक व्याख्या की गयी है। संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का कहीं अलग से उल्लेख नहीं है। हर नागरिक के लिए प्रदत्त इस स्वतंत्रता में ही प्रेस की स्वंतत्रता को भी अंतर्निहित माना गया है। इसी तरह, सूचना के अधिकार को भी इसका अनिवार्य अंग बताया गया है। इंडियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स बनाम भारत संघ 1985, एसीसी 641 मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नागरिकों को सरकार के संचालन-संबंधी सूचनाओं के विषय में जानने का अधिकार है।सूचना का अधिकार यानि सबसे प्रभावी अधिकारः यह कानून नागरिकों को, संसद और राज्य विधानमण्डल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार प्रदान करता है। इसके अनुसार, वैसी सूचना जिसे संसद अथवा राज्य विधानमण्डल को देने से इन्कार नहीं किया जा सकता, उसे किसी आमजन को भी देने से इंकार नहीं किया जा सकता।आरटीआई के अंतर्गत जानकारी लेने के लिए आवेदक को जरूरी शुल्क, जिस नाम से व जिस रूप में जमा करना हो, उसका विवरण ई-मेल के माध्यम से भेजना, ई-मेल से भेजे आवेदन की प्राप्ति तिथि वह मानी जाएगी, जिस तारीख को आवेदक ने आवश्यक शुल्क जमा किया हो, सूचना के अधिकार कानून- 2005 के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदक से शुल्क लिये जाने का प्रावधान है। सूचना प्राप्त करने के इच्छुक आवेदकों को आवेदन-पत्र के साथ 10 रुपये का शुल्क भुगतान करना होगा। इसे लोक प्राधिकारी के लेखा पदाधिकारी के नाम से बने बैंक ड्राफ्ट या बैंकर चेक या भारतीय पोस्टल ऑर्डर के रूप में या नकद रूप में जमा किया जा सकता है, आवेदन शुल्क नकद जमा करने की स्थिति में उससे संबंधित रसीद अवश्य प्राप्त कर लें। सूचना से क्या तात्पर्य है ? सूचना का मतलब है- रिकार्डों, दस्तावेजों, ज्ञापनों, ई-मेल, विचार, सलाह, प्रेस विज्ञप्तियाँ, परिपत्र, आदेश, लॉग पुस्तिकाएँ, निविदा, टिप्पणियाँ, पत्र, उदाहरण, नमूने, आँकड़े सहित कोई भी सामग्री, जो किसी भी रूप में उपलब्ध हों। साथ ही, वह सूचना जो किसी भी निजी निकाय से संबंधित हो, किसी लोक प्राधिकारी के द्वारा उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून के अंतर्गत प्राप्त किया जा सकता है, बसर्ते कि उसमें फाईल नोटिंग शामिल नहीं हो। सूचना के अधिकार का क्या अर्थ है ? सूचना अधिकार से तात्पर्य है- कार्यों, दस्तावेजों, रिकार्डों का निरीक्षण, दस्तावेजों या रिकार्डों की प्रस्तावनाध्सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना, सामग्री का प्रमाणित नमूने लेना, प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लॉपी, टेपों, वीडियो कैसेटों के रूप में या कोई अन्य ईलेक्ट्रॉनिक रूप में जानकारी प्राप्त करना। सूचना का अधिकार में जिन सूचनाओं को आम जनता को उपलब्ध कराने की मनाही है। साथ ही, यह कानून केन्द्र सरकार के अंतर्गत कार्यरत कुछ संगठनों को सूचना उपलब्ध नहीं कराने की छूट देता है अर्थात् इन संगठनों से संबंधित सूचना माँगे जाने की स्थिति में लोक सूचना अधिकारी आवेदन को अस्वीकार कर सकते हैं। ये संगठन हैं अन्वेषण ब्यूरो, अनुसंधान और विश्लेषण विंग, राजस्व आसूचना निदेशालय, केन्द्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, नार्कोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो, वैमानिक अनुसंधान केन्द्र, विशेष सीमान्त बल, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, असम राइफल्स, विशेष सेवा ब्यूरो, विशेष शाखा (सी.आई.डी), अंडमान व निकोबार, अपराध शाखा (सी.आई.डी)-सी.बी, दादरा नागर हवेली, विशेष शाखा लक्षद्बीप पुलिस। ऐसी सूचना जिसके प्रकाशन से भारत की स्वतंत्रता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, कार्य योजना, वैज्ञानिक या आर्थिक हित प्रभावित होता हो, विदेशी संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हों या जो अपराध के लिए लोगों को उत्तेजित करता हों। सूचना जिसे किसी भी न्यायालय या खण्डपीठ द्वारा प्रकाशित किए जाने से रोका गया हो या जिसके प्रदर्शन से न्यायालय के आदेश का उल्लंघन होता है, जिसके प्रकाशन से संसद या राज्य विधानमंडल के विशेषाधिकार प्रभावित होते हों। वाणिज्यिक गोपनीयता, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक संपदा से संबंधित सूचना, जिसके प्रकाशन से तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्धात्मक स्तर को क्षति पहुँचने की संभावना हों, जब तक कि सक्षम प्राधिकरी इस बात से संतुष्ट नहीं हो जाते कि ऐसी सूचना का प्रकाशन जनहित में है, ऐसी सूचना, जिसे विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त की गई हो, सूचना, जिसके प्रदर्शन से किसी व्यक्ति की जिन्दगी या शारीरिक सुरक्षा को खतरा हो या कानून के कार्यान्वयन या सुरक्षा उद्देश्यों के लिए विश्वास में दी गई सूचना या सहायता हो, सूचना जिससे अपराधी की जाँच करने या उसे हिरासत में लेने या उस पर मुकदमा चलाने में बाधा उत्पन्न हो सकती हो। मंत्रिपरिषद्, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श से संबंधित मंत्रिमंडल के दस्तावेज,ऐसी सूचना जो किसी व्यक्ति के निजी जिंदगी से संबंधित हो और उसका संबंध किसी नागरिक हित से नहीं हो और उसके प्रकाशन से किसी व्यक्ति के निजी जिंदगी की गोपनीयता भंग होती हो, वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग, 2006 ने तो इस कानून को निरस्त कर देने का सुझाव दिया है।आरटीआई में आईसीटी का उपयोग क्यों नहीं?शासकीय कामकाज में पारदर्षिता और सूचना के अधिकार के लिए दुनियाभर में विभिन्न रूपों में मांग उठी, लेकिन सबसे पहले स्वीडेन देष ने 243 साल पहले सूचना अधिकार लागू किया था। जबकि भारत में सूचना का अधिकार 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ। 15 जून 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन। हिन्दुस्तान में 12 अक्टूबर 2009 को सूचना के अधिकार के अधिनियम के चार वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। आरटीआई के बारे में हिन्दुस्तान के हर नागरिक को मालूम होना चाहिए। इसके लिये सरकारी और अन्य स्तरों पर प्रचार-प्रसार के लिये अभियान चालू होना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को सूचना के अधिकार को षिक्षा के पाठ्यक्रम में भी शामिल करना चाहिए। आरटीआई कानून में जनमानस के लिये एक बहुत बड़ा प्रावधान यह है कि कोई भी व्यक्ति आरटीआई से संबंधित जानकारी ईमेल के जरिए भी प्राप्त कर सकता है। इंटरनेट के द्वारा जानकारी लेने का यह माध्यम सबसे सस्ता और प्रभावी है इसमें पैसे और समय की बचत के साथ-साथ आवेदनकर्ता के लिए समयसीमा का कोई बंधन नहीं है। न ही किसी सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाने की जरूरत है। व्यक्ति अपने घर से किसी भी समय आवेदन कर सकता है। आमजन ने इस माध्यम को अपना लिया तो देष में सूचना प्राप्त करने की एक बड़ी क्रांति का सूत्रपात होगा। भारत में इन्टरनेट की उपलब्धता के बारे में एक तथ्य यह भी है कि भारत सरकार के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो अगस्त 2009 तक भारत में 64 लाख से अधिक ब्राडबैंड कनेक्षन उपलब्ध कराये गये हैं। देष के सभी ढ़ाई लाख ग्राम पंचायतों में सन् 2012 तक ब्राडबैंड इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराई जायेगी। अभी 30 हजार ग्राम पंचायतों को ब्राडबैंड से जोड़ दिया गया है। भारत में निजी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों द्वारा भी लाखों की संख्या में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। अभी भारत में सात करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर हैं। भारत में लगभग सभी महानगरों के शाॅपिंग माॅल, तीन सितारा और पांच सितारा होटलों, कैफे, एयरपोर्ट, कार्पोरेट कार्यालयों, आईटी इंडस्ट्री से जुड़ी हुई संस्थाओं के कार्यालयों के साथ-साथ कुछ प्रमुख सार्वजनिक स्थानों पर फिलवक्त इंटरनेट की सुविधा वाय-फाय के माध्यम से निषुल्क उपलब्ध कराई जा रही है। शीघ्र ही रेल मंत्रालय टेªनों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करायेगा। सभी टेªनों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कैसे जल्द से जल्द प्रारंभ हो इस गरज से रेल मंत्रालय ने ताने-बाने बुन लिये हैं। बहरहाल 2005 से लेकर मतलब 2009 तक बीते इन वर्षो के दौरान आरटीआई को लेकर आम जन में जो भी प्रतिक्रिया, जागरूकता और उत्साह देखा गया हो। यह बात अलहदा है। लेकिन जिस तकनीकी यानि संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से इस कानून को घर-घर में पहुंचाने में न केवल मदद मिलती बल्कि आरटीआई कानून की सार्थकता भी सिद्ध होती। प्रष्न यह है कि फिर इस तकनीक को क्यों अमल में नहीं लाया गया। साथ ही इसके प्रचार-प्रसार के लिये अभियान क्यों नहीं छेड़ा गया। इसके पीछे जानकार अनेक कारण बता रहे हैं। हाॅं, यदि इंफारमेषन कम्यूनिकेषन टेक्नालाॅजी यानि आईसीटी का आरटीआई में उपयोग ज्यादा से ज्यादा सरकारी व अन्य स्तरों पर होता, तो आज इसके परिणाम अलग दिखते। वैसे आरटीआई अभी शैष्वकाल में है। खैर, विलंब से ही सही यदि इसके उपयोग की शुरूआत हो तो भारत में न केवल भ्रष्टाचार में अंकुष लगेगा। बल्कि इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। आरटीआई कानून का प्रचार-प्रसार व लोगों को इस कानून के तहत आईसीटी के जरिए लाभ लेने के बारें में जब केन्द्रीय सूचना आयुक्त एमएल शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी अदान-प्रदान करने को लेकर हालही में एक साफ्टवेयर विकसित किया गया है। जो शीघ्र काम करने लगेगा। तदोपरांत द्वितीय अपील के आवेदन आनलाइन स्वीकार हो सकेंगे। अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है कि किसी भी आवेदनकर्ता ने उनके कार्यालय से ईमेल के माध्यम से पत्राचार किया हो। वैसे इस पर भी विचार किया जा रहा है कि आरटीआई के अंतर्गत जमा होने वाली फीस क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी प्राप्त की जाए। यह सच है कि कुछ हद तक केन्द्रीय सूचना आयोग व राज्य सूचना आयोग तथा केन्द्र और राज्यों की सरकारों ने आरटीआई कानून के बारे में जनमानस को व स्वयंसेवी संगठनों को जागरूक किया है। लेकिन जो सबसे सस्ता और प्रभावी सब जगह और हर समय असरकारी होने वाली विधि आईसीटी से मिली है। उस पर विषेष ध्यान नहीं दिया गया है। यह विचारणीय प्रष्न है। आरटीआई में आईसीटी के उपयोग के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए अभियान नहीं चलाया गया है। आयोगों ने अपने स्तर पर इस तरह का कोई प्रयास भी नहीं किया है। वैसे आरटीआई के प्रचार-प्रसार करने का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकारों का है। फिलहाल आरटीआई के संबंध में काॅल सेंटर के माध्यम से आवेदन स्वीकार करने की परंपरा अभी भारत में नहीं है। साथ ही वीडियों काॅंफ्रेंसिंग के जरिए भी प्रकरणों की सुनवाई न के बराबर हो रही है। ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने से संबंधित जब पत्राचार ईमेल के माध्यम से होने लगेगा। तो काफी समस्याओं का समाधान कम खर्च पर समय पर हो सकेगा। साथ ही नतीजे भी बेहतर आयेंगे। आरटीआई के कुछ कर्ताधर्ताओं ने स्वयं स्वीकार किया है कि वे इंटरनेट या कम्प्यूटर सेवी नहीं है। इंटरनेट और कम्प्यूटर के आरटीआई में इस्तेमाल को लेकर एक आयुक्त ने साफगोई से स्वीकार किया था कि उनकी ईमेल खोलने में रूचि नहीं है। अब देखना यह है कि आरटीआई को आमजन तक पहुंचाने में सबसे सस्ते माध्यम आईसीटी का उपयोग बढ़ाने के लिए सरकारें व जानकार आगे आते हैं अथवा नहीं। आरटीआई का इंटरनेट दिल है। इस शब्द की रक्षा और सार्थकता तब सिद्ध होगी जब आरटीआई से जुड़े इन सवालों पर विषेष ध्यान दिया जाएगा। मसलन- आरटीआई के तहत आने वाली षिकायतों का समाधान वीडियों क्रांफेंसिंग के जरिए होना चाहिए। काॅल सेंटर के माध्यम से आरटीआई के आवेदन स्वीकार होना चाहिए। ई-मेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने की संस्कृति विकसित होना चाहिए। के्रडिट कार्ड के माध्यम से आरटीआई के अंतर्गत ली जानी वाली फीस का भुगतान स्वीकार किया जाना चाहिए। शासन स्तर पर आईसीटी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए साथ आरटीआई के कार्य में संलग्न अधिकारियों को आईसीटी के बारे में प्रषिक्षित किया जाना चाहिए। भारत के हर नागरिक को षिक्षा के अधिकार की तरह आरटीआई के अधिकार के बारे मंे जागरूक बनाना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को यथा संभव पाठ्यक्रमों में आरटीआई को शामिल किया जाना चाहिए।
ई-मेल- mppostnewsviews@gmail.com
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