शुक्रवार, 4 मार्च 2011

मप्र विधानसभा में सदन के सदस्यों के नाम प्रोटोकाल सूची में महापौर से उपर रखे

मप्र विधानसभा में सदन के सदस्यों के नाम प्रोटोकाल सूची में महापौर से उपर रखे जाने का अशासकीय संकल्प वापस
भोपाल।राज्य विधानसभा में शुक्रवार 04 मार्च 2011 को अशासकीय कार्य के दौरान कांग्रेस सदस्य डॉ. निशित पटेल द्वारा लाये गये मप्र विधानसभा सदस्यों के नाम प्रोटोकाल सूची में महापौर से उपर रखे जाने का अशासकीय संकल्प ध्वनि मत से वापस हुआ। अशासकीय संकल्प पर हुई चर्चा का सामान्य प्रशासन राज्यमंत्री केएल अग्रवाल ने अपने जवाब में सदन को बताया कि वे सदस्यों को आश्वस्त करते हैं कि इस मामले पर पुनः विचार करने के लिये समय दिया जाये। वे इसका गहराई से अध्ययन करायेंगे। इसके बाद इसमें शामिल कई बिन्दुओं पर विचार किया जायेगा।
उन्होंने कहा कि केन्द्र और अन्य राज्यों में प्रोटोकाल की स्थिति क्या है। उसका परीक्षण कराने के बाद उचित कार्यवाही करेंगे। मंत्री ने इस काम के लिये तीन माह का समय सदस्यों से मांग लेकिन सदस्य इस बात पर अड़े रहे कि नहीं इसी सत्र में संशोधन करने का आश्वासन दें लेकिन मंत्री नहीं माने और उन्होंने इस संबंध में 2002 से 2008 तक संपन्न हुई। संपूर्ण प्रक्रिया का सिलसिलेवार जवाब दिया।
उन्होंने कहा कि 2008 में सामान्य प्रशासन विभाग ने यह संशोधन किया था। लेकिन यह संशोधन पहली बार 2002 में आया था। उस वक्त 4 दिसम्बर 2002 को तत्कालीन सरकार की संपन्न हुई मंत्रीपरिषद की बैठक में लिये गये निर्णय के अनुसार इस संशोधन में भोपाल, जबलपुर, इन्दौर और ग्वालियर के महापौरों को मंत्री और अन्य शहरों के महापौरों को राज्य मंत्री का दर्जा देने का प्रावधान किया गया था। इस फैसले के अनुपालन में सामान्य प्रशासन विभाग ने 30 दिसम्बर 2002 को आदेश जारी किये थे। उन्होंने बताया कि इसके बाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का क्रम प्रोटोकाल में सूची में नीचे जाने के बाद पुनः संशोधन की आवश्यकता पड़ी थी।
राज्यमंत्री श्री अग्रवाल ने सदन का आश्वस्त किया कि मप्र सरकार सदस्यों की भावना से सहमत है। और उनके मान सम्मान को ठेस नहीं लगने देंगे। उनका कहना था कि संशोधन के पूर्व केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा इस विषय में किये गये प्रावधानों का अध्ययन किया जायेगा। उन्होंने कहा कि सरकार अपनी पूरी कोशिश करेगी। इस संशोधन के विषय से संबंधित कार्यवाही शीघ्र हो।
विधानसभा में कार्यवाहक नेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह ने इस विषय पर बोलते हुये कहा कि राज्य सरकार को यह व्यवस्था करना चाहिए कि प्रदेश के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस सेवा के अधिकारियों को जब कोई निर्वाचित विधायक उनसे भेंट करने के लिये जाये ंतो वे खड़े होकर सीट आॅफर करें। उन्होंने कहा कि विधायीका का सम्मान होना चाहिए। इस सम्मान को बरकरार रखने के लिये राज्य सरकार को कदम उठाना चाहिए। श्री चौधरी ने इस अशासकीय संकल्प के पक्ष में अपना बात रखी। और तर्क भी दिया।
भाजपा विधायक विश्वास सारंग ने कहा कि देश में लोकसभा सदस्य का प्रोटोकाल में 21वें नम्बर पर स्थान हैं लेकिन मध्यप्रदेश में 29वें नम्बर पर है। जो गलत है। उन्होंने डॉ. निशित पटेल द्वारा उठाये गये अशासकीय संकल्प का समर्थन किया और अपने तर्क रखे।
चर्चा में राज्य के नगरीय विकास एवं प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर, विधानसभा में कार्यवाहक नेताप्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह, सदस्य श्री बालाबच्चन, गिरिराज किशोर, पारस दादा सखलेचा, नर्मदा प्रसाद प्रजापति, शैलेन्द्र कुमार जैन, रामलखन सिंह, श्रीकांत दुबे, प्रेमनारायण ठाकुर, डॉ. गोविन्द सिंह, विश्वास सारंग, हरेन्द्रजीत सिंह बब्बू और गिरजा शंकर शर्मा ने भाग लिया। सदन में इस अशासकीय संकल्प को वापस लिये जाने की सहमति प्रदान की।
इसके बाद मप्र विधानसभा के उपाध्यक्ष हरवंश सिंह ने आसंदी से सदन की कार्यवाही सोमवार तक के लिये स्थगित की।

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लोकशक्ति को लोक समृद्धि में बदलने वाले शिवराज

लोकशक्ति को लोक समृद्धि में बदलने वाले शिवराज
जननेता का सबसे बड़ा गुण यही है कि वह लोक शक्ति में अटूट विश्वास करता है। लोक शक्ति एक अमूर्त वस्तु है। लोकतंत्र में इसका प्रदर्शनकारी स्वरूप समय-समय पर प्रकट और अभिव्यक्त होता रहता है। कभी शहर बंद हो जाते हैं, कभी यातायात रूक जाता है। इसके विपरीत विशाल देश के किसी भू-भाग पर चंद लोग मिलकर मृत नदी को जीवित कर देते हैं। बंजर भूमि पर हरियाली बिछा देते हैं। रचनात्मक और नकारात्मक दोनों स्वरूप देखने को मिलते हैं। मुख्यमंत्री का पद सम्हालने के बाद श्री शिवराजसिंह चौहान ने जो निर्णय लिये उनमें स्पष्ट रूप से यह रेखांकित होता है कि वे विकास के लिये जनशक्ति का रचनात्मक उपयोग करना चाहते हैं। मुख्यमंत्री के रूप में जनता की सोच, समझ, विवेक और सामथ्र्य पर अटूट विश्वास रखने वाले शिवराज सिंह को जन्म दिन की बधाइयाँ।
आज राज्य सरकार और समाज एक दूसरे के करीब आये हैं और विकास पथ पर साथ-चल रहे हैं तो यह श्री शिवराज सिंह चौहान की कार्य शैली और उनके व्यक्ति का करिश्मा है। ऐसा नहीं कि अब तक जो मुख्यमंत्री हुए हैं उन्होंने लोक शक्ति पर भरोसा नहीं किया या उनमें समझ की कमी थी। अंतर यह है कि श्री चौहान ने यह बताया है कि लोक समृद्धि के लिये लोकशक्ति का उपयोग प्रायोगिक और व्यावहारिक तौर पर कैसे किया जा सकता है। विकास योजनाओं को जन आंदोलन कैसे बनाया जा सकता है और सेवाओं तक आम लोगों की आसान पहुंच कैसे बनाई जा सकती है चाहे वह जन-संचालित हो या फिर कानून द्वारा संचालित हो। सरकारी तंत्र, नीति निर्माताओं और रणनीतिकारों की भूमिका महत्वपूर्ण होते हुए भी उनकी अपनी सीमाएँ हैं। जन सहयोग और सामुदायिक भागीदारी के बिना अच्छी नीतियों का परिणाम भी शून्य होता है।
दर्शन-शास्त्र में गहरी रूचि रखने वाले श्री शिवराज सिंह को मनोविज्ञान की गहरी समझ है। आम लोगों से लगातार संवाद करते हुए वे सामाजिक समस्याओं का विश्लेषण करते रहते हैं। सामुदायिक अभिरूचियों के आधार पर ही कार्ययोजनाएं बनाने के निर्देश देते हैं। श्री चौहान इतने विनम्र हैं कि वे योजनाओं के मूल विचार का श्रेय लोगों को देने से नहीं चूकते। लोक-संवाद को वे विचारों का पालना मानते हैं। कई बार उन्होंने कहा कि विवेक और ज्ञान पर विशेषाधिकार केवल नीति निर्माताओं के पास नहीं होता। रोजाना जीवन से संघर्षशील आम लोग भी विवेक रखते हैं। यही विनम्रता उन्हें लोगों का अपना मुख्यमंत्री बनाती है और लोगों से दूरी मिटाकर उन्हें उनके नजदीक या दिलों तक ले जाती है।
सरल और विनम्र स्वभाव के कारण लोग श्री चौहान से मिलने को आतुर रहते हैं। हर उम्र और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहे लोग उनसे मिलना पसंद करते हैं। बच्चे, वयस्क, विद्यार्थी, व्यापारी, कलाकार, समाजसेवी, बुद्धिजीवी, धर्मशास्त्री सभी उन्हें सम्मान देते हैं। उनके व्यक्ति में दया, करूणा, शालीनता, विनम्रता जैसे मूल्यों की बहुलता है। गुस्सा सिर्फ अन्याय के विरूद्ध आता है। न्याय के लिये संघर्ष करने के लिये वे हमेशा तैयार रहते हैं। कई सार्वजनिक भाषणों में उन्होंने कहा है कि अन्याय के विरूद्ध संघर्ष में देरी अन्याय का साथ देने के समान है। गुस्सा उन्हें तब आता है जब उन्हें पता चलता है कि सरकारी तंत्र की ढिलाई के कारण गरीब परिवार के साथ न्याय नहीं हुआ। समाधान ऑन लाइन और गांव के भ्रमण के दौरान कई ऐसे अवसर आये जब उन्होंने गैर जिम्मेदार अधिकारियों को सीधे निलंबित कर दिया।
राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं का सूक्ष्म अध्ययन यह स्पष्ट करता है कि कल्याणकारी योजनाएं "शिव दृष्टि' से ओत-प्रोत हैं। इन योजनाओं की संरचना में चार बिंदु प्रमुख रूप से रेखांकित होते हैं - गरीबों की समृद्धि के लिये प्रतिबद्धता, युवा शक्ति का विकास, वर्तमान में विश्वास और भविष्य में आस्था। गरीब परिवार की बेटियों के विवाह की संस्थागत व्यवस्था मुख्यमंत्री की संवेदनशीलता का ही परिणाम है। इस योजना का महत्व नव-धनाढय लोग भले ही ना समझ पायें लेकिन गरीब बिटिया के माता-पिता और परिजन अच्छी तरह समझते हैं। बेटियों के जन्म को सुखद अवसर बनाने और इससे आगे बढ़कर उत्सव मनाने तक सामाजिक बदलाव लाने की पहल के पीछे शिवराज जी की अपनी सोच है। समाज ने भी उनकी पहल में भरपूर योगदान दिया है। लाड़ली लक्ष्मी, गांव की बेटी, स्कूल जाने वाली बेटियों को साइकिलें, गणवेश, छात्रवृतियां देने, नौकरियों में महिलाओं को आरक्षण देने के प्रयासों की सर्वत्र सराहना हुई है।
मध्यप्रदेश बनाओ अभियान की शुरूआत करने के पीछे भी श्री चौहान की यही सोच थी कि मध्यप्रदेश के पुनर्निर्माण में लोकशक्ति के अवदान के रूप में सभी का योगदान और सहयोग होना चाहिये।
मध्यप्रदेश एक सांस्कृतिक-धार्मिक विविधता से समृद्ध प्रदेश है। यहाँ की युवा शक्ति में आगे बढ़ने की क्षमता और प्रतिभा है। यह कला-पारखियों, उद्भट विद्वानों का प्रदेश है। सीमित संसाधनों में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल करने वाले समुदाय हैं। थोड़े से प्रशिक्षण से असाधारण कार्य करने वाला आदिवासी समुदाय है। यदि सब एक साथ आ जायें तो मध्यप्रदेश के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया और तेज हो जायेगी। मध्यप्रदेश किसी एक व्यक्ति, समुदाय या दल का नहीं है। प्रदेश के हर नागरिक को ""अपना मध्यप्रदेश'' का बोध जरूरी है। श्री शिवराज सिंह का यही दर्शन और संदेश अब प्रदेश की सीमाएं पार कर अन्य प्रदेशों में गूंज रहा है। प्रदेश में विकास के विभिन्न क्षेत्रों जैसे जल संवर्धन, वनीकरण, स्कूल चलें अभियान, परिवार नियोजन अभियान में सकारात्मक परिणाम दृष्टिगोचर हो रहे हैं। जनादेश का आदर करते हुए अब सरकार स्वयं लोगों के पास पहुंच रही है। अंत्योदय मेलों का आयोजन श्री चौहान की लोक सेवा की ललक का ही विस्तारित रूप है। जन सेवक मुख्यमंत्री को जन्म-दिन की हार्दिक शुभकामनाएँ।

मंगलवार, 11 जनवरी 2011

विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी के अवसर पर विशेष


विश्व हिन्दी दिवस 10 जनवरी के अवसर पर विशेष

हिन्दी पर गर्व करो, और हिन्दी को अभियान दो
इंटरनेट के जरिए विश्व पटल पर राज करती हिन्दी
सरमन नगेले
वह दिन दूर नहीं जब जनमानस वेबसाइट और ई-मेल के पते हिन्दी में उपयोग करने लगेगा। यह सब होगा हिन्दी आधारित ई और एम तंत्र के जरिए। संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लगातार परिवर्तन हो रहे हैं। ये वे परिवर्तन है जिनके चलते भारत का गण दिन प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा है। यानि गण को मजबूत करता हिन्दी आधारित एम व ई-तंत्र।
सामाजिक, आर्थिक विकास की क्रांति में हिन्दी आधारित मोबाईल फोन का भी सकारात्मक योगदान है। ई व एम तंत्र न केवल लोगों को नजदीक ले आया है। बल्कि सूचना संपन्न कराने में अहम भूमिका निभा रहा है। इस प्रक्रिया ने सूचना तक पहुंच का लोकतंत्रीकरण किया है। शहरी संपन्न और ग्रामीण वंचित वर्ग के बीच व्याप्त तकनीकी खाई को पाटने के क्षेत्र में यह व्यवस्था सबसे शक्तिशाली तकनीक के रूप में उभरी है।
डब्ल्यू3सी यानि वल्र्ड वाइड वेब की संपन्न हुई इंटरनेशनल कांफ्रेंस में इस बात पर गंभीरता से चर्चा हुई है कि समस्त मोबाईल फोन सभी तरह के फोंट को सपोर्ट करें और यूनिकोड का इस्तेमाल करें। डब्ल्यू3सी और टीडीआईएल ने इस दिशा में काम प्रारंभ कर दिया है। शीघ्र ही अब वेबसाईट और ईमेल के पते हिन्दी में टाईप करने को मिलेंगे।
हिन्दी में ई-प्रशासन के विभिन्न आयाम है। जिसके चलते सुशासन के लिए ई-प्रशासन एक अनिवार्य संस्थागत व्यवस्था बन गई है। भविष्य का समाज सूचना प्रौद्योगिकी से संचालित होगा। इस आदर्श परिस्थिति का पूरा लाभ समाज के सभी सदस्यों को मिले। इसके लिए आवश्यक कदम उठाना और तैयारी करना जरूरी है। ई-प्रशासन के विभिन्न पहलूओं का ज्ञान सबको समान रूप से देने के लिए सरकार के प्रयासों में समाज के सभी सक्षम सदस्यों की भागीदारी जरूरी है। लिहाजा हिन्दी भाषा में ई-प्रशासन की संस्कृति विकसित होना चाहिए। इससे जहॉ भाषायी एकीकरण होगा वहीं ऐसे प्रयासों से सूचना प्रौद्योगिकी के ज्ञान का प्रसार होगा और लोगों तक ई-प्रशासन आधारित विभिन्न नागरिक सेवाओं की जानकारी भी आसानी से पहुंचेगी। वैसे गर्व की बात यह है कि लगभग 80 सालों के पश्चात् स्वतंत्र भारत का पहला भाषायी सर्वेक्षण 21 मई 2007 से शुरू हो चुका है। यह जन को जोड़ने वाली भाषा हिन्दी का ही कमाल है कि अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने तो इसके लिए स्टॉफ ही अलग से रख लिया है।
कम्प्यूटर पर कार्य करने के लिए अंग्रेजी भाषा के ज्ञान की निर्भरता व आवश्यकता अब पूरी तरह हिन्दी के कारण खत्म हो चुकी है। भारत में 22 भाषाएं 1650 बोलियॉं प्रचलन में हैं, पूरे विश्व में चीनी भाषा के बाद हिन्दी सबसे अधिक बोली जाती है। जहां तक सरकारों का सवाल है तो केन्द्र और राज्य सरकारों की वेबसाईट, पासपोर्ट से लगाकर, रेल और अन्य सभी महत्वपूर्ण कार्यो से संबंधित वेबसाईट हिन्दी में भी उपलब्ध है।
बहरहाल वे दिन अब लद चुके हैं जब हम हिसी सायबर कैफे में बैठे-बैठे मातृभाषा हिन्दी की कोई वेबसाईट ढंूढ़ते रह जाते थे। अब इंटरनेट पर हिन्दी की दुनिया दिन प्रतिदिन समृद्ध होती जा रही है। अब हिन्दी प्रेमी घर में बैठे-बैठे हिन्दी में ईमेल, चैटिंग, हिन्दी के समाचार पत्र बॉच सकता है। रचनाओं का आनंद नियमित और पेशेवर स्तम्भ लेखक की तरह इंटरनेट पर मुफ्त जगह (स्पेस) और मुफ्त के औजारों का फायदा उठाकर हिन्दी में स्वयं को अभिव्यक्त कर सकता है, रोजगार, शिक्षा, कैरियर, चिकित्सा, व्यवसायिक, उद्योग, सेंसेक्स, योग, इतिहास आदि किसी भी विषय की जानकारी पलक झपकते ही ले और दे सकता है। समान रूचि वाले सैंकड़ों मित्रों के साथ किसी प्रासंगिक मुद्दे पर सोशल नेटवर्किंग वेबसाईट के माध्यम से एक दूसरे को लाईव देख, सुन सकता है, विचार विमर्श कर सकता है।
हिन्दी सहित स्थानीय भाषाओं में काम करने के लिए सॉफ्टवेयर का अभाव अब खत्म हो चुका है। आजकल किसी भी साक्षर को कम्प्यूटर में हिन्दी में अपना काम निपटाते देखा जा सकता है। हिन्दी कम्प्यूटिंग अब किसी अंग्रेजी जैसी विदेशी भाषा की दासी नहीं रही। केन्द्रीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार की इकाई सीडैक एवं टीडीआईएल द्वारा एक अरब से भी अधिक बहुभाषी भारतवासियों को एक सूत्र में पिरोने और परस्पर समीप लाने में अहम् भूमिका निभायी जा रही है। भाषा विशेष का कोई भी एक यूनिकोड फोंट अपने पीसी में संधारित कीजिए और सर्फिंग पर सर्फिंग करते चले जाइये।
हिन्दी आधारित वेब तकनीक को देश के बड़े अखबारों ने जल्दी ही अपना लिया। अखबारों को पढ़ने के लिए यद्यपि हिन्दी के पाठक को अलग-अलग फोंट की आवश्यकता होती है परन्तु संबंधित अखबार कि साइट से उक्त फोंट विशेष को चंद मिनटों में ही मुफ्त डाउनलोड और इंस्टाल करने की भी सुविधा रहती है।
कुल मिलाकर सूचना एवं संचार तकनीकी के कारण हिन्दी पर गर्व करो, और हिन्दी को अभियान दो की जरूरत है।
लेखक - न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट डॉट कॉम के संपादक हैं।

सोमवार, 1 नवंबर 2010

1 नवम्बर म.प्र. स्थापना दिवस, 54 साल 15 राज्यपाल, 29 मुख्यमंत्री

1956 के 1 नवंबर की मध्यरात्रि में दीपावली की अमावस्या के गहन अंधेरे के बावजूद नये मध्य प्रदेश के निर्माण का उजाला हुआ। भाषावार प्रांतो की रचना के बाद बने मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के राजभवन में पंडित रविशंकर शुक्ल ने पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। लगभग 44 वर्ष बाद फिर एक अवसर आया और मध्य प्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बना। वर्ष 1956 और 2000 की ये तारीखें भारतीय इतिहास और मध्य प्रदेश के इतिहास की ऐसी तारीखें हैं जिनसे समाज और राजनीति के इतिहास के नये दस्तावेज लिखे जाने प्रारंभ हुए। मध्य प्रदेश को अस्तित्व में आये 54 वर्ष पूरे हो गए हैं। इन बरसों में यहां बहुत कुछ घटा है और बदला है और काफी कुछ वैसा का वैसा है जैसा 1 नवम्बर 1956 को था। भारत के इतिहास की अनेक महत्वपूर्ण घटनाएं मध्य प्रदेश के भूभाग पर हुई है, चूंकि किसी राज्य का अस्तित्व में आना एक राजनैतिक घटना है लिहाजा मध्य प्रदेश के अभी तक के राजनैतिक घटनाक्रम की पहली कड़ी के रूप में राज्यपाल और मुख्यमंत्रियों पर गौर करना लाजिमी है। वैसे मध्य प्रदेश की पावन भूमि में विलक्षण प्रतिभाओं ने जन्म लिया है। असाधारण व्यक्तित्व के धनी लोगों ने मध्य प्रदेश की निःस्वार्थ सेवा की है। महान व्यक्ति अपने सदगुणों और मानवता को समर्पित कार्यो से सदियों जीवित रहते हैं। मध्य प्रदेश का राजनैतिक इतिहास वस्तुतः राज्य के प्रथम राज्यपाल डा. पट्टाभि सीतारमैया, श्री एच.व्ही. पाटस्कर, श्री के.सी. रेड्डी, श्री एस.एन. सिंह, श्री एन.एन. वान्चू, श्री सी.एम. पूनाचा, श्री बी. डी. शर्मा, प्रो. के.एम. चाण्डी, श्रीमती सरला ग्रेवाल, कुंवर महमूद अली खॉ, श्री मो.शफी कुरैशी, डा. भाई महावीर, श्री रामप्रकाश गुप्त, डा. बलराम जाखड़, श्री रामेश्वर ठाकुर एवं राजपथ के सहयात्री और राज्य के शिखर व्यक्तित्व प्रथम मुख्यमंत्री श्री रविशंकर शुक्ल, श्री भगवंतराव मंडलोई, डॉ0 कैलाश नाथ काटजू, श्री द्वारका प्रसाद मिश्र, श्री गोविन्दनारायण सिंह, श्री राजा नरेशचन्द्र सिंह, श्री श्यामा चरण शुक्ल, श्री प्रकाश चन्द्र सेठी, श्री कैलाश जोशी, श्री वीरेन्द्र कुमार सखलेचा, श्री सुन्दर लाल पटवा, श्री अर्जुन सिंह, श्री मोतीलाल वोरा, श्री दिग्विजय सिंह, सुश्री उमा भारती, श्री बाबूलाल गौर, श्री शिवराज सिंह चौहान जैसे विद्वान राजनीतिज्ञों के कृतित्व से समृद्ध हुआ है। गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह, अर्जुन सिंह व कैलाशनाथ काटजू के अलावा शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के ऐसे मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। इनके अलवा कोई मुख्यमंत्री नहीं है जिसे पूरे पांच साल राज करने का अवसर मिला हो। सुंदरलाल पटवा, श्यामाचरण शुक्ल तथा मोतीलाल वोरा एक से अधिक बार मुख्यमंत्री रहे लेकिन कोई भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। 1 नंवबर 1956 को नया म.प्र. बना और प्रथम मुख्यमंत्री हुए पं. रविशंकर शुक्ल। दो माह बाद ही उनका निधन हो गया और डॉ. कैलाशनाथ काटजू ने मुख्यमंत्री का पद संभाला। वे पूरे पांच साल मुख्यमंत्री रहे, लेकिन 1962 का चुनाव वे हार गए इसलिए फिर नए मुख्यमंत्री की तलाश शुरू हुई।1990 के बाद के दौर को राजनैतिक स्थिरता का दौर कहा जा सकता है। 1990 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को बहुमत मिला और उनकी सरकार में सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री बने। वे 1992 तक मुख्यमंत्री पद पर रहे। 1992 में उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया। 1993 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पुनः सŸाा में आई और पहली बार विधायकों के बहुमत के आधार पर दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बनाए गए। उन्होंने अपना एक नहीं दो कार्यकाल लगातार पूरा किया। मध्यप्रदेश की प्रथम महिला एवं प्रथम पिछड़े वर्ग की और प्रथम सन्यासिन सुश्री उमा भारती ने 8 दिसम्बर 2003 को 26 वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। व्यक्तिशः वे पंद्रहवीं मुख्यमत्री थीं जो आठ माह पंद्रह दिन ही इस पद पर रहीं। 23 अगस्त 2004 को मजदूर से मुख्यमंत्री तक का सफर तय करते हुये बाबूलाल गौर ने 27 वें मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। श्री गौर 29 नवंबर 2005 तक मुख्यमंत्री रहे। म.प्र. के युवा तुर्क नेता शिवराज सिंह चौहान ने 29 नवंबर 2005 को राज्य के 28 वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। श्री चौहान ने पुनः 12.12.2008 को 29वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। श्री चौहान व्यक्तिशः मध्यप्रदेश के स़त्रहवें मुख्यमंत्री हैं। सीएम यानि हमेशा कॉमनमेन की भूमिका में दिखने वाले शिवराज सिंह चौहान ऐसे गैरकांगे्रसी मुख्यमंत्री हैं। जिन्होंने न केवल पहला कार्यकाल किसान से मुख्यमंत्री तक का राजनैतिक सफलीभूत सफरनामा तय किया, वरन् दूसरा कार्यकाल भी तय कर रहे हैं। कुल मिलाकर बीते 54 सालों में मध्य प्रदेश व यहां के बाशिंदों ने 15 राज्यपाल और 29 मुख्यमंत्रियों को व उनके कार्यकाल को देखा है। (लेखक ने म.प्र. के राज्यपाल और मुख्यमंत्रियों पर डिजिटल दस्तावेज का सृजन किया है।)

सोमवार, 30 अगस्त 2010

भारत में आमजन की सूचना के प्रति जागरूकता बढ़ी, अमेरिका में पाठकों के सामने न्यू मीडिया का विकल्प- न्यूयार्क टाइम्स के पत्रकार श्री बजाज

पत्रकारिता के लिये आज अनेक माध्यम मौजूद हैं सभी माध्यमों का आखिर उद्देश्य सत्य को पाठकों के सामने लाना होता है। पत्रकारिता किसी भी माध्यम से हो पत्रकारिता ही होती है। यह बात द न्यूयार्क टाइम्स के साउथ एशिया संवाददाता विकास बजाज ने शुक्रवार 27 अगस्त 2010 को स्वराज भवन, भोपाल मेंकही। श्री बजाज अमेरिकन सेंटर मुंबई एवं न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट भोपाल के सहयोग से पत्रकारिता के बदले परिदृश्य विषय पर आयोजित व्याख्यान सहपरिचर्चा में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे।
श्री बजाज ने मीडिया के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि अभी भारत में अखबारों की प्रसार संख्या और बढ़ेगी। क्योंकि भारत में साक्षरता का प्रतिशत तेजी के साथ बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों में सूचना के प्रति जागरूकता बढ़ी है और यही कारण है कि आने वाले दिनों में अखबारों का प्रसार बढ़ेगा। उन्होंने बताया कि अमेरिका में पाठकों के सामने अनेक विकल्प है और वे अनेक विकल्पों का लाभ इसलिए उठा पाते क्योंकि वहां पर साक्षरता दर अधिक है। साथ ही जनसंख्या दर की बढ़ोत्तरी का प्रतिशत बहुत कम है। उन्होंने कहा कि अमेरिका के पाठकों के सामने न्यू मीडिया का विकल्प तेजी के साथ सामने प्रकट हुआ है। इसलिए समाचारों पत्रों की प्रसार संख्या में गिरावट आ रही है। उन्होंने कहा कि समाचार के सूत्र का हर संभव पत्रकारों को संरक्षण करना चाहिए। कार्यक्रम के आरंभ में एमपीपोस्ट के संपादक सरमन नगेले ने विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने आंकड़े के साथ तथ्यों को रखा। श्री नगेले ने इस बात की चिंता जाहिर की कि विदेशी अखबारों में भारत के विभिन्न राज्यों के किसी एक छोटे हिस्से के समाचार को सरकार की असफलता के साथ जोड़कर प्रकाशित किया जात है जबकि विकास के कार्य व्यापक पैमाने पर होते हैं उनकी अनदेखी होती है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार और अन्य राज्यों की सरकारें ऐसे अनेक काम सतत् रूप से करती हैं जो सरकारी तंत्र की सफलता दिखाते हैं। लेकिन वे काम विदेशी समाचार पत्रों के समाचारों का हिस्सा नहीं बन पाते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया और मोबाईल जर्नलिज्म के बारे में भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि 2012 तक जब भारत की समस्त ग्राम पंचायतों में इंटरनेट सुविधा होगी तब पत्रकारिता का परिदृश्य क्या होगा? यह देखना होगा। द वीक पत्रिका के मध्य प्रदेश ब्यूरो चीफ दीपक तिवारी ने ब्रिटेन मीडिया के बारे में अपना पक्ष रखा। श्री तिवारी ने पत्रकारिता के सिलसिले में हाल ही में ब्रिटेन यात्रा में जो समझा वहां की मीडिया के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि ब्रिटेन में अखबार 60 से 70 पेज के होते हैं। इन अखबारों की कीमत भारतीय मूल्य में लगभग 70 से 80 रूपये की होती है। विज्ञापन भारतीय अखबारों की तुलना में कम होते हैं। इसका कारण उन्होंने बताया कि अभी मंदी के दौर की वजह से ऐसा हो रहा है। श्री तिवारी ने कहा कि विदेशी मीडिया में मानवीय मूल्यों की खबरों को भारतीय मीडिया से अधिक स्थान दिया जाता है। श्री तिवारी ने कहा कि जो पत्रकारिता में परिवर्तन आ रहे हैं उसकी चिंता भारतीय मीडिया को करना चाहिए। नवदुनिया के संयुक्त स्थानीय संपादक राजेश सिरोठिया ने इस बात की चिंता जताई कि बदलते समय में मीडिया का बदलना भी स्वाभाविक है। किन्तु खबरों को ढ़ूढ़ने के बजाये खबरें पैदा करने की प्रवृत्ति घातक है। उन्होंने खबरों की तह तक जाने की बात भी कही। हिन्दुस्तान टाइम्स के विशेष संवाददाता रंजन श्रीवास्तव ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि बदलाव के इस दौर में अखबार बहुसंस्करणीय हो गए है। और हर शहर की खबर पढ़ने के लिए एक अखबार की जरूरत होती है। इसलिए यह बदलाव पाठकों के लिये बहुत फायदे का नहीं है। उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश के राजनेता और प्रशासक अन्य राज्यों की तुलना में अधिक मिलनसार हैं। जो पत्रकारिता के लिहाज से अच्छा है। टेलीविजन पत्रकारिता पर स्टार टीवी के मध्य प्रदेश ब्यूरो चीफ ब्रजेश राजपूत ने अपनी बात रखते हुए कहा कि स्टिंग आपरेशन को लेकर बहुत सारी बाते हुयी और निष्कर्ष यह निकला कि यह समाज के लिये घातक है। आज बदलते दौर में स्टिंग आपरेशन होना लगभग खत्म हो गये है। और जहां हो रहा है वह एक दूसरे से बदला लेने के लिये हो रहा है। श्री राजपूत ने टेलीविजन के प्रभाव को सार्थक बताया और कहा कि बदलते समय में अब इसकी स्वीकार्यता को मानना ही होगा। आईबीएन 7 के मध्य प्रदेश ब्यूरो चीफ मनोज शर्मा ने परिचर्चा में हस्तक्षेप करते हुए कहा कि संवेदनशील मुद्दों पर कवरेज के समय दर्शकोंका हित सर्वोपरि होना चाहिए। जनसंपर्क विभाग, मध्य प्रदेश शासन के उप सचिव और अपर संचालक लाजपत आहूजा ने बदलते समय में न्यू मीडिया की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया। उन्होंने एक रोचक उदाहरण देते हुए कहा कि विकीपिडीया में एक स्थान पर भोपाल का सबसे बड़े अखबार के रूप में अकबर टाइम्स लिखा हुआ था। जनसंपर्क विभाग के अतिरिक्त संचालक समाचार सुरेश तिवारी ने विकास बजाज के व्याख्यान में हस्तक्षेप करते हुए बताया कि मध्य प्रदेश के जनसंपर्क विभाग की वेबसाइट निरंतर अपडेट होने वाली पीआईबी या अन्य वेबसाइट की तुलना में बेहतर है। उन्होंने न्यूयार्क टाइम्स के संवाददाता श्री बजाज से अपेक्षा की है कि वे एमपीइनफो डॉट ओआरजी वेबसाइट विजिट करें। उन्होंने श्री विकास बजाज के प्रश्न के उत्तर में बताया मध्य प्रदेश के जनसंपर्क अधिकारी हर समय फोन पर उपलब्ध रहते हैं। कार्यक्रम का संचालन माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभागाध्यक्ष पुष्पेन्द्रपाल सिंह ने किया। व्याख्यान सहपरिचर्चा में अमेरिकन सेंटर मुंबई की सहायक मीडिया सलाहकार सुश्री सुमेधा रायकर महत्रे, संचालक संस्कृति मध्यप्रदेश शासन श्रीराम तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा, रामभुवन सिंह कुशवाह, दिनेश जोशी, दैनिक भास्कर के विशेष संवाददाता विजय मनोहर तिवारी, दैनिक नई दुनिया के अपूर्व तिवारी, बिजनेस स्टेंडर्ड के मध्य प्रदेश ब्यूरो चीफ शशिकांत त्रिवेदी, मुंबई के मीडिया कंसलटेंट केशव राय, पायनियर के विवेक त्रिवेदी, भास्कर जबलपुर के संजय शर्मा, स्वतंत्र मत के प्रेम पगारे, आईएनएस के संदीप पौराणिक, महामेधा के डॉ. आनंद प्रकाश शुक्ल, श्रीमती विद्युलता, यूएनआई के बीडी घोष और पत्रकार मनोज कुमार, अनिल सौमित्र, अलोक सिंघई, अरशद अली, विनोद श्रीवास्तव, कृष्ण मोहन झा, अनिल तिवारी ने भागीदारी की। इस अवसर पर भोपाल के अनेक पत्रकार और मीडियाकर्मी उपस्थित थे।

मेरे बारे में

सरमन नगेले
संपादक
ई-समाचार पत्र
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पत्रकारिता - साधनों की शुध्दता के साथ लोकहित के उद्देश्य से सत्य उध्दाटित करने की रचनात्मक प्रक्रिया।
पत्रकार - एक चिंतक, योध्दा और सत्य का रक्षक।
सफलता - उत्कृष्ट होना और बने रहना सफल होने से ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।
जन्म - 10 जून 1969 को बुंदेलखण्ड के झांसी शहर के स्व. श्री एम.एल. नगेले एवं श्रीमती शकुन नगेले के मध्यम परिवार में। शिक्षा - हिन्दी में स्नातक,
कैशोर्य की देहरी लांघते ही मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पदार्पण।
जीवन यात्रा - रचनात्मक एवं राजनीतिक लेखन की ओर छात्रावस्था से ही रूझान रहा।
म.प्र. के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री सीडी संस्करण प्रथम एवं द्वितीय। सामाजिक-आर्थिक विषयों पर लेखन की दृष्टि से भारत सरकार ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह, केरल, तामिलनाडू जैसे राज्यों का अध्ययन भ्रमण कराया। इस यात्रा तथा मधयप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र की सामाजिक आर्थिक अधोसंरचना का अधययन भ्रमण के दौरान सृजित हुई।
''माया'' राष्ट्रीय राजनैतिक पत्रिका में कुछ मापदण्ड निर्धारित कर मध्यप्रदेश के टाँप टेन एम.एल.ए. चयनित कर विधायकों पर केन्द्रित विशेषांक का सृजन। अब तक के मप्र विधानसभा के अध्यक्षों पर केन्द्रित सीडी का सृजन। सिंहास्थ 2004 पर केन्द्रित सीडी का सृजन। आईटी स्टेटस इन मध्यप्रदेश, आईटी फॉर डव्लेपमेंट, ई@मध्यप्रदेश विशेषांक का संपादन। मध्यप्रदेश में ई-सेवाएं एक नजर में। प्रवासी भारतीय दिवस 7-9 जनवरी, 2008 पर विशेषांक का संपादन।
लगभग दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय - इंटरनेट मीडिया एक नये स्वरूप में सामने आ रहा है। हिन्दी भाषी राज्यों में इंटरनेट पत्रकारिता का शैशवकाल है। भारत में इंटरनेट पत्रकारिता की संभावनाओं को देखते हुए http://www.mppost.org/ पर मध्यप्रदेश का पहला इंटरनेट हिन्दी समाचार पत्र एक जनवरी 2005 से शुरू किया।
चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, असाम, पंजाब, तमिलनाडू, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात की आई.टी. नीतियों का अध्ययन, इंटरनेट पत्रकारिता से जुड़े लोगों, संस्थाओं प्रमुख, आई.टी. कंपनियों, विशेषज्ञों से सतत् संवाद। इंटरनेट पर आयोजित अंर्तराष्ट्रीय सेमीनार डब्ल्यू3सी में मध्यप्रदेश की ओर से प्रतिनिधित्व किया। साऊथ एषिया की सबसे बड़ी आई.टी. प्रर्दशनी एवं सेमीनार जीटेक्स इंडिया में भाग लिया। साऊथ एशिया के सबसे बड़े संचार एवं आई.टी. इवेंट कर्न्वजेंस इंडिया- 2006 में शामिल हुए। प्रवासी भारतीय दिवस में विशेष रूप से मीडिया प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। म.प्र. सरकार द्वारा आयोजित आई.टी. समिट में हिस्सा लिया।
पत्रकारिता -
बीबीसी- वेबदुनिया द्वारा आयोजित ऑन लाइन पत्रकारिता कार्यशाला में भागीदारी। राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली, अक्षर भारत, दिल्ली, राज्य की नई दुनिया, भोपाल जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में संवाददाता के रूप में कार्य। म.प्र. के प्रमुख दैनिक नवीन दुनिया जबलपुर के भोपाल ब्यूरो प्रमुख के रूप में संबध्द रहे। महाकौशल के प्रमुख सांध्य दैनिक सीटाइम्स के भोपाल ब्यूरो प्रमुख के रूप में संबध्द रहे। राष्ट्रीय राजनैतिक पत्रिका ''माया'' के मध्यप्रदेश विशेष संवाददाता के रूप में संबध्द रहे। दूरदर्शन, आकाशवाणी के लिये संवाद लेखन, विधानसभा कार्यवाही की समीक्षात्मक रिर्पोट लेखन। भोपाल दूरदर्शन से प्रसारित लाइव फोन इन कार्यक्रम शुभ-शाम में 17 अगस्त 2009 को विषय विशेषज्ञ के रूप में वेब जर्नलिज्म में भविष्य का प्रसारण।
संप्रति -
संपादक - एमपीपोस्ट इंटरनेट समाचार एवं विचार सेवा और वेबसाइट http://www.mppost.org/
ब्लाग - http://journocrat.blogspot.com/
समन्वयक, सेन्ट्रल प्रेस क्लब, भोपाल। उपाध्यक्ष, ब्यूरो चीफ एसोशिएशन, भोपाल। संस्थापक, सदस्य एवं संचालक राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्यादित, भोपाल, सदस्य- मध्यप्रदेश जर्नलिस्ट यूनियन (जम्प)। आजीवन सदस्य, मध्यप्रदेश विधानसभा पुस्तकालय, भोपाल। सदस्य, इंटरनेट आधारित सेवा सॉल्यूषन एक्सचेंज। अनेक राष्ट्रीय एवं प्रांतीय सामाजिक एवं रचनात्मक संगोष्ठियों में हिस्सा लिया।
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462 003. दूरभाष - (91)-755-2779562 (निवास)
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