शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

मध्यप्रदेश को भारत सरकार के चार ई-गवर्नेंस अवार्ड मिले

राजस्थान की राज्यपाल ने पुरस्कृत किया


मध्यप्रदेश सरकार को ई-शासन के उत्कृष्टतम क्रियान्वयन में विशेष पहल के लिए भारत सरकार द्वारा नॅशनल ई-गवर्नेंस अवार्ड से नवाजा गया है। यह अवार्ड राजस्थान की राज्यपाल श्रीमती प्रभा राव ने 18 फरवरी 2010 को जयपुर में शुरू हुई दो दिवसीय 13वीं नॅशनल कांफ्रेंस ऑन ई-गवर्नेंस के अवसर पर प्रदान किये। इस अवसर पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रधानमंत्री कार्यालय और कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन तथा संसदीय कार्य राज्यमंत्री पृथ्वी राज चव्हान, संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री सचिन पायलट मौजूद थे।
एमपीपोस्ट को मिली अधिकृत जानकारी के अनुसार नॅशनल अवार्ड फॉर ई-गवर्नेंस 2009-10 के सात श्रेणियों के ये पुरस्कर 17 संगठनों को दिए गए और एक संगठन को विषेष उल्लेख का पुरस्कार दिया गया। 18 विजेताओं में से सर्वाधिक चार अवार्ड मध्यप्रदेष के खाते में आये हैं। यह मध्यप्रदेष सरकार की बड़ी उपलब्धि है।
राजस्थान की राज्यपाल श्रीमती प्रभा राव ने नागरिकों के लिए उत्कृष्ट प्रदर्षन केन्द्रित सेवा वितरण के लिए मध्यप्रदेष सरकार के उपक्रम एमपीऑनलाइन को गोल्डन आईकॉन अवार्ड प्रदान किया। यह अवार्ड राज्य के आईटी विभाग व मुख्यमंत्री के सचिव और एमपी ऑनलाइन के सीईओ अनुराग जैन तथा ओएसडी आईटी विभाग अनुराग श्रीवास्तव ने प्राप्त किया। जबकि वन भूमि में काबिज आदिवासियों को वनाधिकार पट्टे वितरण के क्रियान्वयन के लिए मध्यप्रदेष के वन विभाग में ई-षासन में प्रौद्योगिकी के अभिनव प्रयोग के लिए गोल्डन आईकॉन अवार्ड अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक आईटी, वन विभाग, मध्यप्रदेष अनिल ओबेराय ने प्राप्त किया। इसी श्रेणी में मध्यप्रदेष ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण भोपाल को प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत इंटरनेट आधारित जीआईएस टेक्नालॉजी अभिनव प्रयोग के लिए सिल्वर आईकॉन अवार्ड मध्यप्रदेष ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकारण के मुख्य कार्यपालन अधिकारी संजय दुबे ने प्राप्त किया। षिक्षा के क्षेत्र में विषेष पुरस्कार फोकस के अंतर्गत मध्यप्रदेष के स्कूल षिक्षा विभाग के एज्यूकेषन पोर्टल को गोल्डन आईकॉन अवार्ड से नवाजा गया है। यह अवार्ड आयुक्त राज्य षिक्षा केन्द्र मनोज झलानी ने प्राप्त किया। इसी के साथ मध्यप्रदेष सर्वाधिक चार अवार्ड हासिल करने वाला देष का पहला प्रदेष बन गया है। ये अवार्ड राजस्थान की राज्यपाल श्रीमती प्रभा राव ने प्रदान किये।
इनफारमेषन कम्यूनिकेषन टेक्नालाजी (आईसीटी) को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला प्रतिष्ठित ई-गर्वनेंस अवार्ड 2009-2010 का म.प्र. इस मर्तबा विजेता राज्य भी बना है। मध्यप्रदेष सरकार के चार विभागों को उनके कामकाज व गुण-दोष के आधार पर ई-गवर्नेंस अवार्ड मिले हैं। इसी के साथ राज्य के चार विभाग ई-गवर्नेंस के माध्यम से सुषासन प्रदान करने में अग्रणी बन गए हैं।
म.प्र. में चल रहे ई-षासन के उत्कृष्टतम कार्य को न केवल भारत सरकार के प्रषासनिक सुधार और सार्वजनिक षिकायत विभाग एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने मान्यता प्रदान की है। बल्कि उसके क्रियान्वयन मंे विषेष पहल को प्रोत्साहन देने के लिए ई-गवर्नेेंस का प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत सरकार के प्रषासनिक सुधार और सार्वजनिक षिकायत विभाग एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने संयुक्त रूप से प्रदान किए।
मुख्यमंत्री म.प्र. षिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेष में ई-गर्वनेन्स के क्षेत्र में लगातार नये-नये प्रयास और प्रयोग हो रहे है मुख्यमंत्री की मंषा है कि आमजन को सुविधायें सरलता से और तुरंत बिना किसी बाधा के कैसे मिले, इस दिषा में म.प्र. का आईटी विभाग निरंतर प्रयास कर रहा है। ई-गर्वनेंस के चार अवार्ड मिलने पर राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान व आईटी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने विजेता विभागों की टीम को बधाई दी है।
उल्लेखनीय है कि ई-षासन के उत्कृष्टतम कार्य को मान्यता प्रदान करने, उसके क्रियान्वयन मंे विषेष पहल को प्रोत्साहन देने के लिए ई-गवर्नेेंस का प्रतिष्ठित पुरस्कार भारत सरकार के प्रषासनिक सुधार और सार्वजनिक षिकायत विभाग एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग संयुक्त रूप से प्रतिवर्ष प्रदान करता है।

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

मध्यप्रदेश बना बेस्ट ई-गवर्नेंस स्टेट

मध्यप्रदेश को मिला बेस्ट ई-गवर्नेंस राज्य का प्रतिष्ठापूर्ण अवार्ड
सरमन नगेले

मध्यप्रदेश को अपने ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में समग्र प्रदर्षन के आधार पर बेस्ट ई-गवर्नेंस राज्य का सी.एस.आई. ई-गवर्नेंस निहीलेण्ट अवार्ड 2008-09 प्राप्त हुआ। इस प्रतिष्ठापूर्ण अवार्ड के अलावा राज्य सरकार के विभागों की श्रेणी के तहत स्कूल षिक्षा विभाग तथा जिला स्तर पर ई-षासन के क्षेत्र में उत्कृष्टता का प्रदर्षन करने की श्रेणी में सागर जिले को विषेष मान्यता प्रदान करते हुए ई-गवर्नेंस पर 9 अक्टूबर 2009 को पुणें में आयोजित सीएसआई के वार्षिक सम्मेलन में ये अवार्ड मिले। इसी के साथ मध्यप्रदेष ई-गवर्नेंस के माध्यम से सुशासन प्रदान करने में अग्रणी राज्य बन गया है। इस तथ्य को न केवल रेखांकित किया गया है बल्कि गुण-दोष के आधार पर प्रदेश को सी.एस.आई. ई-गवर्नेंस निहीलेण्ट अवार्ड 2008-09 के तीन श्रेणियों के पुरस्कार मिले हैं। राज्य श्रेणी का अवार्ड मध्यप्रदेष के आई.टी. विभाग और मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान के सचिव अनुराग जैन को तथा विभाग की श्रेणी के तहत स्कूल षिक्षा विभाग की ओर से बी.आर. नायडू, आयुक्त लोक षिक्षण संचालनालय को तथा जिला श्रेणी के पुरस्कार के अंतर्गत सागर जिले के कलेक्टर हीरालाल त्रिवेदी को टी.सी.एस के चीफ एस महालिंगम और एसआईजी ई-गवर्नेंस के चेयरमेन प्रो. अषोक अग्रवाल ने दिये। अवार्ड प्राप्त करने से पूर्व अनुराग जैन ने प्रदेष में ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में हो रहे काम व विभिन्न पहलों पर अपना एक प्रस्तुतिकरण दिया। श्री जैन ने कार्यक्रम में अपना मुख्य भाषण भी दिया। मुख्यमंत्री मप्र षिवराज सिंह चैहान ने इस गौरवपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने के लिए आईटी मंत्री कैलाष विजयवर्गीय, सचिव आईटी अनुराग जैन, ओएसडी आईटी विभाग अनुराग श्रीवास्तव को बधाई दी है।मध्यप्रदेष को मिले बेस्ट ई-गवर्नेंस राज्य का अवार्ड प्रतिष्ठापूर्ण इन मायनों में है, भारत के आई.टी क्षेत्र के प्रोफेषनल, प्रोजेक्ट मैनेजर, सीआईओस्, सीटीओस् और आईटी वेंडर वाले लगभग 30 हजार सदस्यों वाली 1965 में गठित संस्था सीएसआई के 65 चेप्टर भारत में हैं। सीएसआई द्वारा ई-गवर्नेंस अवार्ड पिछले कई वर्षो से दिए जा रहेे हैं। मध्यप्रदेष को अपने ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में समग्र प्रदर्षन के आधार पर वर्ष 2008-09 के लिये बेस्ट ई-गवर्नेंस राज्य विजेता घोषित किया गया है। इस दौरान राज्य शासन की पहल विषेष रूप से नीतियों के संबंध में फैसला, बुनियादी सुविधाओं, विभिन्न परियोजनाओं के साथ-साथ, क्षमता निर्माण आदि को न केवल राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है बल्कि उत्तम ई-षासित राज्य के पुरस्कार से नवाजा गया। कम्प्यूटर सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा प्रति वर्ष केन्द्र और राज्यों के विभागों एवं जिलों तथा विभिन्न परियोजनाओं के कार्यों के मूल्यांकन के पश्चात् यह पुरस्कार प्रदान किया जाता है। वर्ष 2008-09 के लिए मध्यप्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग को सर्वोत्तम ई-प्रशासन के लिए सी.एस.आई. निहीलेंट ई-गर्वनेंस अवार्ड के लिए चुना है। साथ ही जिला स्तर पर ई-षासन के क्षेत्र में उत्कृष्टता का प्रदर्षन करने की श्रेणी में सागर जिले को विषेष मान्यता प्रदान करते हुए चुना गया है। सीएसआई निहीलेण्ट अवार्ड के लिए देषभर से आवेदन आये थे। परिक्षणोंपरांत कम्प्यूटर सोसायटी आॅफ इंडिया की टीम व ज्यूरी के सदस्यों ने मध्यप्रदेष राज्य, स्कूल षिक्षा विभाग एवं सागर जिला को चुना इसके बाद ई-गवर्नेंस के प्रभावी क्रियान्वयन के संबंध में सीएसआई की टीम और ज्यूरी के सदस्यों ने मौका मुआयना किया। साथ ही राज्य शासन के संबंधित अधिकारियों से ई-गवर्नेंस की प्रभावी भूमिका को भी समझा। तत्पष्चात् प्रस्तुतिकरण के लिए सीएसआई द्वारा मध्यप्रदेष के मुख्यमंत्री के व आईटी विभाग के सचिव अनुराग जैन को आमंत्रित किया गया। राज्य के आईटी सचिव के प्रस्तुतिकरण के पष्चात् उत्कृष्ट ई-षासित राज्य के अवार्ड के लिए मध्यप्रदेष को विजेता घोषित किया गया। गौरतलब है कि प्रस्तुतिकरण एवं अंतिम मूल्यांकन 15 और 16 सितम्बर 2009 को संपन्न हुआ। अवार्ड की संपूर्ण प्रक्रिया में लगभग 6 माह का समय लगा। दो अप्रैल से यह प्रक्रिया प्रारंभ हुई जो 16 सितम्बर 2009 को समाप्त हुई। तदोपरांत 2008-09 के सीएसआई निहीलेंट अवार्ड घोषित किये गये। म.प्र. में ई-गवर्नेंस की अवधारणा किस प्रकार आकार ले रही है एक नजर ’’कल्याणकारी राज्य के लिए विकास और सुषासन दो ऐसे क्षेत्र होते हैं जिनके आधार पर उन्नति और प्रगति का मार्ग बनता है, विकास के लिए सुषासन पहली शर्त है। मप्र के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व वाली सरकार ने इस मुद्दे पर अपनी संवेदनषीलता प्रदर्षित करते हुए मध्यप्रदेष में नया इतिहास लिखने का संकल्प दोहराया है। सुषासन के लिए सबसे जरूरी है उपलब्ध तकनीकि और प्रौद्योगिकी का सकारात्मक उपयोग। मध्यप्रदेष ने षिव के नेतृत्व में इस दिषा में अपने कदम बढ़ा दिए हैं।’’ वैसे ई-गवर्नेंस मध्यप्रदेष के लिए एक घटनाक्रम है जो पिछड़े राज्यों को एक करने में अपनी भूमिका निभायेगा। आईटी के प्रवर्तनकारी गुणों ने लोगों के जीवन को आसान बना दिया है। अपनी लोकहितैषी सेवाओं के पर्दापण के साथ विभिन्न विभागों की कार्यप्रणाली को भी सहज बनाया है। ई-गवर्नेंस से पारदर्षिता में भी वृद्धि हुई है। जिसके कारण भ्रष्टाचार की संभावनाओं पर धीरे धीरे विराम लग रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत सप्लाई के बहाल होने और संचार क्रांति के कारण आईटी ने जनता की आत्म निर्भरता में वृद्धि की है। जहां तक मध्यप्रदेष का सवाल है तो यहां के राज्य मंत्रालय का कम्प्यूटरीकरण के साथ मुख्यमंत्री सचिवालय का कम्प्यूटरीकरण, सीएम की पब्लिक घोषणाओं की माॅनिटरिंग, चुनाव घोषणा पत्र के क्रियान्वयन की माॅनिटरिंग, मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान व राहत कोष की माॅनिटरिंग, मंत्रिपरिषद के निर्णयों के क्रियान्वयन की माॅनिटरिंग, मंत्रालय में प्राप्त पत्रों के अलावा मुख्यंमत्री सचिवालय और मुख्य सचिव सचिवालय के समस्त संदर्भो की व्यवस्था विभागीय माॅनिटरिंग सिस्टम के तहत है। राज्य मंत्रालय का फाइल मूवमेंट माॅनिटरिंग सिस्टम (एफएमएमएस) भी है। मुख्यमंत्री माॅनिटरिंग कार्यक्रम (परफाॅरमेंष मैनेजमेंट सिस्टम) से मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान ने अपने को जोडकर रखा है। वे समय समय पर इस व्यवस्था के अंतर्गत माॅनिटरिंग करते हैं। समाधान आॅनलाईन द्वारा जनषिकायतों का निराकरण भी सतत् रूप से किया जाता है। परख कार्यक्रम के अंतर्गत राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण अंचलों में उपलब्ध कराई जा रही मूलभूत सुविधाओं पर न केवल नजर रहती है। बल्कि इसके जरिए मूलभूत आधारित सुविधाओं की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाया जाता है। मुख्यमंत्री श्री चैहान इस कार्यक्रम की प्रत्येक माह न केवल समीक्षा करते है बल्कि जिलों में पदस्थ व संबंधित अधिकारियों से रूबरू भी होते हैं। राज्य मंत्रालय के कर्मचारियों से संबंधित मुख्य जानकारी मसलन- पे स्लिप, सरकुलर, पदक्रम सूची, ऋण तथा अग्रिम, विभागीय भविष्य निधि कोष दावे, आवास आवंटन, भारत सरकार को भेजे गए प्रस्ताव, दावा प्रबंधन, व्यक्तिगत सूचना प्रबंधन, जी2जी व जी2ई के अलावा अन्य विषेष फीचर भी इंट्रानेट पोर्टल ीजजचरूध्ध्अंससंइीण्उचण्दपबण्पद पर उपलब्ध है। म.प्र. के लगभग सभी विभाग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ई-गवर्नेंस के तहत नेटवर्किंग से जुड़ गए हैं। इसके लिए विभिन्न स्तरों पर ई-गवर्नेंस स्टाफ तैयार किए जा रहे हैं। और प्रषिक्षण प्रदान किया जा रहा है। मुख्यमंत्री की मंषा है कि आईटी के लिए हर विभाग का बजट अलग से हो। मुख्यमंत्री इस रणनीति के अंतर्गत विचार कर रहे है कि ग्रामीण क्षेत्रों मे इंटरनेट क्योस्क खोलें जहां से किसान ईमेल के द्वारा उनसे व सेवा प्रदान करने वालों के संपर्क में रहें। ई-गवर्नेंस की दिषा में पारदर्षिता लाने के उद्देष्य से सभी महत्वपूर्ण सरकारी परिपत्र आॅनलाईन पर उपलब्ध हो रहे हैं। जन सुविधा केन्द्र योजना का नाम समाधान एक दिन है। यह राज्य सरकार की सेवा वितरण व्यवस्था को सुधारने के लिए जन केन्द्रित कोषिष है। यह अब जिला दफ्तरों में अलग अलग प्रमाण पत्र एवं दूसरे जरूरी कागजातों के वितरण में सहायता कर रहा है। अभी यह प्रबंध जिला स्तर पर है। भविष्य में इनको खण्ड एवं तहसील स्तर पर बढ़ाने की षिव सरकार की महत्वकांक्षी योजना है। इन केन्द्रों के माध्यम से जनता कई तरह के प्रमाण प्त्र जैसे कि मूल निवासी प्रमाण पत्र, अस्थायी जाति प्रमाण पत्र, विवाह रजिस्ट्रेषन प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, दुकान की स्थापना के अंतर्गत पुर्नः नवीनीकरण प्रमाण पत्र, गरीबी रेखा से नीचे की सूची का प्रमाण पत्र, एनओसी, ड्रायविंग लाइसेंस, अस्थायी परिवहन प्रमाण पत्र, अस्थायी बिजली कनेक्षन, रोजगार रजिस्ट्रेषन, कामगारों का पहचान पत्र, कामगारों के क्रियाक्रम में सहायता, मेटरनीटी सहायता, ऐफीडेविट इत्यादि आवेदन पत्र सभी प्रमाण पत्रों के साथ जमा करने पर उसी दिन शाम को चार बजे तक पा सकते हैं। प्रदेष के सभी विधायकों को मूलभूत कम्प्यूटर संचालन प्रषिक्षण देने की व्यवस्था भी है। म.प्र. की ई-गवर्नेंस आधारित महत्वकांक्षी परियोजनाएंनीति - आईटी को बढ़ावा देने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी नीति के तहत विषेष सुविधाएं प्रदान करना। अधोसंरचना - आईटी पार्क (एसईजेड- विषेष प्रक्षेत्र जोन), ’’एमपी स्वान’’ एमपी स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क ब्राडबैंड कनेक्टीविटी की दिषा में ब्लाक स्तर तक पूरे राज्य में क्रियान्वित की जा रही है।, स्टेट डाटा सेंटर, इन्दौर, सागर, ग्वालियर, षिवपुरी और गुना जिलों में ई-डिस्ट्रिक परियोजना, भोपाल एवं इन्दौर शहर इंटरनेट की सुविधा से यानि वायफाय सुविधायुक्त होंगे, स्टेट सर्विस डिलेवरी गेटवे। सूचना प्रौद्योगिकी पार्क की स्थापना - प्रदेश में निवेश को आकर्षित करने हेतु विभाग द्वारा भोपाल, ग्वालियर एवं जबलपुर सूचना प्रौद्योगिकी पार्क की स्थापना के लिए प्रयास किये जा रहे है। ग्वालियर में विभाग द्वारा असाईड योजना की सहायता से लगभग 1 लाख वर्गफुट स्थान का निर्माण किया जा रहा जिसे आई.टी. कंपनियों को लीज पर दिया जायेगा । इसके अतिरिक्त साॅफ्टवेयर टेक्नालाजी पार्क आॅफ इंडिया द्वारा 3 एकड़ भूमि पर इन्क्यूबेशन सेन्टर एवं अर्थ स्टेशन बनाया जा रहा है । ई-डिस्ट्रिक्ट - भारत सरकार द्वारा नेशनल ई-गवर्नेन्स परियोजना के तहत प्रदेश में ई-डिस्ट्रिक्ट परियोजना लागू करने का निर्णय है। योजना के क्रियान्वयन के प्रथम चरण में ग्वालियर, गुना, शिवपुरी, इन्दौर तथा सागर जिलांे का चयन किया गया है। मॅैप-आईटी को इस योजना की नोडल एजेन्सी नियुक्त किया गया है। मेसर्स विप्रो लिमिटेड को इस परियोजना के लिए सलाहकार नियुक्त किया गया है। आवश्यकताओं का आकलन पूरा कर साफ्टवेयर का निर्माण पूर्ण हो चुका है । राज्य मंत्रालय में स्थापित लेन अपग्रेड- मंत्रालय में स्थापित लेन को अपग्रेड किया जाकर गीगाबाईट लेन की स्थापना की गई है।स्टेट वाइड एरिया नेटवर्क की स्थापना,- भारत शासन द्वारा मध्यप्रदेश के लिए स्टेट वाईड एरिया नेटवर्क ;ैॅ।छद्ध अधोसंरचना हेतु राशि स्वीकृत की गई है। इस परियोजना के अंतर्गत मध्यप्रदेष में 340 च्वपदजे व िच्तमेमदबम (च्व्च्) केन्द्रों की स्थापना की जा रही है। परियोजना के लिए नियुक्त भागीदार ट्यूलिप आई.टी. सर्विस द्वारा लगभग 100 पाॅप भवनों पर अधोसरंचना निर्माण एवं वायरलेस टाॅवर खड़े करने का कार्य किया जा चुका है ।सर्विसेस - जी2जी, के अंतर्गत मंत्रालय का कम्प्यूटरीकरण, समाधान आॅनलाइन के अलावा मंत्रालय से संबंधित ई-गवर्नेंस की परियोजनाएं। जी2सी- काॅमन सर्विस सेन्टर की स्थापना - प्रदेश में सूचना प्रौद्योगिकी के लाभों को आम नागरिकों तक पहुॅचाने के लिए प्रदेश में 9232 काॅमन सर्विस सेन्टर की स्थापना की जायेगी। ई-गुमठियों के जरिए 16 हजार से अधिक बेरोजगारों को रोजगार उपलब्ध होगा। इन केन्द्रों द्वारा ई-प्रषासन को सुनिष्चित करते हुए आम नागरिकों को काॅमन सर्विस सेन्टर के माध्यम से उच्च स्तरीय विडियो, विभिन्न डाटा, ई-गवर्नेन्स सेवाऐं, षिक्षा, स्वास्थ्य, मनोरंजन आदि की जानकारी उपलब्ध कराई जावेगी। इसके अंतर्गत म.प्र. राज्य इलेक्ट्राॅनिक्स विकास निगम द्वारा एक पारदर्शी निविदा प्रक्रिया के माध्यम से भारत सरकार के दिशा निर्देशानुसार परियोजना के संचालन हेतु निजी भागीदार संस्थाओं का चयन किया गया है। यह संस्थाऐं हैं 3प प्दविजमबी (होशंगाबाद संभाग), ।प्ैम्ब्ज् (चंबल, सागर एवं रीवा संभाग), ब्डै ब्वउचनजमते (ग्वालियर एवं भोपाल संभाग), छप्ब्ज् (इन्दौर एवं उज्जैन संभाग), त्मसपंदबम ब्वउउनदपबंजपवदे (जबलपुर संभाग)। इन संस्थाओं द्वारा काॅमन सर्विसेस सेन्टर की स्थापना के लिए कार्यवाही प्रारंभ की गई है। अभी तक प्रदेश में 5700 से अधिक सी.एस.सी. की स्थापना की जा चुकी हैं । एमपी आॅनलाइन, समाधान एक दिन, काॅल सेंटर, किसानों के लिए एमपीकृषि डाॅट ओआरजी, मीडिया व आमजन के लिए जनसंपर्क संचालनालय द्वारा संचालित एमपीइंफो डाॅट ओआरजी के अलावा अन्य माध्यमों से सेवाएं उपलब्ध कराना, परिवहन विभाग में ई-सेवाएं, छात्रों की सुविधा के लिए एमपीआॅनलाईन डाॅट जीओवी डाॅट इन पर व्यवसायिक परीक्षा मंडल के साथ साथ अन्य परीक्षा के फार्म आॅन लाइन, काॅमर्सियल टेक्स राज्य सरकार इंटरनेट के माध्यम से प्राप्त करती है। उचवदसपदम नामक पोर्टल का विकास- सदूर क्षेत्रों में नागरिकों को शासकीय सेवा प्रदान करने के लिए कार्यालयों में उपस्थित होने की अनिवार्यता को समाप्त करने हेतु ूूूण्उचवदसपदमण्हवअण्पद नामक पोर्टल विकसित किया गया है। वेबसाईट के माध्यम से व्यावसायिक परीक्षा मंडल द्वारा समय-समय पर आयोजित की जाने वाली परीक्षाओं के फार्म जारी किये गये है। नागरिकों को सूचना गुमटियों के माध्यम से फार्म एवं शासकीय जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है तथा मध्य क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी के बिजली के बिलों का भुगतान राष्ट्रीय उद्यानों में प्रवेश के लिए आॅन लाईन बुकिंग तथा जीवन बीमा निगम की पाॅलिसियों की किश्तों का भुगतान की सुविधा भी पोर्टल पर उपलब्ध कराई गई है। फिलहाल पोर्टल पर 55 सेवायें उपलब्ध हैं एवं अभी तक 11 लाख नागरिकों को सेवायें प्रदान की जा चुकी हैं । इसमें शिक्षा से संबंधित अधिकांश सेवायें है जिसमें इन्दौर विश्वविद्यालय/माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविधालय/जीवाजी विश्वविद्यालय/ ओपन स्कूल/माध्यमिक शिक्षा मंडल री-टोटलिंग एवं री-वेल्यूएशन एवं राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की सेवायें सम्मिलित है। इसके अतिरिक्त टेलीफोन के बिल का भुगतान भी किया जा सकता है। एमपी आॅन लाईन के 866 कियोस्क कार्यरत है तथा 1000 काॅमन सर्विस सेन्टर इस सेवा से जुडे है।काॅल सेन्टर - भोपाल में राज्य के लिए काॅल सेन्टर स्थापित किया गया है। इस काॅल सेन्टर में नागरिक दूरभाष क्रमांक 155343 लगाकर योजनाओं की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे एवं शिकायत दर्ज करा सकेंगे । फिलहाल स्कूल शिक्षा विभाग से संबंधित जानकारी प्राप्त की जा सकती है एवं शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। स्कूल शिक्षा विभाग के अलावा राजस्व, लोक स्वास्थ्य परिवार कल्याण, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, महिला एवं बाल विकास, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति तथा वन विभाग से संबंधित सेवायें प्रक्रियागत हैं। जी2बी - ई-टेंडरिंग, वेट, एमपीट्रांस्पोर्ट की इंटरनेट सेवाएं, वन विभाग में आईटी को अपनाया गया। ई-टेण्डर - राज्य शासन द्वारा शासकीय निविदाओं में इलेक्ट्रानिक टेंडरिंग व्यवस्था लागू करने का निर्णय लिया गया है। प्रदेश के कार्य विभागों के क्रय संबंधी कार्यो हेतु ई-टेण्डर परियोजना प्रारंभ की गई है। मेसर्स विप्रो द्वारा इस परियोजना का क्रियान्वयन किया गया है। योजना का कार्य ठव्व्ज् (बिल्ड, ओन, आॅपरेट एवं ट्रान्सफर)़ के आधार पर किया गया है एवं इसमें राज्य शासन पर कोई व्यय भार नहीं आ रहा है। सभी शासकीय विभागों के क्रय कार्य ई-टेण्डरिंग के माध्यम से करने हेतु वेबसाईट उपलब्ध है। इस प्रणाली के माध्यम से रूपये 170892.27 लाख की राशि के 374 नर्मदा घाटी विकास /लोक निर्माण विभाग/सिचाई विभाग/लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग/ग्रामीण सडक प्राधिकरण के टेण्डर जारी किये जा चुके है।अवार्ड - मध्यप्रदेष के वित्त विभाग को कोषालयो में कम्प्यूटराईजेषन में उत्कृष्ट कार्य करने पर भारत सरकार का गोल्डन आईकाॅन पुरस्कार, आईटी क्षेत्र का प्रतिष्ठित मंथन अवार्ड, सागर जिले को बेस्ट ई-गवर्नेंस डिस्ट्रिक का पुरस्कार, आईटी के उपयोग के लिए इंडिया टेक एक्सीलेंस अवार्ड 2006, मध्यप्रदेष को ई-गवर्नेंस श्रेष्ठ प्रोजेक्ट लागू करने के लिए तीन सीएसआई निहीलेण्ट अवार्ड 2006-07 एवं 2007-08, समाधान आॅन लाईन पहल लिम्का बुक आॅफ रिकार्ड में। भारत सरकार के आईटी मंत्रालय ने प्रदेष के वन व बिजली विभाग को नेषनल ई-गवर्नेंस अवार्ड प्रदान किए हैं। देष की आईटी जगत की प्रतिष्ठित पत्रिका डाटा क्वेस्ट ने भी राज्य के वन विभाग व कृषि विभाग को 23 मार्च 2009 को ई-गवर्नेंस चैंपियन अवार्ड से नवाजा है। हालही में बेस्ट ई-गवर्नेस स्टेट का सी.एस.आई. निहीलेण्ट ई-गवर्नेंस अवार्ड 2008-09 मिला है। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान के संकल्प को अब ठोस आकार मिल रहा है। स्वर्णिम मध्यप्रदेष की नींव आईटी क्षेत्र में की गई पहल से और मजबूत हो रही है।
(लेखक - न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट डाॅट ओआरजी के संपादक हैं।)

मध्यप्रदेश के खाते में साउथ एषिया के चार ई-गवर्नेंस अवार्ड

केन्द्रीय आईटी मंत्री सचिन पायलट 19 दिसम्बर को पुरस्कृत करेंगे मध्यप्रदेश में ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में न केवल नए-नए प्रयोग हो रहे हैं बल्कि उनके सकारात्मक परिणाम भी सामने आ रहे हैं। इनफारमेषन कम्यूनिकेषन टेक्नालाजी (आईसीटी) को प्रोत्साहित करने के लिए साउथ एषिया का दिया जाने वाला प्रतिष्ठित ई-गर्वनेंस मंथन अवार्ड 2009 का इस मर्तबा विजेता मध्यप्रदेष बना है। मध्यप्रदेश सरकार के चार विभागों को उनके कामकाज व गुण-दोष के आधार पर ई-गवर्नेंस अवार्ड विजेता घोषित किया गया है। इसी के साथ राज्य के चार विभाग ई-गवर्नेंस के माध्यम से सुषासन प्रदान करने में अग्रणी बन गए हैं। इस तथ्य को न केवल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रेखांकित किया गया है बल्कि मान्यता प्रदान करते हुए मंथन अवार्ड 2009 से नवाजा भी जा रहा है।
भारत सरकार के संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सहयोग से डिजिटल इंपावरमेंट फांउडेषन द्वारा विकास के लिए डिजिटल को शामिल किए जाने विषय पर 18 एवं 19 दिसम्बर 2009 को नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। इस सम्मेलन का शुभारंभ 18 दिसम्बर 2009 को केन्द्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ए राजा के मुख्य आतिथ्य में होगा। सम्मेलन के दौरान जनमानस में पहुंच के लिए आईसीटी मेला का भी आयोजन किया जा रहा है।
मंथन अवार्ड के सहयोगी व आॅनलाइन मीडिया पार्टनर एमपीपोस्ट के अनुसार ई-गर्वनेंस के लिये दिया जाने वाला साउथ एषिया का प्रतिष्ठित मंथन अवार्ड 19 दिसम्बर 2009 को नई दिल्ली में 30 राज्यों व आठ देषों के लगभग एक हजार प्रतिभागियों व चेंपियन तथा इनफारमेषन कम्यूनिकेषन टेक्नालाजी (आईसीटी) के विषेषज्ञों की मौजूदगी में सम्मेलन के दूसरे दिन समापन अवसर के मुख्य अतिथि केन्द्रीय सूचना प्रोद्योगिकी एवं संचार राज्य मंत्री सचिन पायलट प्रदान करेंगे।
ई-गर्वनेंस के चार अवार्ड मध्यप्रदेष के खाते में आने पर राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान व आईटी मंत्री कैलाश विजयवर्गीय तथा आई.टी. विभाग के सचिव व मुख्यमंत्री के सचिव अनुराग जैन ने विजेता विभागों की टीम को बधाई दी है।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री म.प्र. षिवराज सिंह चैहान के नेतृत्व में प्रदेष में ई-गर्वनेन्स के क्षेत्र में लगातार नये-नये प्रयास और प्रयोग हो रहे है मुख्यमंत्री श्री चैहान की मंषा है कि आमजन को सुविधायें सरलता से और तुरंत बिना किसी बाधा के कैसे मिले, इस दिषा में म.प्र. का आईटी विभाग निरंतर प्रयास कर रहा है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में मध्यप्रदेष को नाॅस्काम सीएनबीसी आईटी अवार्ड व बेस्ट ई-गर्वनेन्स स्टेट का सीएसआई निहीलेंट अवार्ड भी मिला है। मंथन अवार्ड ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में सभी स्तरों पर विकास के लिये दिया जाता है।
अवार्ड ज्यूरी म.प्र. में आईटी के संदर्भ में अपनाये गये कार्यशील एवं सम्पूर्णत्मक दृष्टिकोण और म.प्र. में विकास की नीति के साथ आईटी की संलग्नता से न केवल काफी प्रभावित हुई। बल्कि बिजली विभाग की परियोजना आॅटोमेटिक मीटर रीडिंग (एएमआर) को बेस्ट ज्यूरी अवार्ड विजेता घोषित किया गया है। मध्यप्रदेष के उच्च षिक्षा विभाग के ई-संवाद व स्कूल षिक्षा विभाग के एमपीस्टेट एज्यूकेषन पोर्टल को तथा वन प्रबंधन में मोबाईल गवर्नेंस पर आधारित फायर एलर्ट सिस्टम को समग्र प्रदर्षन के आधार पर साउथ एषिया का मंथन अवार्ड 2009 विजेता घोषित किया गया है।
म.प्र. के आईटी विभाग व मुख्यमंत्री के सचिव अनुराग जैन विकास के लिए डिजिटल को शामिल किए जाने विषय पर 18 एवं 19 दिसम्बर 2009 को नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में मध्यप्रदेष सरकार द्वारा ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यो व अभिनव प्रयोगों पर राज्य सरकार की ओर से अपना प्रस्तुतीकरण देंगे। श्री जैन एक सत्र के काॅ-चेयर व माॅडरेटर भी रहेंगे।
मध्यप्रदेष के स्कूल षिक्षा विभाग की ओर से मनोज झलानी, उच्च षिक्षा विभाग की ओर से संजय झा, वन विभाग की ओर से अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक अनिल ओबेराय, बिजली विभाग की ओर से एन के जैन और वरिष्ठ अधिकारी अवार्ड प्राप्त करेंगे।
मध्यप्रदेष सरकार मंथन अवार्ड का पार्टनर स्टेट भी है। इस आयोजन में मध्यप्रदेष सरकार अपने चार पवेलियन विभिन्न विषयों पर लगा रहा है। जिनमें मध्यप्रदेष में ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में हो रहे कार्यो का प्रदर्षन किया जाएगा।

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

इन्टरनेट आरटीआई का दिल


इन्टरनेट आरटीआई का दिल है, यह बात किसी आईटी प्रोफेसनल या इन्टरनेट सर्विस प्रोवाइडर द्वारा अथवा ईमेल सेवा प्रदाता कंपनी ने नहीं कही। बल्कि ऐसे शख्स श्री वजाहत हबीबुल्लाह ने कही, जो न केवल पूर्व नौकरषाह है बल्कि वर्तमान में केन्द्रीय सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त हैं। जिस कार्यक्रम में मुख्य सूचना आयुक्त ने दिल की बात दिल से जोड़कर कही। उस कार्यक्रम में मध्यप्रदेश और छग के प्रतिनिधि के रूप में मैं भी मौजूद था। कार्यक्रम था इन्टरनेट पर केन्द्रित आईनेट देहली 2009 जिसका आयोजन 17 सितम्बर 2009 को इन्टरनेट सोसायटी (आईसाॅक) तथा डिजीटल इंपावरमेंट फांउडेषन (डीईएफ) ने किया था। भारत के मुख्य सूचना आयुक्त की टिप्पणी देष की राजधानी के समाचार पत्रों में अगले दिन नदारत थी। टीवी चैनलों व 24 घंटे के खबरिया चैनलों में दिखना तो दूर की बात रही। यद्यपि मैं इन्टरनेट मीडिया से पिछले कई वर्षो से जुड़ा हूं। इसलिए मुख्य सूचना आयुक्त श्री हबीबुल्लाह की टिप्पणी पर मेरा ध्यान ठहर गया। मैंने कार्यक्रम में आये भारत के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों व अन्य देषों से आये विषय विषेषज्ञों से आरटीआई को इन्टरनेट के जरिए प्रोत्साहित करने की बात षिद्दत के साथ कही। अब सवाल उठता है कि आरटीआई इन्टरनेट का हदृय है या नहीं। यह तो समय बतायेगा। अलबत्ता मैं यहां बताना न केवल समीचीन समझता हूं बल्कि प्रासांगिक भी है कि लखनऊ में साॅल्यूषन एक्सचेंज का डीसेन्ट्रलाइजेषन कम्यूनिटी पर केन्द्रित वार्षिक फोरम 22 से 24 अक्टूबर 2009 को होने जा रहा है। जिसमें आरटीआई पर विषेषज्ञों से पेपर आमंत्रित किए गए हैं। यूएनडीपी समर्थित संस्था साॅल्यूषन एक्सचेंज के भारत में 18 हजार सदस्य हैं तथा 30 हजार पाठक। आरटीआई के असर से अच्छे-अच्छे प्रभावषाली तक भय खाने लगे हैं। आरटीआई के जरिए सूचना क्रांति लाने के उपक्रम की कड़ी में सीडेक हैदराबाद द्वारा एक ई-लर्निंग कोर्स प्रारंभ किया गया, जबकि कार्मिक लोक षिकायत एवं पेंषन मंत्रालय, कार्मिक और प्रषिक्षण विभाग भारत सरकार द्वारा आरटीआई को बढ़ावा देने के लिए एक आनलाइन ई-डिग्री कोर्स प्रारंभ किया गया है। इस कोर्स के प्रति लोगों में जागरूकता देखी गई है। कुछ मीडिया की व बड़ी संस्थाओं ने आरटीआई पर केन्द्रित अवार्ड भी स्थापित किए हैं। ये उदाहरण इस बात के द्योतक हैं कि आरटीआई शनैः शनैः अपनी जड़े मजबूत करता जा रहा है। कितना कारगर है सूचना का अधिकार यानि आरटीआई। सूचना का अधिकार को स्वतंत्र भारत में एक क्रांतिकारी बदलाव की तरह देखा गया है, ऐसी मान्यता रही है कि यह कानून जनता के हाथ में एक ऐसा औजार रहेगा जो सरकार को या सरकार से अनुदान प्राप्त संस्थाओं और आरटीआई के दायरे में आने वालों को कठघरे में उसे जवाबदेय और पारदर्षी होने पर मजबूर करता है। इससे सरकारी कामकाज में क्या पारदर्षिता आयी है और क्या लोग अपने आपको ज्यादा ताकतवर महसूस करते है सरकारी तंत्र के सामने? रेखांकित करने लायक बात यह है कि पूरी दुनिया में सूचना की आजादी के आंदोलनों ने भारत में भी इसकी जरूरत प्रमाणित की थी। हालांकि यह माना जाता रहा है कि भारत के संविधान की धारा 19(1)(क) में जानने का अधिकार भी निहित है। इसमें कहा गया है कि सभी नागरिकों को वाक्-स्वातंत्र्य एवं अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का अधिकार होगा। इस प्रावधान की व्यापक व्याख्या की गयी है। संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता का कहीं अलग से उल्लेख नहीं है। हर नागरिक के लिए प्रदत्त इस स्वतंत्रता में ही प्रेस की स्वंतत्रता को भी अंतर्निहित माना गया है। इसी तरह, सूचना के अधिकार को भी इसका अनिवार्य अंग बताया गया है। इंडियन एक्सप्रेस न्यूजपेपर्स बनाम भारत संघ 1985, एसीसी 641 मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि नागरिकों को सरकार के संचालन-संबंधी सूचनाओं के विषय में जानने का अधिकार है।सूचना का अधिकार यानि सबसे प्रभावी अधिकारः यह कानून नागरिकों को, संसद और राज्य विधानमण्डल के सदस्यों के बराबर सूचना का अधिकार प्रदान करता है। इसके अनुसार, वैसी सूचना जिसे संसद अथवा राज्य विधानमण्डल को देने से इन्कार नहीं किया जा सकता, उसे किसी आमजन को भी देने से इंकार नहीं किया जा सकता।आरटीआई के अंतर्गत जानकारी लेने के लिए आवेदक को जरूरी शुल्क, जिस नाम से व जिस रूप में जमा करना हो, उसका विवरण ई-मेल के माध्यम से भेजना, ई-मेल से भेजे आवेदन की प्राप्ति तिथि वह मानी जाएगी, जिस तारीख को आवेदक ने आवश्यक शुल्क जमा किया हो, सूचना के अधिकार कानून- 2005 के अंतर्गत सूचना प्राप्त करने के लिए आवेदक से शुल्क लिये जाने का प्रावधान है। सूचना प्राप्त करने के इच्छुक आवेदकों को आवेदन-पत्र के साथ 10 रुपये का शुल्क भुगतान करना होगा। इसे लोक प्राधिकारी के लेखा पदाधिकारी के नाम से बने बैंक ड्राफ्ट या बैंकर चेक या भारतीय पोस्टल ऑर्डर के रूप में या नकद रूप में जमा किया जा सकता है, आवेदन शुल्क नकद जमा करने की स्थिति में उससे संबंधित रसीद अवश्य प्राप्त कर लें। सूचना से क्या तात्पर्य है ? सूचना का मतलब है- रिकार्डों, दस्तावेजों, ज्ञापनों, ई-मेल, विचार, सलाह, प्रेस विज्ञप्तियाँ, परिपत्र, आदेश, लॉग पुस्तिकाएँ, निविदा, टिप्पणियाँ, पत्र, उदाहरण, नमूने, आँकड़े सहित कोई भी सामग्री, जो किसी भी रूप में उपलब्ध हों। साथ ही, वह सूचना जो किसी भी निजी निकाय से संबंधित हो, किसी लोक प्राधिकारी के द्वारा उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून के अंतर्गत प्राप्त किया जा सकता है, बसर्ते कि उसमें फाईल नोटिंग शामिल नहीं हो। सूचना के अधिकार का क्या अर्थ है ? सूचना अधिकार से तात्पर्य है- कार्यों, दस्तावेजों, रिकार्डों का निरीक्षण, दस्तावेजों या रिकार्डों की प्रस्तावनाध्सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना, सामग्री का प्रमाणित नमूने लेना, प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लॉपी, टेपों, वीडियो कैसेटों के रूप में या कोई अन्य ईलेक्ट्रॉनिक रूप में जानकारी प्राप्त करना। सूचना का अधिकार में जिन सूचनाओं को आम जनता को उपलब्ध कराने की मनाही है। साथ ही, यह कानून केन्द्र सरकार के अंतर्गत कार्यरत कुछ संगठनों को सूचना उपलब्ध नहीं कराने की छूट देता है अर्थात् इन संगठनों से संबंधित सूचना माँगे जाने की स्थिति में लोक सूचना अधिकारी आवेदन को अस्वीकार कर सकते हैं। ये संगठन हैं अन्वेषण ब्यूरो, अनुसंधान और विश्लेषण विंग, राजस्व आसूचना निदेशालय, केन्द्रीय आर्थिक आसूचना ब्यूरो, प्रवर्तन निदेशालय, नार्कोटिक्स नियंत्रण ब्यूरो, वैमानिक अनुसंधान केन्द्र, विशेष सीमान्त बल, केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, भारत-तिब्बत सीमा पुलिस, केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड, असम राइफल्स, विशेष सेवा ब्यूरो, विशेष शाखा (सी.आई.डी), अंडमान व निकोबार, अपराध शाखा (सी.आई.डी)-सी.बी, दादरा नागर हवेली, विशेष शाखा लक्षद्बीप पुलिस। ऐसी सूचना जिसके प्रकाशन से भारत की स्वतंत्रता और अखण्डता, राज्य की सुरक्षा, कार्य योजना, वैज्ञानिक या आर्थिक हित प्रभावित होता हो, विदेशी संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हों या जो अपराध के लिए लोगों को उत्तेजित करता हों। सूचना जिसे किसी भी न्यायालय या खण्डपीठ द्वारा प्रकाशित किए जाने से रोका गया हो या जिसके प्रदर्शन से न्यायालय के आदेश का उल्लंघन होता है, जिसके प्रकाशन से संसद या राज्य विधानमंडल के विशेषाधिकार प्रभावित होते हों। वाणिज्यिक गोपनीयता, व्यापार गोपनीयता या बौद्धिक संपदा से संबंधित सूचना, जिसके प्रकाशन से तीसरे पक्ष की प्रतिस्पर्धात्मक स्तर को क्षति पहुँचने की संभावना हों, जब तक कि सक्षम प्राधिकरी इस बात से संतुष्ट नहीं हो जाते कि ऐसी सूचना का प्रकाशन जनहित में है, ऐसी सूचना, जिसे विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त की गई हो, सूचना, जिसके प्रदर्शन से किसी व्यक्ति की जिन्दगी या शारीरिक सुरक्षा को खतरा हो या कानून के कार्यान्वयन या सुरक्षा उद्देश्यों के लिए विश्वास में दी गई सूचना या सहायता हो, सूचना जिससे अपराधी की जाँच करने या उसे हिरासत में लेने या उस पर मुकदमा चलाने में बाधा उत्पन्न हो सकती हो। मंत्रिपरिषद्, सचिवों और अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श से संबंधित मंत्रिमंडल के दस्तावेज,ऐसी सूचना जो किसी व्यक्ति के निजी जिंदगी से संबंधित हो और उसका संबंध किसी नागरिक हित से नहीं हो और उसके प्रकाशन से किसी व्यक्ति के निजी जिंदगी की गोपनीयता भंग होती हो, वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग, 2006 ने तो इस कानून को निरस्त कर देने का सुझाव दिया है।आरटीआई में आईसीटी का उपयोग क्यों नहीं?शासकीय कामकाज में पारदर्षिता और सूचना के अधिकार के लिए दुनियाभर में विभिन्न रूपों में मांग उठी, लेकिन सबसे पहले स्वीडेन देष ने 243 साल पहले सूचना अधिकार लागू किया था। जबकि भारत में सूचना का अधिकार 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ। 15 जून 2005 को इसके कानून बनने के 120 वें दिन। हिन्दुस्तान में 12 अक्टूबर 2009 को सूचना के अधिकार के अधिनियम के चार वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। आरटीआई के बारे में हिन्दुस्तान के हर नागरिक को मालूम होना चाहिए। इसके लिये सरकारी और अन्य स्तरों पर प्रचार-प्रसार के लिये अभियान चालू होना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को सूचना के अधिकार को षिक्षा के पाठ्यक्रम में भी शामिल करना चाहिए। आरटीआई कानून में जनमानस के लिये एक बहुत बड़ा प्रावधान यह है कि कोई भी व्यक्ति आरटीआई से संबंधित जानकारी ईमेल के जरिए भी प्राप्त कर सकता है। इंटरनेट के द्वारा जानकारी लेने का यह माध्यम सबसे सस्ता और प्रभावी है इसमें पैसे और समय की बचत के साथ-साथ आवेदनकर्ता के लिए समयसीमा का कोई बंधन नहीं है। न ही किसी सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाने की जरूरत है। व्यक्ति अपने घर से किसी भी समय आवेदन कर सकता है। आमजन ने इस माध्यम को अपना लिया तो देष में सूचना प्राप्त करने की एक बड़ी क्रांति का सूत्रपात होगा। भारत में इन्टरनेट की उपलब्धता के बारे में एक तथ्य यह भी है कि भारत सरकार के संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आंकड़ों पर गौर करें तो अगस्त 2009 तक भारत में 64 लाख से अधिक ब्राडबैंड कनेक्षन उपलब्ध कराये गये हैं। देष के सभी ढ़ाई लाख ग्राम पंचायतों में सन् 2012 तक ब्राडबैंड इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराई जायेगी। अभी 30 हजार ग्राम पंचायतों को ब्राडबैंड से जोड़ दिया गया है। भारत में निजी इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडरों द्वारा भी लाखों की संख्या में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। अभी भारत में सात करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर हैं। भारत में लगभग सभी महानगरों के शाॅपिंग माॅल, तीन सितारा और पांच सितारा होटलों, कैफे, एयरपोर्ट, कार्पोरेट कार्यालयों, आईटी इंडस्ट्री से जुड़ी हुई संस्थाओं के कार्यालयों के साथ-साथ कुछ प्रमुख सार्वजनिक स्थानों पर फिलवक्त इंटरनेट की सुविधा वाय-फाय के माध्यम से निषुल्क उपलब्ध कराई जा रही है। शीघ्र ही रेल मंत्रालय टेªनों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध करायेगा। सभी टेªनों में इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध कैसे जल्द से जल्द प्रारंभ हो इस गरज से रेल मंत्रालय ने ताने-बाने बुन लिये हैं। बहरहाल 2005 से लेकर मतलब 2009 तक बीते इन वर्षो के दौरान आरटीआई को लेकर आम जन में जो भी प्रतिक्रिया, जागरूकता और उत्साह देखा गया हो। यह बात अलहदा है। लेकिन जिस तकनीकी यानि संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से इस कानून को घर-घर में पहुंचाने में न केवल मदद मिलती बल्कि आरटीआई कानून की सार्थकता भी सिद्ध होती। प्रष्न यह है कि फिर इस तकनीक को क्यों अमल में नहीं लाया गया। साथ ही इसके प्रचार-प्रसार के लिये अभियान क्यों नहीं छेड़ा गया। इसके पीछे जानकार अनेक कारण बता रहे हैं। हाॅं, यदि इंफारमेषन कम्यूनिकेषन टेक्नालाॅजी यानि आईसीटी का आरटीआई में उपयोग ज्यादा से ज्यादा सरकारी व अन्य स्तरों पर होता, तो आज इसके परिणाम अलग दिखते। वैसे आरटीआई अभी शैष्वकाल में है। खैर, विलंब से ही सही यदि इसके उपयोग की शुरूआत हो तो भारत में न केवल भ्रष्टाचार में अंकुष लगेगा। बल्कि इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। आरटीआई कानून का प्रचार-प्रसार व लोगों को इस कानून के तहत आईसीटी के जरिए लाभ लेने के बारें में जब केन्द्रीय सूचना आयुक्त एमएल शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी अदान-प्रदान करने को लेकर हालही में एक साफ्टवेयर विकसित किया गया है। जो शीघ्र काम करने लगेगा। तदोपरांत द्वितीय अपील के आवेदन आनलाइन स्वीकार हो सकेंगे। अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है कि किसी भी आवेदनकर्ता ने उनके कार्यालय से ईमेल के माध्यम से पत्राचार किया हो। वैसे इस पर भी विचार किया जा रहा है कि आरटीआई के अंतर्गत जमा होने वाली फीस क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी प्राप्त की जाए। यह सच है कि कुछ हद तक केन्द्रीय सूचना आयोग व राज्य सूचना आयोग तथा केन्द्र और राज्यों की सरकारों ने आरटीआई कानून के बारे में जनमानस को व स्वयंसेवी संगठनों को जागरूक किया है। लेकिन जो सबसे सस्ता और प्रभावी सब जगह और हर समय असरकारी होने वाली विधि आईसीटी से मिली है। उस पर विषेष ध्यान नहीं दिया गया है। यह विचारणीय प्रष्न है। आरटीआई में आईसीटी के उपयोग के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए अभियान नहीं चलाया गया है। आयोगों ने अपने स्तर पर इस तरह का कोई प्रयास भी नहीं किया है। वैसे आरटीआई के प्रचार-प्रसार करने का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकारों का है। फिलहाल आरटीआई के संबंध में काॅल सेंटर के माध्यम से आवेदन स्वीकार करने की परंपरा अभी भारत में नहीं है। साथ ही वीडियों काॅंफ्रेंसिंग के जरिए भी प्रकरणों की सुनवाई न के बराबर हो रही है। ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने से संबंधित जब पत्राचार ईमेल के माध्यम से होने लगेगा। तो काफी समस्याओं का समाधान कम खर्च पर समय पर हो सकेगा। साथ ही नतीजे भी बेहतर आयेंगे। आरटीआई के कुछ कर्ताधर्ताओं ने स्वयं स्वीकार किया है कि वे इंटरनेट या कम्प्यूटर सेवी नहीं है। इंटरनेट और कम्प्यूटर के आरटीआई में इस्तेमाल को लेकर एक आयुक्त ने साफगोई से स्वीकार किया था कि उनकी ईमेल खोलने में रूचि नहीं है। अब देखना यह है कि आरटीआई को आमजन तक पहुंचाने में सबसे सस्ते माध्यम आईसीटी का उपयोग बढ़ाने के लिए सरकारें व जानकार आगे आते हैं अथवा नहीं। आरटीआई का इंटरनेट दिल है। इस शब्द की रक्षा और सार्थकता तब सिद्ध होगी जब आरटीआई से जुड़े इन सवालों पर विषेष ध्यान दिया जाएगा। मसलन- आरटीआई के तहत आने वाली षिकायतों का समाधान वीडियों क्रांफेंसिंग के जरिए होना चाहिए। काॅल सेंटर के माध्यम से आरटीआई के आवेदन स्वीकार होना चाहिए। ई-मेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने की संस्कृति विकसित होना चाहिए। के्रडिट कार्ड के माध्यम से आरटीआई के अंतर्गत ली जानी वाली फीस का भुगतान स्वीकार किया जाना चाहिए। शासन स्तर पर आईसीटी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए साथ आरटीआई के कार्य में संलग्न अधिकारियों को आईसीटी के बारे में प्रषिक्षित किया जाना चाहिए। भारत के हर नागरिक को षिक्षा के अधिकार की तरह आरटीआई के अधिकार के बारे मंे जागरूक बनाना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को यथा संभव पाठ्यक्रमों में आरटीआई को शामिल किया जाना चाहिए।
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सोमवार, 5 अक्तूबर 2009

मप्र के मुख्यमंत्री श्री चैहान और राज्य के अफसरों का अक्टूबर माह बैठकों के नाम रहेगा

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान और राज्य के अधिकारियों का अक्टूबर माह बैठकों के नाम रहेगा। माह अक्टूबर मुख्यमंत्री और अफसरों के नाम इसलिए रहेगा, क्योंकि इस माह मुख्यमंत्री की अक्टूबर माह के शुरूआत से ही मैराथन बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। मुख्यमंत्री ने इसकी शुरूआत सोमवार 5 अक्टूबर 2009 को प्रशासन अकादेमी भोपाल में दो दिवसीय मंथन-2009 कार्यशाला का शुभारंभ से की है। श्री चैहान 6 अक्टूबर को भी प्रषासन अकादमी में हो रही मंथन बैठक में मौजूद रहेंगे। कार्यशाला में मंत्रिपरिषद के सदस्यों सहित प्रमुख सचिव, सचिव, विभागाध्यक्ष, संभाग आयुक्त, जिला कलेक्टर, जिला पंचायतों के मुख्य कार्यपालन अधिकारी और अन्य विकास और निर्माण विभागों के अधिकारियों सहित करीब 200 अधिकारी भाग ले रहे हैं।
मुख्यमंत्री श्री चैहान माह के प्रथम मंगलवार को वीडियों कांफ्रेंसिंग आधारित कार्यक्रम समाधान आॅनलाइन में कलेक्टर, एसपी सहित विभिन्न अधिकारियों से रूबरू होते हैं। मौके पर ही मुख्यमंत्री आमजन की समस्या का समाधान करते हैं। मुख्यमंत्री श्री चैहान माह के प्रथम मंगलवार को समाधान आॅनलाइन में उपस्थित नहीं रहेंगे। इसलिए वे माह के द्वितीय मंगलवार यानि 13 अक्टूबर को समाधान आॅनलाइन में आमजन की समस्याओं का समाधान करेंगे। इस दौरान वे राज्य के अधिकारियों से रूबरू होंगे तथा आवष्यक निर्देष भी देंगे।
मुख्यमंत्री श्री चैहान प्रत्येक माह के तीसरे गुरूवार को परख कार्यक्रम के दौरान प्रदेष के समस्त अधिकारियों से बातचीत करते हैं। इस दौरान वे अधिकारियों को निर्देष भी देते हैं। इस बार का परख कार्यक्रम 22 अक्टूबर गुरूवार को विंध्याचल भवन स्थित एनआईसी के कांफ्रंेस हाॅल में होगा। परख कार्यक्रम मूलभूत सुविधाओं, सेवाओं की प्रबंधन प्रणाली है। इस कार्यक्रम में प्रत्येक ग्राम से मासिक जानकारी एकत्रित की जाती है। परख कार्यक्रम ग्राम शालाएं, स्वास्थ्य, कृषि पट्टा, वृद्धावस्था सामाजिक सुरक्षा पेंषन, छात्रावास, आश्रम, हैंडपंप, ट्रांसफार्मर, शालाओं, अस्पतालों, आंगनवाड़ियों, उचित मूल्य की दुकानों का संचालन, कृषि एवं पषु सेवाओं का रियलटी चेक है। परख के अंतर्गत राज्य के नागरिकों को मूलभूत सुविधाओं, सेवाओं के संबंध में आॅनलाइन षिकायत दर्ज करने की सुविधा है। प्रतिमाह नोडल अधिकारी द्वारा प्रदेष के ग्राम भ्रमण कर मूलभूत सुविधाओं और सेवाओं का सत्यापन एवं समस्याओं का चिन्हांकन करते है। नागरिकों द्वारा दर्ज एवं नोडल अधिकारी द्वारा चिन्हांकन समस्याओं के निराकरण के अनुश्रवण की संपूर्ण प्रक्रिया आॅनलाइन है।
समस्याओं के निराकरण के लिए चार स्तरों पर नियमित रूप से माॅनिटरिंग होती है। शासन स्तर पर मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और सचिव, संभाग स्तर पर संभागायुक्त, जिला स्तर पर कलेक्टर और अनुविभाग स्तर पर अनुविभागीय अधिकारी द्वारा माॅनिटरिंग की जाती है। मुख्यमंत्री द्वारा अधिकारियों से निरंतर बातचीत करने का यह सिलसिला लम्बे समय से चल रहा है। लिहाजा अधिकारी वर्ग उनसे रूबरू होने से पहले पूरी तैयारी करता है। तब मुख्यमंत्री के समक्ष उपस्थित होते हैं।
गौरतलब है कि मुख्यमंत्री सहित प्रदेष के समस्त अधिकारियों के लिए अक्टूबर माह बैठकों के नाम इसलिए रहेगा, क्योंकि 5 एवं 6 अक्टूबर को मंथन बैठक को आयोजन हो रहा है, इसके बाद 13 अक्टूबर को मुख्यमंत्री समाधान आॅनलाइन में अधिकारियों से रूबरू होंगे, तदोपरांत 22 अक्टूबर को मुख्यमंत्री षिवराज सिंह चैहान परख कार्यक्रम के दौरान सीधे बातचीत करेंगे। मुख्यमंत्री इस दौरान अधिकारियों को आवष्यक निर्देष भी देंगे। कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री व प्रदेष के अधिकारियों का माह अक्टूबर बैठकों के नाम रहेगा।

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

गूगल के सर्च इंजन में जी की जगह गांधीजी यानि गूगल की गांधीगिरी

मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं
आज दो अक्टूबर है और देर रात से गूगल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चित्र ग्राफिक्स में बना हुआ। दर्शको को देखने के लिए मिला। प्रसिद्ध इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने बापू को अपना जी यानि गूगल के पहले शब्द जी के स्थान पर गांधी जी का चित्र बनाया है। इसलिए कहा जा सकता है कि गूगल भी भारत में जड़े जमाने के लिए गांधी जी के नाम का न केवल उपयोग कर रहा है, बल्कि गांधीगिरी अपना रहा है। टेलीविजन चैनलों पर भी आज महात्मा गांधी को सजाया व बेचा जाएगा। भोपाल, दिल्ली और मुंबई में गांधी जी पर केन्द्रित फिल्मों का प्रदर्शन किया गया।
भोपाल में 11 फिल्मों का प्रदर्शन आज से प्रारंभ हुआ। ये फिल्में मार्केट से अलग हैं। कुछ न्यूज चैनलों ने गांधी के जीवन पर कुछ विशेष कार्यक्रम भी बनाये हैं। दो अक्टूबर के दिन मीडिया के लोग गांधीनुमा व्यक्तियों की तलाश करते हैं। कुछ बुर्जुग गांधीवादी व्यक्तियों की इस दिन मांग बढ़ जाती है। दो अक्टूबर के दिन गांधी जी की समाधी पर व उनकी मूर्तियों पर माल्र्यापण कर लोग इतिश्री कर लेते हैं। लेकिन इस रस्म अदायगी में कोई भी पीछे नहीं रहता है। भारत में गांधी जी के प्रति प्रेम को देखकर गैर भारतीय इंटरनेट सर्च इंजन गूगल ने गांधी जी को अपने सर्च इंजन के माध्यम से न केवल दर्शको को लुभाने की कोशिश की है बल्कि गांधी जी के प्रति अपनी आस्था और प्रेम का इजहार करने का प्रयास किया है। गांधी जी ने हमेशा यह संदेश दिया है कि बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो, बुरा मत सुनो।
रेखांकित करने योग्य बात यह है कि जो वर्ग गांधीजी के विचारों से व उनके द्वारा बताए गए मार्ग से अलग होता जा रहा है। उस वर्ग के बीच में गांधीजी की जयंती यानि दो अक्टूबर के दिन गूगल ने कम से कम यह तो कर दिखाया है कि लोग दो अक्टूबर के दिन गांधीजी को याद करें, उनको विस्मृत करने जैसे उपक्रम से बचाये रखने का सराहनीय प्रयास किया है। यह बात अलग है कि गूगल के सर्च इंजन पर गांधीजी के चित्र को देखकर कितने लोग खुश हुए, ओर कितने लोग मायूस। अलबत्ता गूगल के सर्च इंजन पर पूरी दुनिया में जिस गति से लोग जाते हैं उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि करोड़ों लोगों के मनमस्तिष्क पर गांधीजी ने एक बार फिर गूगल के माध्यम से अपना परचम फहराया है। दो अक्टूबर के दिन ही सही करोड़ों लोगों को गूगल के जरिए गांधीजी याद आए।
गांधी जयंती के अवसर पर प्रासांगिक और सामयिक कविता यहां प्रस्तुत है-
मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं
बचपन में पाठ्य पुस्तक में एक कविता पढ़ी थी, “मां खादी की चादर दे दे , मैं गांधी बन जाऊं।” कविता में एक बच्चा मां से गांधी जी के जैसी वस्तुएं दिलवाने की मनुहार करता है ताकि वह भी उन्हें लेकर गांधी जी जैसा दिख सके। उसमें गांधी जी की मशहूर घड़ी का जिक्र था। गांधी जी घड़ी हाथ में नहीं बांधते थे, कमर में लटकाते थे। “घड़ी कमर में लटकाऊंगा”
तब बाल मन के लिए गांधी जी आदर्श थे, उनकी तरह कमर में घड़ी बांधने की उत्सुकता होती
थी। आज वही घड़ी तस्वीर में देखने को मिल रही है क्योंकि उसकी अमेरिका में नीलामी हुई
है। क्या आपको वह पूरी कविता और लेखक का नाम याद है?
कविता कुछ इस प्रकार थी-
मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं
सब मित्रों के बीच बैठ कर रघुपति राघव गांऊ
घड़ी कमर में लटकाऊंगा सैर सवेरे कर आऊंगा
मुझे श्ई की पोनी दे दे
तकली खूब चलाऊं
मां खादी की चादर दे दे, मैं गांधी बन जाऊं

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

आरटीआई में आईसीटी का उपयोग क्यों नहीं?

शासकीय कामकाज में पारदर्शिता और सूचना के अधिकार के लिए दुनियाभर में विभिन्न रूपों में मांग उठी, लेकिन सबसे पहले स्वीडेन देश ने 243 साल पहले सूचना अधिकार लागू किया था। जबकि भारत में सूचना का अधिकार 15 जून 2005 को लागू हुआ है।
आरटीआई के बारे में हिन्दुस्तान के हर नागरिक को मालूम होना चाहिए। इसके लिये सरकारी और अन्य स्तरों पर प्रचार-प्रसार के लिये अभियान चालू होना चाहिए। केन्द्र और राज्य सरकारों को सूचना के अधिकार को शिक्षा के पाठ्यक्रम में भी शामिल करना चाहिए। आरटीआई कानून में जनमानस के लिये एक बहुत बड़ा प्रावधान यह है कि कोई भी व्यक्ति आरटीआई से संबंधित जानकारी ईमेल के जरिए भी प्राप्त कर सकता है। इसका प्रावधान आरटीआई में भी है।
इंटरनेट के द्वारा जानकारी लेने का यह माध्यम सबसे सस्ता और प्रभावी है इसमें पैसे और समय की बचत के साथ-साथ आवेदनकर्ता के लिए समयसीमा का कोई बंधन नहीं है। न ही किसी सरकारी कार्यालय के चक्कर लगाने की जरूरत है। व्यक्ति अपने घर से किसी भी समय आवेदन कर सकता है। आमजन ने इस माध्यम को अपना लिया तो देश में एक सूचना प्राप्त करने की एक बड़ी क्रांति होगी।
भारत में सरकारी स्तर पर कुछ संस्थाओं ने आरटीआई के आनलाइन सर्टिफिकेट ई-कोर्स व ई-लर्निंग कोर्स भी शुरू किए हैं।यह अधिनियम जम्मू-कष्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू है। इस अधिनियम के दायरे में भारत सरकार के अन्वेषण ब्यूरो और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड के अलावा एक दर्जन से अधिक विभाग नहीं आते हैं। सूचना का मतलब है ईमेल, रिकार्डो, दस्तावेजो, ज्ञापनों, विचार, सलाह, परिपत्र, प्रेस विज्ञप्तियां, निविदा, टिप्पणियां, आदेश, लाॅग पुस्तिकाएं, पत्र, उदाहरण, नमूने, आंकड़े सहित कोई भी सामग्री जो किसी भी रूप में उपलब्ध हो, साथ ही वह सूचना जो किसी भी निजी निकाय से संबंध हो, किसी लोक प्राधिकारी के द्वारा उस समय प्रचलित किसी अन्य कानून के तहत प्राप्त किया जा सकता है बषर्ते उसमें फाइल नोटिंग शामिल नहीं हो।
2005 से लेकर मतलब 2009 तक बीते इन पांच वर्षो के दौरान आरटीआई को लेकर आम जन में जो भी प्रतिक्रिया, जागरूकता और उत्साह देखा गया हो। यह बात अलहदा है। लेकिन जिस तकनीकी यानि संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग से इस कानून को घर-घर में पहुंचाने में न केवल मदद मिलती बल्कि आरटीआई कानून की सार्थकता भी सिद्ध होती। अब सवाल उठता है कि इस तकनीक को क्यों? अमल में नहीं लाया गया। साथ ही इसके प्रचार-प्रसार के लिये अभियान क्यों नहीं छेड़ा गया। इसके पीछे जानकार अनेक कारण बता रहे हैं। हाॅं, यदि इंफारमेशन कम्यूनिकेशन टेक्नालाजी यानि आईसीटी का आरटीआई में उपयोग ज्यादा से ज्यादा सरकारी व अन्य स्तरों पर होता, तो आज इसके परिणाम अलग दिखते।
खैर, विलंब से ही सही यदि इसके उपयोग की शुरूआत हो तो भारत में न केवल भ्रष्टाचार में अंकुश लगेगा। बल्कि इसके बेहतर परिणाम सामने आएंगे। आरटीआई कानून का प्रचार-प्रसार व लोगों को इस कानून के तहत आईसीटी के जरिए लाभ लेने के बारें में जब केन्द्रीय सूचना आयुक्त एमएल शर्मा से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी अदान-प्रदान करने को लेकर हालही में एक साफ्टवेयर विकसित किया गया है। जो तीन चार सप्ताह पश्चात काम करने लगेगा। तदोपरांत द्वितीय अपील के आवेदन आनलाइन स्वीकार हो सकेंगे। उन्होंने बताया कि उनकी जानकारी में अभी तक ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है कि किसी भी आवेदनकर्ता ने उनके कार्यालय से ईमेल के माध्यम से पत्राचार किया हो। उन्होंने बताया कि इस पर भी विचार किया जा रहा है कि आरटीआई के अंतर्गत जमा होने वाली फीस क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भी प्राप्त की जाए। केन्द्रीय सूचना आयोग व राज्य सूचना आयोग तथा केन्द्र और राज्यों की सरकारों ने आरटीआई कानून के बारे में जनमानस को व स्वयंसेवी संगठनों को जागरूक किया है। लेकिन जो सबसे सस्ता और प्रभावी हर समय असरकारी होने वाली विधि आईसीटी से मिली है। उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है। यह विचारणीय प्रश्न है।
श्री शर्मा ने एक सवाल के जवाब में बताया कि आरटीआई में आईसीटी के उपयोग के बारे में लोगों को जागरूक बनाने के लिए अभियान नहीं चलाया गया है। आयोग ने अपने स्तर पर इस तरह का कोई प्रयास भी नहीं किया है। उन्होंने कहा कि आरटीआई के प्रचार-प्रसार करने का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकारों का है।
श्री शर्मा का कहना है कि आरटीआई के संबंध में काल सेंटर के माध्यम से आवेदन स्वीकार करने की परंपरा अभी भारत में नहीं है। साथ ही वीडियों कांफ्रेंसिंग के जरिए भी प्रकरणों की सुनवाई न के बराबर हो रही है। उन्होंने बताया कि ईमेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने से संबंधित जब पत्राचार ईमेल के माध्यम से होने लगेगा। तो काफी समस्याओं को समाधान कम खर्च में परिणाम मूलक सामने आएगा।
श्री शर्मा ने स्वयं स्वीकार किया है कि वे इंटरनेट या कम्प्यूटर सेवी नहीं है। कुछ समय पूर्व जब दूसरे सूचना आयुक्त श्री केजरीवाल से इंटरनेट और कम्प्यूटर के आरटीआई में इस्तेमाल को लेकर बातचीत की थी तो उन्होंने भी साफगोई से स्वीकार किया था कि उनकी ईमेल खोलने में रूचि नहीं है। अब देखना यह है कि आरटीआई को आमजन तक पहुंचाने में सबसे सस्ते माध्यम आईसीटी का उपयोग बढ़ाने के लिए सरकारें व जानकार आगे आते हैं अथवा नहीं।
आरटीआई से जुड़े कुछ सवाल -
· आरटीआई के तहत आने वाली शिकायतों का समाधान वीडियों क्रांफेंसिंग के जरिए होना चाहिए।
· काल सेंटर के माध्यम से आरटीआई के आवेदन स्वीकार होना चाहिए।
· ई-मेल के माध्यम से आरटीआई के तहत जानकारी लेने-देने की संस्कृति विकसित होना चाहिए।
· क्रेडिट कार्ड के माध्यम से आरटीआई के अंतर्गत ली जानी वाली फीस का भुगतान स्वीकार किया जाना चाहिए।
· शासन स्तर पर आईसीटी के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए साथ आरटीआई के कार्य में संलग्न अधिकारियों को आईसीटी के बारे में प्रषिक्षित किया जाना चाहिए।
· भारत के हर नागरिक को षिक्षा के अधिकार की तरह आरटीआई के अधिकार के बारे में जागरूक बनाना चाहिए।
· केन्द्र और राज्य सरकारों को यथा संभव पाठ्यक्रमों में आरटीआई को शामिल किया जाना चाहिए।

मेरे बारे में

सरमन नगेले
संपादक
ई-समाचार पत्र
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पत्रकारिता - साधनों की शुध्दता के साथ लोकहित के उद्देश्य से सत्य उध्दाटित करने की रचनात्मक प्रक्रिया।
पत्रकार - एक चिंतक, योध्दा और सत्य का रक्षक।
सफलता - उत्कृष्ट होना और बने रहना सफल होने से ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।
जन्म - 10 जून 1969 को बुंदेलखण्ड के झांसी शहर के स्व. श्री एम.एल. नगेले एवं श्रीमती शकुन नगेले के मध्यम परिवार में। शिक्षा - हिन्दी में स्नातक,
कैशोर्य की देहरी लांघते ही मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पदार्पण।
जीवन यात्रा - रचनात्मक एवं राजनीतिक लेखन की ओर छात्रावस्था से ही रूझान रहा।
म.प्र. के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री सीडी संस्करण प्रथम एवं द्वितीय। सामाजिक-आर्थिक विषयों पर लेखन की दृष्टि से भारत सरकार ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह, केरल, तामिलनाडू जैसे राज्यों का अध्ययन भ्रमण कराया। इस यात्रा तथा मधयप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र की सामाजिक आर्थिक अधोसंरचना का अधययन भ्रमण के दौरान सृजित हुई।
''माया'' राष्ट्रीय राजनैतिक पत्रिका में कुछ मापदण्ड निर्धारित कर मध्यप्रदेश के टाँप टेन एम.एल.ए. चयनित कर विधायकों पर केन्द्रित विशेषांक का सृजन। अब तक के मप्र विधानसभा के अध्यक्षों पर केन्द्रित सीडी का सृजन। सिंहास्थ 2004 पर केन्द्रित सीडी का सृजन। आईटी स्टेटस इन मध्यप्रदेश, आईटी फॉर डव्लेपमेंट, ई@मध्यप्रदेश विशेषांक का संपादन। मध्यप्रदेश में ई-सेवाएं एक नजर में। प्रवासी भारतीय दिवस 7-9 जनवरी, 2008 पर विशेषांक का संपादन।
लगभग दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय - इंटरनेट मीडिया एक नये स्वरूप में सामने आ रहा है। हिन्दी भाषी राज्यों में इंटरनेट पत्रकारिता का शैशवकाल है। भारत में इंटरनेट पत्रकारिता की संभावनाओं को देखते हुए http://www.mppost.org/ पर मध्यप्रदेश का पहला इंटरनेट हिन्दी समाचार पत्र एक जनवरी 2005 से शुरू किया।
चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, असाम, पंजाब, तमिलनाडू, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात की आई.टी. नीतियों का अध्ययन, इंटरनेट पत्रकारिता से जुड़े लोगों, संस्थाओं प्रमुख, आई.टी. कंपनियों, विशेषज्ञों से सतत् संवाद। इंटरनेट पर आयोजित अंर्तराष्ट्रीय सेमीनार डब्ल्यू3सी में मध्यप्रदेश की ओर से प्रतिनिधित्व किया। साऊथ एषिया की सबसे बड़ी आई.टी. प्रर्दशनी एवं सेमीनार जीटेक्स इंडिया में भाग लिया। साऊथ एशिया के सबसे बड़े संचार एवं आई.टी. इवेंट कर्न्वजेंस इंडिया- 2006 में शामिल हुए। प्रवासी भारतीय दिवस में विशेष रूप से मीडिया प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। म.प्र. सरकार द्वारा आयोजित आई.टी. समिट में हिस्सा लिया।
पत्रकारिता -
बीबीसी- वेबदुनिया द्वारा आयोजित ऑन लाइन पत्रकारिता कार्यशाला में भागीदारी। राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली, अक्षर भारत, दिल्ली, राज्य की नई दुनिया, भोपाल जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में संवाददाता के रूप में कार्य। म.प्र. के प्रमुख दैनिक नवीन दुनिया जबलपुर के भोपाल ब्यूरो प्रमुख के रूप में संबध्द रहे। महाकौशल के प्रमुख सांध्य दैनिक सीटाइम्स के भोपाल ब्यूरो प्रमुख के रूप में संबध्द रहे। राष्ट्रीय राजनैतिक पत्रिका ''माया'' के मध्यप्रदेश विशेष संवाददाता के रूप में संबध्द रहे। दूरदर्शन, आकाशवाणी के लिये संवाद लेखन, विधानसभा कार्यवाही की समीक्षात्मक रिर्पोट लेखन। भोपाल दूरदर्शन से प्रसारित लाइव फोन इन कार्यक्रम शुभ-शाम में 17 अगस्त 2009 को विषय विशेषज्ञ के रूप में वेब जर्नलिज्म में भविष्य का प्रसारण।
संप्रति -
संपादक - एमपीपोस्ट इंटरनेट समाचार एवं विचार सेवा और वेबसाइट http://www.mppost.org/
ब्लाग - http://journocrat.blogspot.com/
समन्वयक, सेन्ट्रल प्रेस क्लब, भोपाल। उपाध्यक्ष, ब्यूरो चीफ एसोशिएशन, भोपाल। संस्थापक, सदस्य एवं संचालक राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्यादित, भोपाल, सदस्य- मध्यप्रदेश जर्नलिस्ट यूनियन (जम्प)। आजीवन सदस्य, मध्यप्रदेश विधानसभा पुस्तकालय, भोपाल। सदस्य, इंटरनेट आधारित सेवा सॉल्यूषन एक्सचेंज। अनेक राष्ट्रीय एवं प्रांतीय सामाजिक एवं रचनात्मक संगोष्ठियों में हिस्सा लिया।
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