आम चुनाव 2019, प्रजातंत्र, सोशल मीडिया और मतदान
भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर
सरमन नगेले
['' सोशल मीडिया प्रजातंत्र
का एक सर्वाधिक सक्रिय मित्र और प्रहरी बन गया है।
भारत में संपन्न हुए सौलहवीं लोकसभा
चुनाव में, हाल ही में पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में, अमेरिकी राष्ट्रपति
के चुनाव में सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने प्रजातंत्र की सेहत के लिये अपनी उपयोगिता
सिद्ध कर दी है। कहा जा रहा है कि भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर तेजी के साथ आगे बढ़
रहा है। '']
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महोत्सव यानि भारत के आम चुनाव 2019 में न केवल
सर्वाधिक नया कुछ दिख रहा है बल्कि राजनीतिक दलों के साथ—साथ चुनाव आयोग भी जिसका भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। वह है संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी
आधारित सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया । मतलब भारतीय लोकतंत्र का अभिनव अनुभव डिजिटल
लोकतंत्र। 2014 के आम चुनाव के सभी चरणों में सर्वाधिक 66.48 फीसदी मतदान हुआ है। इसके
पहले का सर्वाधिक मतदान 1984 में 64.01 प्रतिशत दर्ज किया गया था। कुल मिलाकर सोशल
मीडिया और मोबाईल मीडिया ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने में अहम भूमिका 2014 के चुनाव में
निभाई है और इस बार के चुनाव में भी उससे अधिक व्यापक पैमाने पर एवं प्रभावी ढंग से
निभाएगा। ऐसा सोशल मीडिया के उपयोग के कारण प्रतीत होता है।
निर्वाचन आयोग कई तरह के अत्याधुनिक तकनीकी माध्यमों का इस्तेमाल कर रहा है। चुनाव आयोग ने इंटरनेट के जरिए देश के हर बूथ को
जोड़कर और मिनटों में हर सूचना देश के एक कोने से दूसरे कोने में पहुंचाने का भी इंतजाम
किया था। इस बार भी कर रहा है।
पिछले आम चुनाव में चुनाव आयोग,
राजनैतिक दलों ने सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया का व्यापक पैमाने
पर उपयोग किया। इससे मतदान का प्रतिशत ऐतिहासिक रूप से बढ़ा। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं
ने सजगता के साथ मतदान में भागीदारी की। इस बार इसका दखल अत्याधिक इसलिए दिख रहा है।
क्यो कि इसकी अपनी एक डिजिटल सोसायटी बन गई है और नई नई टेक्नॉअलाजी एवं उपकरण आ गए
हैं।
सोशल मीडिया आज एक शक्तिशाली विकल्प के रूप में ऐसे लोग की आवाज बन गया है जिनकी
आवाज या तो नहीं थी या अनसुनी कर दी जाती थी। आज शक्तिशाली विचारों को व्यापक रूप से
फैलाने के लिये सोशल मीडिया एक शक्तिशाली मंच के रूप में उपयोग हो रहा है। विचारों
के फैलाव के साथ ही सोशल मीडिया बड़े सामाजिक परिवर्तनों और सोच में बदलाव का कारण बन
रहा है। इस दृष्टि से सोशल मीडिया प्रजातंत्र का एक सर्वाधिक सक्रिय मित्र और प्रहरी
बन गया है। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने अपना अलग समुदाय और विशिष्ट नागरिकता की
स्थिति बना ली है। सोशल मीडिया से जुड़े नागरिकों ने प्रजातांत्रिक प्रक्रिया में दबाव
समूह के रूप में कार्य करने की संस्कृति भी विकसित कर ली है। वे न सिर्फ मत निर्माण
में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं बल्कि प्रजातंत्र को भी मजबूत करने का काम कर रहे
हैं।
वैसे सोशल मीडिया का उद्भव आईटी और इंटरनेट से हुआ है। मुख्य रूप से वेबसाइट, न्यूज पोर्टल, सिटीजन जर्नलिज्म आधारित
वेबसाइट- ई-मेल, ब्लॉग, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटस, जैसे फेसबुक, माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट, ट्विटर, यूट्यूब, फ्लिकर, टम्बलर, स्टेमबेलपोन, लिंक्डइन, गूगल प्लस, इंस्टाग्राम, ब्लॉग्स, फॉरम, चैट व्हाट्सअप आदि सोशल मीडिया का हिस्सा है। सोशल मीडिया के विशेषज्ञ मोबाइल मीडिया
को भी सोशल मीडिया का रूप मानते हैं जैसे एसएमएस, एमएमएस, मोबाइल वेबसाइट, मोबाइल एप, वीडियो लिंक, चेट, मोबाइल के माध्यम से
वॉयस कॉल, वीडियो चेट और मोबाइल रेडियो आदि।
भारत में तेजी से मोबाईल यूजर,इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर सक्रियता
भी बढ़ रही है। जल्दी ही भारत अमेरिका से आगे निकल जायेगा। ऐसी स्थिति निर्मित हो गई
है। भारत में संपन्न हुए सौलहवीं लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने
प्रजातंत्र की सेहत के लिये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है। इससे स्पष्ट है कि सोशल
मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने सजगता के साथ मतदान में भागीदारी की।
राजनैतिक वक्तव्यों और त्वरित टिप्पणियों की ट्विटर पर धूम मची रही। सरकारी और
गैर-सरकारी मीडिया ने ट्विटर पर सबसे तेज चुनाव नतीजे के ट्रेंड को बताया।
आम चुनाव में मतदान का प्रतिशत बढ़ना इस बात को सिद्ध करता है कि चुनाव आयोग ने
भी सोशल मीडिया के जरिए स्वीप कार्यक्रम चलाया और मत के महत्व को समझाया इससे मतदाताओ
में जागरूकता बढ़ी और बड़ी संख्या में मतदान हुआ। इस बार भी चुनाव आयोग सोशल मीडिया पर
मतदान प्रतिशत बढाने के लिए लगातार प्रभावी ढंग से नवाचार कर रहा है। राज्य और जिला
निर्वाचन अधिकारियों ने तो बकायदा स्वीप के नाम से सोशल मीडिया पर अकाउंट खोले हुए
हैं। जिन पर भी प्रतिदिन नए नए तरह की एक्टिविटी कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर केन्द्रित
कार्याशालाएं की जा रही है। विभिन्न राज्यों के सीईओ कार्यालय में स्वीप गतिविधियों
का कार्य देख रहे अधिकारी फेसबुक लाइव के जरिए आम मतदाता से जुड रहे हैं और उन्होंने
चुनाव प्रक्रिया से संबंध में जागरूक कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल
पर राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी समेत सभी स्तरों पर निर्देश दिये हैं।
चुनाव आयोग ने नामांकन भरने के दौरान उम्मीदवारों से सोशल मीडिया की जानकारी मांगी
है, इसके आधार पर चुनाव आयोग मॉनिटरिंग करेगा। पिछले बार के चुनाव के मुकाबले इस बार
चुनाव आयोग सोशल मीडिया की मॉनीटरिंग करने के लिए अधिक सक्रिय है और नए नए इंतजाम भी
किये जा रहे हैं। इस मर्तबा सोशल मीडिया मंचों के भारत स्थित प्रतिनिधियों और सोशल
मीडिया विशेषज्ञों के साथ मिलकर भारत निर्वाचन आयोग ने एक डेडीकेटेड व्यवस्था मॉनीटरिंग
के लिए की है। भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार राज्यों में भी सोशल मीडिया के
क्षेत्र में दक्ष संस्थाओं का उपयोग किया जा रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में एवं भारत के आम चुनाव 2014 और हाल ही में पांच
राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में सोशल मीडिया की नई भूमिका सामने आई है।
जैसे ही भारत में सोशल मीडिया के उपयोग की समझ बढ़ी तो चुनावों में इसका असर दिखा। चुनाव
आयोग ने युवाओं की सूची को भांपकर ही तो न केवल अनेक स्लोगन गढ़ बल्कि सोशल मीडिया
पर केन्द्रित कई वीडियो फिल्म बनवाई। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सुविधा
के लिए मोबाईल आधारित फीचर्स का उपयोग भरपूर किया। चुनाव आयोग 20 मार्च 2019 के ट्विटर
पर भी आ गया है। चुनाव आयोग के आईटी आधारित नवाचार जैसे नागरिकों को चुनाव अवधि के
दौरान आदर्श आचार संहिता के उलंघन की जानकारी देकर मॉडल कोड पर रिपोर्ट करने के लिए
एक आनलाइन एप शुरू किया है जो सी—विजिल एप के नाम से
जाना जाता है। क्यू मैनेजमेंट सिस्टम,
ईवीएम प्रंबधन प्रणाली, उम्मीदवार नामांकन, अनुमति, मतदान दिवस, मतगणना और परिणाम प्रसार
प्रणाली, ईआरओ नेट, राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल, नागरिकों को अपनी शिकायतें प्रस्तुत करने के लिए सिंगल विंडो कामन इंटरफेस, इलेक्ट्रानिक रूप से
प्रेषित पोस्टल बैलट सिस्टम ईटीपीबीएस,
चुनाव कार्य में संलग्न लोगों के लिए आब्जर्वर पोर्टल, ईसीआई आथेंटिकेटर एप
जैसी आईटी आधारित सुविधाएं इस चुनाव में आम मतदाताओं और चुनाव कार्य से जुडे हुए लोगों
को चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है।
भारत में आम चुनाव 1951—52 से 2014 तक का मतदान प्रतिशत
पहला चुनाव 1951—52 कुल मतदान प्रतिशत 61.16
दूसरा चुनाव 1957 कुल मतदान प्रतिशत 63.73
तीसरा चुनाव 1962 कुल मतदान प्रतिशत 55.42
चौथा चुनाव 1967 कुल मतदान प्रतिशत 61.33
पांचवा चुनाव 1971 कुल मतदान प्रतिशत 55.27
छठा चुनाव 1977 कुल मतदान प्रतिशत 60.49
सातवां चुनाव 1980 कुल मतदान प्रतिशत 56.92
आठवां चुनाव 1984—85 कुल मतदान प्रतिशत 64.01
नौवां चुनाव 1989 कुल मतदान प्रतिशत 61.95
दसवां चुनाव 1991—92 कुल मतदान प्रतिशत 55.88
ग्यारवां चुनाव 1996 कुल मतदान प्रतिशत 57.94
बारहवां चुनाव 1998 कुल मतदान प्रतिशत 61.97
तेहरवां चुनाव 1999 कुल मतदान प्रतिशत 59.99
चौदहवां चुनाव 2004 कुल मतदान प्रतिशत 58.07
पंद्रहवां चुनाव 2009 कुल मतदान प्रतिशत 58.19
सोलहवां चुनाव 2014 कुल मतदान प्रतिशत 66.48
आज एक सबसे बड़ी बात यह है कि सोशल मीडिया के कारण सूचनाओं पर से विशेषाधिकार हट
गया है। बंधन समाप्त हो गये हैं। इसलिये हर सूचना या तो नेट पर उपलब्ध है या आसानी
से हासिल की जा सकती है। चूंकि जानकारी हासिल करना सरल हो गया है इसलिए अपनी अभिव्यक्तियां
देना और मत व्यक्त करना और भी सरल और तेज हो गया है। मत का प्रसार तेज हो गया है, इसलिये निर्णय की प्रक्रिया
भी तेज हो गई है। लब्बोलुआब यह है कि चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका ज्यादा से ज्यादा
प्रासांगिक होती जा रही है। हम सब डिजिटल लोकतंत्र की ओर कदम बढा रहे हैं।
एक रिसर्च के मुताबिक सोशल मीडिया में अन्य मीडिया की तुलना में न केवल अधिक विस्तार
किया है बल्कि जनमानस के उपर गहरी पेठ बनाता जा रहा है। वैसे रेडियो को कुल 78 साल
हुए हैं जबकि टीवी को 19 साल लेकिन इन सब माध्यम को पीछे छोड़ते हुए सोशल मीडिया ने
अपने 14 से 15 साल के अल्प समय में 80 गुना अधिक विस्तार किया है जितना अभी तक किसी
मीडिया ने नहीं किया। यह प्रमाणित करता है कि भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर तेजी के साथ
आगे बढ रहा है।
(लेखक- न्यूज पोर्टल
एमपीपोस्ट डॉट कॉम के संपादक हैं।)