रविवार, 1 जून 2025

 PM MODI-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का “नागरिक देवो भव:” का नया मंत्र 

डिजिटल इकोसिस्टम मुख्य आधार 


डिजिटल इंडिया के माध्यम से विकसित किये गए डिजिटल ईकोसिस्टम से नागरिक कल्याण 


( सरमन नगेले )


https://twitter.com/mppost1/status/1924058837692096512


https://mppost.com/pmmodi-16/


" भारतीय संविधान में नागरिक कल्याण के लिए कई प्रावधान हैं, जो नागरिकों को उनके अधिकारों, स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित करते हैं। संविधान के विभिन्न भाग और अनुच्छेद नागरिक कल्याण के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जैसे कि मौलिक अधिकार, राज्य के नीति निर्देशक तत्व, और मौलिक कर्तव्य। वैसे भारत की वर्तमान नरेंद्र मोदी सरकार ने संविधान में नागरिक कल्याण के लिए प्रावधानों को न केवल आत्मसात किया है बल्कि संविधान प्रदत्त नागरिक कल्याण के अधिकारों को सर्वोपरि रखते हुए एक समाज शास्त्र का नया विचार "नागरिक देवो भव:" मंत्र के साथ नागरिकों के सम्मुख टेक्नोलॉजी के सपोर्ट से रखा है ।


एक लंबे अध्ययन के पश्चात रेखांकित करने योग्य बात यह है की देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का किसी भी कार्यक्रम का भाषण डिजिटल, टेक्नोलॉजी का प्रभावी तरीके से उल्लेख किये बिना पूरा होता ही नहीं है "। डिजिटल इंडिया के माध्यम से विकसित किये गए डिजिटल ईकोसिस्टम से नागरिक कल्याण को और प्रभावी बनाने की मंशा को अमल में लाने, ठोस रणनीति के साथ काम करने के लिए यही बात प्रधानमंत्री को उत्साहित एवं प्रेरित भी करती है। 


यहाँ यह सन्दर्भ समीचीन और सामयिक है। " संवेदनशील रहिए, गरीब की आवाज सुनिए, गरीब की तकलीफ समझिए, उनका समाधान करना अपनी प्राथमिकता बनाइए, 

जैसे अतिथि देवो भव: होता है, वैसे ही "नागरिक देवो भव:" इस मंत्र को लेकर के भारत के नौकरशाह को चलना है। भारत के नौकरशाह नए भारत के शिल्पकार हैं। नौकरशाह को सिर्फ भारत के सिविल सर्वेंट के रूप में ही नहीं, विकसित भारत के शिल्पकार के रूप में अपने आपको दायित्व के लिए तैयार करना है"। 21 अप्रैल 1947 को सरदार वल्‍लभ भाई पटेल ने नौकरशाह को स्टील फ्रेम ऑफ़ इंडिया कहा था। उन्होंने स्वतंत्र भारत की ब्यूरोक्रेसी की नई मर्यादाएं तय की थीं। एक ऐसा सिविल सर्वेंट, जो राष्‍ट्र की सेवा को अपना सर्वोत्तम कर्तव्य माने। जो लोकतांत्रिक तरीके से प्रशासन चलाए। जो ईमानदारी से, अनुशासन से, समर्पण से भरा हुआ हो। जो देश के लक्ष्यों के लिए दिन-रात काम करे। सरदार वल्‍लभ भाई पटेल की ये बातें और ज़्यादा प्रासंगिक हो जाती हैं । प्रधानमंत्री द्वारा यह विचार नए समाजशास्त्र के रूप में भारत के नौकरशाह के लिए विगत दिनों प्रकट किये गए हैं। 


आज के दौर में सभी लोग पूरी दुनिया को तेज गति से बदलते हुए देख रहे हैं। यहाँ तक की 10-15 साल का बच्चा है और जब उससे बात करते हैं, तो आप फील करते हैं, आप आउटडेटेड हैं। ये इसलिए होता है क्योंकि समय बहुत तेजी से बदल रहा है। हर 2-3 साल में गैजेट्स  कैसे बदल रहे हैं। कुछ समझें , सीखें उसके पहले नया आ जाता है। लेकिन छोटे-छोटे बच्चे इन तेज बदलावों के साथ बड़े हो रहे हैं। देश की  ब्यूरोक्रेसी, हमारा कामकाज, हमारी पॉलिसी मेकिंग भी पुराने ढर्रे पर नहीं चल सकती। 


डिजिटल इकॉनमी का लाभ, ऐसी ही बातें हैं जो समग्र विकास, शासन में गुणवत्ता सिर्फ  स्कीम्स लांच करने से नहीं आती। बल्कि शासन में गुणवत्ता इससे तय होती है कि वो स्कीम कितनी गहराई तक जनता के बीच पहुंची, और उसका कितना रियल इम्पैक्ट ।


आज भारत का शासन मॉडल, अगली पीढ़ी के सुधार पर फोकस कर रहा है। मोदी सरकार टेक्नोलॉजी और इनोवेशन और  इनोवेशन प्रक्टिसेस के जरिए सरकार और नागरिकों के बीच की दूरी समाप्त कर रही है । इसका इम्पैक्ट ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ दूरदराज के इलाकों में भी दिख रहा है।  


G20 प्रेसीडेंसी में 60 से ज्यादा शहरों में 200 से ज़्यादा मीटिंग्स , इतना बड़ा और समावेशी पदचिह्न , G20 के इतिहास में पहली बार हुआ और यही तो टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल के चलते समग्र दृष्टिकोण है। केंद्र सरकार ने डिले सिस्टम को खत्म करने की कोशिश की है। टेक्नोलॉजी के माध्यम से टर्नअराउंड टाइम को भी घटा रही  है। 


अधिकारियों को हर सेक्टर में देखना होगा कि जो लक्ष्य तय किए हैं, क्या उनको पाने के लिए वर्तमान स्पीड काफी है। अगर नहीं है तो, उसे बढ़ाना है। अब टेक्नॉलॉजी सबके पास है, वो पहले नहीं थी। टेक्नॉलॉजी की ताकत के साथ आगे बढ़ना बेहद ज़रूरी है। मोदी सरकार ने 4 करोड़ गरीबों के लिए पक्के घर बनाए, लेकिन अभी 3 करोड़ नए घर बनाने का लक्ष्य उनके सामने है। 5-6 सालों में 12 करोड़ से ज्यादा ग्रामीण घरों को नल कनेक्शन से जोड़ा गया है। अब जल्द से जल्द गांव के हर घर को नल कनेक्शन से जोड़ना उनका प्रमुख लक्ष्य है। 10 साल में गरीबों के लिए 11 करोड़ से ज्यादा शौचालय बनाए गये हैं, अब  वेस्ट मैनजमेंट से जुड़े नए लक्ष्यों को जल्द से जल्द प्राप्त करना है, कोई सोच भी नहीं सकता था कि करोड़ों गरीबों को 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज मिलेगा। अब देश की जनता में न्यूट्रिशन को लेकर नए संकल्पों को सिद्ध करना है।सभी का एक ही लक्ष्य होना चाहिए, 100 परसेंट कवरेज, 100 परसेंट इम्पैक्ट , इसी अप्रोच ने 10 साल में 25 करोड़ लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। यह सब टेक्नोलॉजी के बलबूते किया गया है। 


आज की टेक ड्रिवेन दुनिया में सिविल सर्वेन्ट्स को ऐसी स्किल्स चाहिए जो ना उन्हें सिर्फ टेक्नोलॉजी समझने में मदद करें, बल्कि उसे स्मार्ट  और इंक्लूसिव गवर्नेंस के लिए इस्तेमाल भी कर सकें। प्रौद्योगिकी के युग में, शासन का मतलब प्रणालियों का प्रबंधन करना नहीं है, बल्कि संभावनाओं को बढ़ाना है.” सभी को टेक सेवी होना पड़ेगा, ताकि हर पॉलिसी और स्कीम को टेक्नोलॉजी के ज़रिए ज्यादा एफिसिएंट और एक्सेसिबल बनाया जा सके। डाटा ड्रिवेन डिसिशन मेकिंग में एक्सपर्ट बनना होगा, जिससे पॉलिसी डिजाइनिंग और इम्प्लीमेंटेशन ज्यादा एक्यूरेट हो सके। नई टेक्नोलॉजी Artificial Intelligence -कृत्रिम बुद्धिमत्ता और Quantum Physics- क्वांटम भौतिकी कितनी तेजी से विकसित हो रही है। जल्द ही, टेक्नोलॉजी के उपयोग में एक नई क्रांति आएगी । 


पहले अगर सरकार एक रुपया गरीब को भेजती थी तो उसमें से 85 पैसा लुट जाता था । सरकारें बदलती रहीं, साल बीतते रहे, लेकिन गरीब के हक का पूरा पैसा उसे मिले, इस दिशा में ठोस काम नहीं हुआ। गरीब का पूरा पैसा गरीब को मिले, एक रुपया दिल्ली से निकले, तो सौ के सौ पैसे उसके पास पहुंचने चाहिए। इसके लिए डिजिटल बैंकिंग यानि टेक्नोलॉजी की मदद से  डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की व्यवस्था की। और इससे सरकारी स्कीम्स में लीकेज रुकी, लाभार्थियों तक सीधे बेनिफिट पहुंचा, सरकार की फाइलों में 10 करोड़ ऐसे फर्जी लाभार्थी थे, जिनका कभी जन्म भी नहीं हुआ था। मोदी सरकार ने इन 10 करोड़ फर्जी नामों को सिस्टम से हटाया और DBT के माध्यम से सीधा पूरा का पूरा पैसा गरीबों के बैंक खातों में भेजा। इससे साढ़े तीन लाख करोड़ रुपए से ज्यादा, गलत हाथों में जाने से बचा है। 


मोदी सरकार ने, राज्य सरकारों के साथ मिलकर, नदियों को जोड़ने का महाअभियान शुरु किया है। केन बेतवा लिंक परियोजना, पार्वती-कालीसिंध-चंबल लिंक परियोजना, इनसे लाखों किसानों को फायदा होगा। इस काम में टेक्नोलॉजी का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा। चाहे AI हो ड्रोन्स हों अथवा अन्य टेक्नॉलजी सभी नवीन टेक्नोलॉजी उपयोगी साबित हो रही है। 


दिलचस्प और गौरतलब बात यह है की देश में लोकतंत्र और विकास साथ-साथ चल सकते हैं? यह टेक्नोलॉजी के आधार पर संभव हो रहा है। "डेमोक्रेसी कैन डिलीवर" यानी डेमॉक्रेसी रिजल्ट्स दे सकती है। पिछले एक दशक में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं, इससे पूरी दुनिया को ये संदेश मिला है, डेमोक्रेसी कैन डिलीवर। जिन करोड़ों छोटे उद्यमियों को मुद्रा योजना से लोन मिला, उन्हें आज महसूस होता है कि, डेमोक्रेसी कैन डिलीवर। 


देश में ट्राइबल्स में भी ऐसी अति पिछड़ी ट्राइबल जातियां थीं, जिन तक विकास का लाभ नहीं पहुंच पाया था। एक तरफ जहाँ पीएम जनमन योजना से इन जातियों तक सरकारी सुविधा पहुंची है, तो उन्हें भी भरोसा हुआ है, डेमोक्रेसी कैन डिलीवर! देश का विकास, देश के संसाधन, आखिरी व्यक्ति तक बिना किसी भेदभाव पहुंचें, लोकतंत्र का असली अर्थ, असली उद्देश्य यही है औऱ हमारी सरकार यही कर रही है। यह सब टेक्नोलॉजी के सहारे संभव हो रहा है। 


दूसरी ओर देश के गरीब को जब पक्का घर मिलता है, तो वो सशक्त होता है, उसका स्वाभिमान बढ़ता है। जब गरीब के घर में शौचालय बनता है, तो उसे खुले में शौच के अपमान और पीड़ा से मुक्ति मिलती है। जब आयुष्मान भारत योजना से गरीब को 5 लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज मिलता है, तो उसके जीवन की बहुत बड़ी चिंता कम होती है। कुल मिलाकर टेक्नोलॉजी की मदद से केंद्र सरकार  द्वारा देश की जनता को निर्बाध रूप से एम्पॉवर किया जा रहा है । 


जहाँ तक बात प्रधानमंत्री द्वारा सिविल सर्विस डे के दौरान पेश किये गए "नागरिक देवो भव:" मंत्र की है । यह  मोदी सरकार का मूल विचार है ऐसा कहा गया है । वे जनता में जनार्दन देखते हैं। जनता की सेवा भावना ही सरकार को मूल ध्येय है । सरकार खुद, नागरिक तक सेवा पहुंचाने की पहल करती है। आजकल तो हर फॉर्म ऑनलाइन भरते हैं। एक समय था, जब अपने ही डॉक्यूमेंट्स को अटेस्ट कराने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते थे। अब आप वही सारे काम सेल्फ अटेस्ट करके भी कर सकते हैं।


देश के सीनियर सिटिजन्स कहीं से भी, डिजिटली अपना जीवन प्रमाण पत्र दे सकते हैं। बिजली कनेक्शन लेना हो, पानी का नल लगवाना हो, बिल जमा करना हो, गैस बुक करानी हो और यहां तक कि गैस सिलेंडर की डिलिवरी लेनी हो मतलब सब ऑनलाइन। 


लब्बोलुआब यह है की प्रधानमंत्री श्री मोदी लगातार ये कोशिश कर रहे हैं, कि हर वो इंटरफेस, जहां लोगों को सरकार से कोई इंटरैक्शन करना हो, जैसे पासपोर्ट का काम हो, टैक्स रीफंड का काम हो, ऐसे हर काम सिंपल , फास्ट और एफिसिएंट हों। यही "नागरिक देवो भव:" मंत्र का उद्देश्य है। 

 

भारत, अपनी परंपरा और प्रगति को एक साथ लेकर चल रहा है। विकास भी, विरासत भी, ये सरकार का  मंत्र है। ट्रेडिशन और टेक्नॉलॉजी कैसे एक साथ थ्राइव करती है, ये भारत ने करके दिखा दिया है। डिजिटल ट्रांजेक्शन में दुनिया में टॉप के देशों में है भारत । और साथ ही, योग और आयुर्वेद के ट्रेडिशन को भी पूरी दुनिया में  मोदी सरकार ले जा रही है। भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फोन निर्माता देश है। 


एक दशक पहले पहले जब मोदी जी डिजिटल इंडिया की बात करते थे, तब कई लोग बहुत सारी आशंकाएं व्यक्त करते थे। लेकिन आज डिजिटल इंडिया भारत के हर नागरिक का जीवन का एक सहज हिस्सा बन चुका है। सस्ते डाटा और सस्ते मेड इन इंडिया स्मार्टफोन्स ने एक नई क्रांति को जन्म दिया है। डिजिटल इंडिया से कैसे ईज ऑफ लिविंग बढ़ी। डिजिटल इंडिया ने कैसे कंटेंट और क्रिएटिविटी का एक नया संसार बना दिया है। 


उल्लेखनीय तथ्य यह है की देश की किसी भी गांव में अच्छा खाना बनाने वाली एक महिला मिलियन सब्सक्राइबर क्लब में है। किसी आदिवासी क्षेत्र का युवा अपनी लोक कला से दुनिया भर के दर्शकों को जोड़ रहा है। कोई स्कूल में पढ़ने वाला नौजवान है, जो टेक्नोलॉजी को शानदार तरीके से बता रहा है, समझा रहा है। रेखांकित करने योग्य बात यह है की अकेले यूट्यूब -YouTube ने ही बीते तीन साल में भारत के कंटेंट क्रिएटर्स को 21000 करोड़ रुपये का पेमेंट किया है। यानी फोन सिर्फ कम्युनिकेशन का ही नहीं, क्रिएटिविटी का, कमाई का भी बहुत बड़ा टूल बनकर उभरा है । यूट्यूब से क्रिएटर खूब कमाई कर रहे हैं। 

यूट्यूब के सीईओ नील मोहन ने बताया कि भारत में पिछले साल 10 करोड़ से ज्यादा चैनलों ने कॉन्टेंट अपलोड किया. वहीं, 15 हजार से ज्यादा चैनलों ने 10-10 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर्स हासिल किए। यूट्यूब अगले दो वर्षों में 850 करोड़ रुपये का निवेश करेगा, ताकि भारत की बढ़ती क्रिएटर अर्थव्यवस्था को और बढ़ावा मिले।


बीते वर्षों में भारत एक बड़ा इलेक्ट्रॉनिक्स एक्सपोर्टर बनकर उभरा है। लोकल प्रॉडक्ट्स, ग्लोबल हो रहे हैं। भारत का एक्सपोर्ट बीते वर्ष, करीब 825 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। 825 बिलियन डॉलर, यानी सिर्फ एक दशक में भारत ने अपना एक्सपोर्ट करीब-करीब दोगुना किया है। 


डिजिटल इंडिया के माध्यम से विकसित किये गए डिजिटल ईकोसिस्टम के जरिए "नागरिक देवो भव:" की  भावना तब ही पूरी तरह साकार होगी जब जनता की सेवा भावना ही सरकार को मूल ध्येय हो , और सरकार खुद, नागरिक तक समस्त प्रकार की सेवाएँ पहुंचाने का विशेष अभियान प्रारंभ करे।


( लेखक : वरिष्ठ पत्रकार और दो दशक से अधिक समय से डिजिटल मीडिया से जुड़े हैं )

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

डिजिटल पत्रकारिता से समृद्ध होगी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राज्य सत्ता डिजिटल पत्रकारिता को सहारा देने के लिए दखल देकर धर्म निभाए ( सरमन नगेले ) http://mppost.com/article-of-digital-media/ भारत में प्रजातंत्र को समृद्ध करने में डिजिटल पत्रकारिता वर्तमान समय में निःसंदेह प्रभावी उत्प्रेरक साबित हुई है। इसलिए सरकार की ओर से अपेक्षित प्रोत्साहन मिलना अनिवार्य हो गया है। भारत सरकार जब एक झटके में चीन के ऍप्लिकेशंस बंद कर सकती है, डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म्स को भारत का कानून मानने पर बाध्य कर सकती है,इंडिया में उनका प्रतिनिधि होना अनिवार्य कर सकती है,संसद की समिति के समक्ष सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म्स कंपनियों के अधिकृत प्रतिनिधियों की सुनवाई हो सकती है तो डिजिटल मीडिया के मसले पर हस्तक्षेप भी कर सकती है। डिजिटल पत्रकारिता को सहारा देने के लिए यह वक्त इसलिए सही है क्योंकि भारत सरकार खुद डिजिटल मीडिया आचार संहिता 2021 लेकर आयी है। राज्य सत्ता दो स्थितियों में बाज़ार में दख़ल देता हैं। पहला तब जब बाज़ार ठीक ढंग से काम नहीं कर रहे हों या दूसरा तब जब मुद्रा का नए सिरे से वितरण करने की ज़रूरत महसूस की जा रही दरअसल मौजूदा डिजिटल और सूचना क्रांति वाले युग में सेवा प्रदाताओं - डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स मसलन :सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटस,फेसबुक,गूगल,माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट,टविटर,वीडियो मंच यूट्यूब,फ्लिकर,टम्बलर,स्टेमबेलपोन,लिंक्डइन,इंस्टाग्राम,व्हाट्सअप और न्यूज़ पब्लिशर्स के बीच धन के वितरण में मुफ़्तख़ोरी के स्वरूप में बाज़ार की नाकामी का कोई उत्प्रेरक नजर तो नहीं आता. अलबत्ता इन दोनों में सहजीवी रिश्ता जरूर है जो जग जाहिर है। जहां एक तरफ डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स उपयोगकर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए समाचार सामग्रियों का इस्तेमाल करते हैं, वहीं दूसरी तरफ समाचार प्रकाशकों - ख़ासतौर से छोटे आकार वाले पब्लिशर्स को इन प्लैटफ़ॉर्म्स के ज़रिए इंटरनेट पर परोक्ष ट्रैफ़िक हासिल होता है। ये बात न केवल बिल्कुल सही है की डिजिटल माध्यमों का पलड़ा भारी है बल्कि वे शक्तिशाली भी है तभी तो विज्ञापन से हुई कमाई में उन्हें मोटा हिस्सा प्राप्त होता है। एक स्वस्थ लोकतंत्र और सेहतमंद मानव समाज के लिए पत्रकारिता का क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है,इसलिए डिजिटल पत्रकारिता के वित्तीय रूप से टिकाऊ न रहने की स्थिति में राज्यसत्ता मूकदर्शक बनकर नहीं रह सकती,इसी पृष्ठभूमि के चलते राज्यसत्ता द्वारा दख़ल दिए जाने को जायज़ ठहराया जाता है। एक स्वस्थ समाज के संरक्षण और पोषण के अच्छे उद्देश्य से उसमें स्वस्थ और विविध स्वरूप वाले मीडिया क्षेत्र की मौजूदगी सुनिश्चित करना ज़रूरी समझा गया है। भारत डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स का सबसे बड़ा बाज़ार है। भारत सरकार जब एक झटके में चीन की सेकड़ों मोबाइल ऍप्लिकेशन्स बंद कर सकती है, डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स को भारत का कानून मानने पर बाध्य कर सकती है,इंडिया में उनका प्रतिनिधि हो इस पर अमल करा सकती है,संसद की समिति के समक्ष उनकी सुनवाई हो सकती है,तो भारत के डिजिटल मीडिया को सहारा क्यों नहीं दे सकती। जबकि भारत सरकार के अधीन अनेक शक्तियां हैं जिसका उपयोग डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स पर कर अपना राज्य सत्ता का धर्म निभाए। डिजिटल पत्रकारिता को सहारा देने के लिए नीतिगत स्तर पर कई उपायों पर विचार किया गया. इस दिशा में यूरोपीय संघ ने एक ठोस क़दम उठाया था. ईयू ने प्रेस प्रकाशनों में ‘फुटकर समाचारों’ समेत एक नए ‘नेबरिंग राइट’ का प्रावधान किया. इसके ज़रिए उम्मीद की गई थी कि डिजिटल माध्यमों द्वारा समाचारों का इस्तेमाल किए जाने पर प्रकाशकों को भी अपने आईपी-संरक्षित सामग्रियों के बदले कमाई करने का मौका मिल जाएगा. ‘फुटकर समाचार’ में प्रकाशकों के हाइपरलिंक्ड वेबपेज से लिए गए लेखों के संक्षिप्त अंश, तस्वीरें, इंफ़ोग्राफिक्स और वीडियो शामिल होते हैं. ईयू से पहले जर्मनी ने इसी तरह का क़दम उठाया था। लब्बोलुआब यह है की ‘फुटकर समाचारों’ के रूप में एक नई तरह के संपदा अधिकारों को मान्यता देकर डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स को सामग्रियों की लाइसेंसिंग प्राप्त करने के अधिकार दिए जाएं,आम तौर पर बौद्धिक संपदा कानून में ‘फुटकर समाचारों’ के लिए किसी तरह के संपदा अधिकारों को मान्यता नहीं दी जाती है। बौद्धिक संपदा (आईपी) न्यायशास्त्र के दृष्टिकोण से नए ‘नेबरिंग राइट’ के निर्माण को जायज़ नहीं ठहराया जा सकता. इसकी वजह ये है कि डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म्स प्रकाशकों की सामग्रियों को मुफ़्त में इस्तेमाल नहीं करते. बौद्धिक संपदा संरक्षण प्रदान किए जाने के पीछे मुफ़्तख़ोरी के रूप में बाज़ार की नाकामी को जायज़ वजह के तौर पर प्रमुखता से पेश किया जाता रहा है, इसलिए क़ानूनों से जुड़े शैक्षणिक जगत ने इस नए विधान की घोर आलोचना की. उनका कहना था कि ये नया क़ानून धन का पुनर्वितरण सुनिश्चित करने के बावजूद बौद्धिक संपदा की क़ानूनी हदों की अनदेखी करता है। --- भारत में डिजिटल मीडिया प्रजातांत्रिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण उपकरण बन गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये सोशल मीडिया का मंच अधिकाधिक उपयोग किया जा रहा है। संविधान विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में इसका स्पष्ट प्रावधान है। इमरजेंसी के अलावा सामान्य स्थितियों में राज्य का दायित्व है कि नागरिकों के इस अधिकार की रक्षा करे। हालांकि संविधान के मुताबिक यह स्वतंत्रता असीमित या अमर्यादित नहीं है और अनुच्छेद 19 (2) में बताया गया कि राज्य किन स्थितियों में इस स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। ये स्थितियॉं हैं-देश की सम्प्रभुत्ता और एकता की रक्षा, भारत की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक-व्यवस्था ( पब्लिक ऑर्डर) या फिर न्यायपालिका की अवमानना, मानहानि या किसी को अपराध के लिए उकसाना। भारत में इंटरनेट मौलिक अधिकार बने: 15 अगस्त को आजादी के 75 साल हो गए। दिलचस्प यह है कि इसी दिन 15 अगस्त 1995 को भारत के अवाम को इंटरनेट पर विचारों की अभिव्यक्ति का अधिकार भी मिला। 15 अगस्त को इंटरनेट ने भी भारत में अपनी 26 वीं सालगिरह मनाई। सच तो है यह कि इंटरनेट इस युग में जीने और आगे बढ़ने के सबसे शक्तिशाली माध्यम के रूप में स्थापित हो रहा है। इंटरनेट के माध्यम से आज हर तरह की सूचना हमें बड़ी आसानी से मिल जाती है। वर्ल्ड वाइड वेब के जन्मदाता टिम बर्नर्स ली चाहते हैं कि इंटरनेट को मूल अधिकारों में शामिल किया जाए। भारत में डिजिटल मीडिया आचार संहिता लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अनुकूल है। इसका उद्देश्य विविधताओं से भरे लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कायम रखते हुए ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाली सामग्री की गुणवत्ता के स्तर को बनाये रखना है। भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा डिजिटल मीडिया आचार संहिता 2021 जारी की गई है। भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सभी को समान रूप से अधिकार है। किसी भी प्रकार के समाचार प्रसारित और प्रसारण करने वाले मीडिया संस्थान जैसे समाचार पत्र न्यूज पोर्टल,न्यूज वेबसाइट या अन्य माध्यम जो इलेक्ट्रानिक्स एवं आईटी मंत्रालय सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी ( मध्यवर्ती संस्‍थानों के लिए दिशा-निर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता ) नियम 2021 अधिसूचित किए है। उसके लिए कोई प्री-क्वॉलिफिकेशन - पूर्व अर्हता नहीं रखता है। भारत सरकार के मुताबिक़ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों द्वारा भारत में कारोबार करने का स्वागत है, लेकिन उन्हें भारत के संविधान और कानूनों का पालन करना होगा,सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल निश्चित तौर पर सवाल पूछने और आलोचना करने के लिए किया जा सकता है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों ने आम उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाया है, लेकिन इसका दुरुपयोग होने और गलत लाभ उठाने पर वे अवश्‍य जवाबदेह होंगे। क्या हैं नए नियम? ----- नए नियमों ने सोशल मीडिया के सामान्य उपयोगकर्ताओं को सशक्त बनाया है और इनमें उनकी शिकायतों के निवारण व समय पर समाधान के लिए उपयुक्‍त व्‍यवस्‍था है। डिजिटल मीडिया और ओटीटी से जुड़े नियमों में आतंरिक एवं स्व-नियमन प्रणाली पर अधिक फोकस किया गया है जिसमें पत्रकारिता व रचनात्मक स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए एक मजबूत शिकायत निवारण व्‍यवस्‍था की गई है। प्रस्तावित रूपरेखा प्रगतिशील, उदार और समसामयिक है इसमें रचनात्मकता और अपने विचार व्‍यक्‍त करने एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने के बारे में किसी भी गलतफहमी को दूर करते हुए लोगों की विभिन्न चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया गया है। इंटरनेट पर कोई सामग्री देखने और किसी थिएटर एवं टेलीविजन के दर्शक के बीच अंतर को ध्यान में रखते हुए ही दिशा-निर्देश तैयार किए गए हैं। आचार संहिता के भाग 3 से जुड़े प्रावधान बताता है की आचार संहिता का उद्देश्य किसी को दंडित करना नही है। पिछले कुछ वर्षो में डिजिटल मीडिया की भूमिका काफी बढ़ी है और पिछले 6 वर्षो में इंटरनेट डेटा का इस्तेमाल 43 प्रतिशत तक बढ़ चुका है। एवं ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित की जाने वाली सामग्री को लेकर शिकायतें हों रही थीं। सोशल मीडिया, ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाले कॉन्टेंट को लेकर देश के अनेक मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सांसद और विधायकों के अलावा आम नागरिकों ने भी शिकायतें की थीं। जिसके चलते भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा डिजिटल मीडिया आचार संहिता 2021 बनायी गयी है। इसके तहत न्यूज पोर्टल, न्यूज वेबसाइट या ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर काम कर रहे लोग उनके मीडिया संस्थान आते हैं । इन प्लेटफॉर्म्स पर भी देश के मौजूदा कानून लागू होंगे और इसका उद्देश्य ऐसी सामग्री के प्रसारण पर रोक लगाना है जो मौजूदा कानूनों को उल्लंघन करने के साथ-साथ महिलाओं के प्रति आपत्तिजनक और बच्चों के लिए नुकसानदेह हैं, इसके लिए समाचार प्रकाशकों और ओटीटी प्लेटफॉर्म और कार्यक्रम प्रसारकों को अपने यहां एक शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी और इन शिकायतों की जानकारी भी प्रदर्शित करनी होगी। इसके साथ ही समाचार प्रकाशकों को एक नियामक संस्था का सदस्य भी बनना होगा ताकि कार्यक्रम से संबंधित शिकायतों का निपटारा हो सके। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय एक अन्तर मंत्रालय समिति का गठन करेगा जो समाचार प्रकाशक या नियामक संस्था द्वारा न सुझायी गयी शिकायतों का निपटारा करेगा। इस समिति मे महिला एवं बाल विकास, गृह, कानून, सूचना प्रद्यौगिकी, विदेश मंत्रालय के प्रतिनिधियों के साथ-साथ डोमेन एक्सपर्ट भी शामिल होंगे। मंत्रालय किसी भी न्यूज पोर्टल, न्यूज वेबसाइट या ओटीटी पोर्टल का पंजीकरण नही कर रहा है बल्कि इनके बारे में जानकारी जुटाने का उद्देश्य यह है कि कॉन्टेंट और कार्यक्रम के बारे में कोई शिकायत मिलने पर उनसे सम्पर्क किया जा सके। इससे छोटे और मझोले स्तर के समाचार पोर्टल पर कोई विपरीत प्रभाव नही पड़ेगा। आचार संहिता का उद्देश्य समाचार प्रकाशकों और ओटीटी प्रस्तुतकर्ताओं को उन नियमों और मर्यादाओं के बारे में जागरूक करना है, जिनके पालन से देश की एकता, अखंडता एवं सौहार्द कायम रह सके। --- { लेखक : डिजिटल मीडिया के जानकार और दो दशक से डिजिटल मीडिया पर सक्रिय हैं। }

 

सोमवार, 20 मई 2019

मीडिया बनाम सोशल मीडिया

मीडिया बनाम सोशल मीडिया
सोशल मीडिया ने मास मीडिया को ज़िम्मेदार बनाया 
लोकतंत्र को और जीवंत बनाता सोशल मीडिया

( सरमन नगेले )  

प्रिंट मीडिया में इन दिनों लगातार एक विज्ञापन प्रकाशित किया जा रहा है जिसमें प्रिंट मीडिया को विश्वसनीय बताने के दावे किए जा रहे हैं।  सवाल है कि अगर प्रिंट इतना ही ज़िम्मेदार है तो उसे विज्ञापन देने की ज़रुरत ही क्यों पड़ी ?

सूचना प्रौद्योगिकी का सबसे प्रभावशाली असर सूचनाओं के आवागमन पर पड़ा है। इससे सूचनाओं तक जनता की पहुंच आसान हो गई है। सोशल मीडिया ने सूचनाओं की गति से कदम ताल करने में अपनी क्षमता साबित कर दी है। अब पारंपरिक प्रिंट मीडिया को भी डिजिटल मीडिया का रूप लेना पड़ा है। सभी प्रिंट संस्करण के डिजिटल संस्करण निकल गए है।

प्रामाणिकता पर अब कोई प्रश्न नही उठ रहा है क्योंकि सोशल मीडिया प्रामाणिक समाचार दे रहा है। दूसरी बाधा यह थी कि प्रिन्ट मीडिया पर जिस प्रकार के दबाव और सीमाएं थी वे सोशल नीडिया ने खत्म कर दी। इसलिए सोशल मीडिया पर अब दर्शक और पाठक उतना ही भरोसा कर रहे है जितना वे प्रिंट मीडिया पर कर रहे है। अब सवाल इस बात का नही है कि किसकी प्रमाणिकता ज्यादा है। सवाल यह है कि लोकतंत्र में चेतना आई या नही। कुछ घृणित सोच वालो ने सोशल मीडिया के प्लेटफार्म का दुरुपयोग जरूर किया है लेकिन इस मीडिया का उपयोग करने वाले पूरी तरह सावधान हो चुके है।

मीडिया बनाम सोशल मीडिया का दौर इस समय भारत में संपन्न हो रहे आम चुनाव 2019 में बढचढकर खूब देखने को मिल रहा है। इसका प्रमुख कारण यह है कि इस बार का लोकसभा चुनाव सोशल मीडिया पर या कहा जाए कि डिजिटल मीडिया पर सबसे ज्‍यादा लडा जा रहा है। कह स‍कते हैं कि लोकसभा चुनाव का सोशल मीडिया सिरमौर बनकर मीडिया के पांचवे स्‍तंभ की हैसियत प्राप्‍त करने में सफल रहा है।

['' सोशल मीडिया प्रजातंत्र का एक सर्वाधिक सक्रिय मित्र और प्रहरी बन गया है। भारत में संपन्न हुए सौलहवीं लोकसभा चुनाव में, हाल ही में पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में, अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने प्रजातंत्र की सेहत के लिये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है। कहा जा रहा है कि भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। '']

 विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महोत्सव यानि भारत के आम चुनाव 2019 में न केवल सर्वाधिक नया कुछ दिख रहा है बल्कि राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग भी जिसका भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। वह है सोशल मीडिया।

परंपरागत मीडिया सोशल मीडिया के अनेक प्लेटफार्म का न केवल उपयोग करता है बल्कि उनके साथ कार्यक्रम भी करते हैं। इसी के पैकेज के सहारे विज्ञापन लेते हैं। डीएवीपी में रेट कराते हैं। अपनी खबरों को इसी मीडिया के जरिए वायरल कराते हैं और अधिमान्‍यता भी प्राप्‍त करते हैं। साथ साथ केन्‍द्र सरकार और राज्‍य सरकारों के महत्‍वपूर्ण कार्यक्रमों में सोशल मीडिया के नाम पर स्‍थान भी प्राप्‍त करते हैं। समाचार का सोशल मीडिया वर्तमान समय में न केवल प्रमुख स्त्रोत हो गया है बल्कि परंपरागत मीडिया और पत्रकार गण सोशल मीडिया पर डिपेंडेंट हो गये हैं। लगभग सभी बडे मीडिया संस्‍थानों में डिजिटल मीडिया की विंग अलग से काम कर रही है।

प्रामाणिक है सोशल मीडिया

फिर कुछेक परंपरागत मीडिया द्वारा सोशल मीडिया को अप्रमाणित मीडिया कहना कहां तक न्‍याय संगत है। सोशल मीडिया को अप्रमाणित मीडिया कहने के लिए अभियान चलाना सोशल मीडिया के साथ अन्‍याय होगा। जबकि हक़ीक़त यह है की परंपरागत मीडिया निष्पक्षता की कसौटी पर इस चुनाव में खरा नहीं उतर सका नतीज़तन भारत का अवाम सोशल मीडिया के समर्थन में खड़ा नज़र आ रहा है। इसमें राजनैतिक दल भी शामिल हैं। एक अध्‍ययन बताता है कि भारत का निर्वाचन आयोग, भारत सरकार, राज्य सरकारें, केन्द्रीय संस्थाएं, एजेंसी, सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। यही नहीं राष्ट्रपति सचिवालय, प्रधानमंत्री सचिवालय, भारत का लोकसभा सचिवालय, राज्यसभा सचिवालय, संवैधानिक संस्‍थाएं, मंत्री, राज्यपाल और मुख्यमंत्री सोशल मीडिया के हिस्सा बने हुए हैं।केन्द्र सरकार ने बाक़ायदा  सोशल मीडिया विंग के लिए अलग से बजट रखा है। भारत निर्वाचन आयोग ने भी केन्द्रीय स्तर पर, राज्यों के स्तर पर बजट का प्रावधान हुआ है।

भारत का लगभग संपूर्ण पत्रकार जगत व मीडिया संस्थाएं सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। साथ-साथ सोशल मीडिया की विधिवत रूप से ट्रेनिंग भी ले रहा है। अनेक संस्थाएं कोर्स भी संचालित कर रही हैं। कुछेक विश्‍वविद्यालय सोशल मीडिया से संबंधित कोर्स चला रहे है। अनेक मीडिया संस्‍थानों ने नियुक्ति के समय सोशल मीडिया ज्ञान होना  प्रमुख शर्त रहती है।  इसी के साथ ही फेसबुक, गूगल और व्हाटसएप ने अफवाहों से बचने का अभियान चलाया एवं लोग फेक न्यूज से सावधान रहें, इसकी हकीकत का पता लगाने के लिए भारत में कई ट्रेनिंग केम्प भी किये हैं। चुनाव के पहले इन्ही परंपरागत मीडिया के अनेक संस्थाओं ने ट्रेनिंग भी ली है। सोशल मीडिया आम नागरिकों के जीवन का हिस्‍सा बन गया है।

अभिव्यक्ति का सशक्त मंच

सोशल मीडिया प्रजातांत्रिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण उपकरण बनकर उभरा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिये सोशल मीडिया का मंच अधिकाधिक उपयोग किया जा रहा है। संविधान विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है। संविधान के अनुच्छेद 19 (1) में इसका स्पष्ट प्रावधान है। इमरजेंसी के अलावा सामान्य स्थितियों में राज्य का दायित्व है कि नागरिकों के इस अधिकार की रक्षा करे। हालांकि संविधान के मुताबिक यह स्वतंत्रता असीमित या अमर्यादित नहीं है और अनुच्छेद 19 (2) में बताया गया कि राज्य किन स्थितियों में इस स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। ये स्थितियॉं हैं-देश की सम्प्रभुत्ता और एकता की रक्षा, भारत की सुरक्षा, दूसरे देशों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक-व्यवस्था (पब्लिक ऑर्डर) या फिर न्यायपालिका की अवमानना, मानहानि या किसी को अपराध के लिए उकसाना।

भारत का संविधान जो अधिकार परंपरागत मीडिया को देता है वही अधिकार सोशल मीडिया को मिल है। यहां तक की भारत में संपन्न होने जा रहे चुनाव के दौरान भारत निर्वाचन आयोग के जो नियम इलेक्टानिक मीडिया के लिए लागू होते हैं वही नियम सोशल मीडिया पर प्रभावशील होते हैं।

मीडिया की आजादी पर रिपोर्ट

मीडिया की आजादी से संबंधित एक सालाना रिपोर्ट में भारत दो पायदान खिसक गया है। 180 देशों में भारत 140वें नंबर पर पहुंच गया है। भारत में चुनाव प्रचार का दौर पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक होता है।वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2019 यानी ‘विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2019’ के अनुसार प्रेस की आजादी के मामले में नॉर्वे शीर्ष पर है। रिपोर्ट में पाया गया है कि दुनियाभर में पत्रकारों के प्रति दुश्मनी की भावना बढ़ी है। इस वजह से भारत में बीते साल अपने काम के कारण कम से कम 6 पत्रकारों की हत्या हो गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय पत्रकारों को कई खतरों का सामना करना पड़ता है। विश्लेषण से पता चलता है कि  2019 के आम चुनाव के दौरान एक दल के समर्थकों द्वारा पत्रकारों पर हमले किये गये। हिंदुत्व को नाराज करने वाले विषयों पर बोलने या लिखने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर घृणित अभियानों पर चिंता जताई है।

प्रेस की आजादी के मामले में भारत दो पायदान फिसलकर 140 वें, पाकिस्तान 3 पायदान लुढ़ककर 142 वें और बांग्लादेश 4 पायदान लुढ़ककर 150 वें स्थान पर है। नॉर्वे लगातार तीसरे साल पहले पायदान पर है जबकि फिनलैंड दूसरे स्थान पर है।  पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रंटियर्स (आरएसएफ) या रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स यह रिपोर्ट जारी करता है।

भारत का निर्वाचन आयोग और सोशल मीडिया

भारत का सोशल मीडिया, इंटरनेट यूजर और मोबाईल यूजर लगातार करोडों की संख्‍या में पहुंच रहे हैं।परंपरागत मीडिया एकतरफा संवाद बनाता है। जबकि सोशल मीडिया दो तरफा संवाद बनाने और अनेक लोगों को हस्तक्षेप करने की खुली इजाजत देता है भारतीय लोकतंत्र का अभिनव अनुभव डिजिटल लोकतंत्र। 2014 के आम चुनाव के सभी चरणों में सर्वाधिक 66.48 फीसदी मतदान हुआ है। इसके पहले का सर्वाधिक मतदान 1984 में 64.01 प्रतिशत दर्ज किया गया था। कुल मिलाकर सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने में अहम भूमिका 2014 के चुनाव में निभाई है। इस बार के चुनाव में भी पिछले चुनावों की तुलना में कई गुना अधिक सोशल मीडिया व्यापक पैमाने पर एवं प्रभावी ढंग से भूमिका निभा रहा है।

तभी तो भारत का निर्वाचन आयोग एवं राज्‍यों के मुख्‍य निर्वाचन पदाधिकारी और जिलों के निर्वाचन अधिकारी सोशल मीडिया की लगातार मॉनीटरिंग कर रहे हैं। साथ साथ फेक न्‍यूज से निपटने के लिए सोशल मीडिया के प्रमुख मंचों के भारत स्थित प्रतिनिधियों से सहयोग लिया जा रहा है और जिला निर्वाचन अधिकारी को जो प्रदत्‍त शक्तियां हैं उनका भी वे सोशल मीडिया पर नजर रखने के लिए उपयोग कर रहे हैं।  एक अध्‍ययन बताता है कि कुछ मीडिया संस्‍थान तो अब चुनाव परिणाम आने से पहले ई वोटिंग का भी सहारा ले रहा है। 

कुछ संस्‍थाएं आम मतदाता की नब्‍ज को टटोलने का सोशल मीडिया का उपयोग कर रहा है।  

अधिकाधिक उपयोग

यह साबित हो गया है कि सोशल मीडिया आज एक शक्तिशाली विकल्प के रूप में ऐसे लोग की आवाज बन गया है जिनकी आवाज या तो नहीं थी या अनसुनी कर दी जाती थी। आज शक्तिशाली विचारों को व्यापक रूप से फैलाने के लिये सोशल मीडिया एक शक्तिशाली मंच के रूप में उपयोग हो रहा है। विचारों के फैलाव के साथ ही सोशल मीडिया बड़े सामाजिक परिवर्तनों और सोच में बदलाव का कारण बन रहा है। इस दृष्टि से सोशल मीडिया प्रजातंत्र का एक सर्वाधिक सक्रिय मित्र और प्रहरी बन गया है। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने अपना अलग समुदाय और विशिष्ट नागरिकता की स्थिति बना ली है। सोशल मीडिया से जुड़े नागरिकों ने प्रजातांत्रिक प्रक्रिया में दबाव समूह के रूप में कार्य करने की संस्कृति भी विकसित कर ली है। वे न सिर्फ मत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं बल्कि प्रजातंत्र को भी मजबूत करने का काम कर रहे हैं।

जहां तक सोशल मीडिया के उद्भव की बात है तो इसका जन्‍म और विस्‍तार आईटी और इंटरनेट से हुआ है। मुख्य रूप से वेबसाइट, न्यूज पोर्टल, सिटीजन जर्नलिज्म आधारित वेबसाइट- ई-मेल, ब्लॉग, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटस, जैसे फेसबुक, माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट, ट्विटर, यूट्यूब, फ्लिकर, टम्बलर, स्टेमबेलपोन, लिंक्डइन, गूगल प्लस, इंस्टाग्राम, ब्लॉग्स, फॉरम, चैट व्हाट्सअप आदि सोशल मीडिया का हिस्सा है। सोशल मीडिया के विशेषज्ञ मोबाइल मीडिया को भी सोशल मीडिया का रूप मानते हैं जैसे एसएमएस, एमएमएस, मोबाइल वेबसाइट, मोबाइल एप, वीडियो लिंक, चेट, ऑडियो ब्रिज, मोबाइल के माध्यम से वॉयस कॉल, वीडियो चेट और मोबाइल रेडियो आदि।

भारत में तेजी से मोबाईल यूजर,इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर सक्रियता भी बढ़ रही है। जल्दी ही भारत अमेरिका से आगे निकल जायेगा। ऐसी स्थिति निर्मित हो गई है। भारत में संपन्न हुए सौलहवीं लोकसभा चुनाव और विधानसभा के चुनावों में सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने प्रजातंत्र की सेहत के लिये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है। इससे स्पष्ट है कि सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने सजगता के साथ मतदान में भागीदारी की।

भारत में संपन्‍न हो रहे लोकसभा चुनाव 2019 में सोशल मीडिया पर करोडों रूपये विज्ञापन के रूप में साथ ही व्‍यापक पैमाने पर उपयोग करने पर व्‍यय हो रहे हैं।

आम चुनाव 2019 में राजनैतिक वक्तव्यों, सभा, रोड शो, जनसंपर्क एवं मीडिया से होने वाली नियमित बातचीत की लाइव स्‍ट्रीमिंग लगातार की जा रह है और त्वरित टिप्पणियों की सोशल मीडिया पर धूम मची है। व्‍हाटसएप पर संदेशों और वीडियो बहुतायात में लक्षित 

समूहों के पास लक्षित समय पर भेजे जा रहे हैं। सभी राजनैतिक दलों के बीच और उम्‍मीदवारों में प्रतिस्‍पर्धा देखने का मिल रही है। सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया ने पिछले चुनाव में ट्विटर पर सबसे तेज चुनाव नतीजे के ट्रेंड को बताया। इस चुनाव में यह प्रक्रिया और अधिक ढंग से सोशल मीडिया के लगभग सभी प्‍लेटफार्म पर व्‍यापक पैमाने पर देखने का निश्चित रूप से मिलेगी। इस तरह की कवायद की जा रही है।

सही कहा है :-"मनुष्य तकनीक को जन्म देता है जो चिरस्थायी हो जाती है,

प्रौद्योगिकी अमर रहती है हालांकि इसके स्वरूप बदलते रहते हैं।"

(लेखक-न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट डॉट कॉम के संपादक हैं और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में 15 वर्षों से सक्रिय हैं ।)

बुधवार, 24 अप्रैल 2019

भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर, आम चुनाव 2019, प्रजातंत्र, सोशल मीडिया और मतदान

भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर, आम चुनाव 2019, प्रजातंत्र, सोशल मीडिया और मतदान

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महोत्सव यानि भारत के आम चुनाव 2019 में न केवल सर्वाधिक नया कुछ दिख रहा है बल्कि राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनाव आयोग भी जिसका भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। वह है संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया।

इस विषय पर केंद्रित मेरा यह आलेख आज के 24, अप्रैल 2019 के प्रजातंत्र अखबार में प्रकाशित हुआ है।

मंगलवार, 23 अप्रैल 2019


आम चुनाव 2019, प्रजातंत्र, सोशल मीडिया और मतदान
भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर
सरमन नगेले
['' सोशल मीडिया प्रजातंत्र का एक सर्वाधिक सक्रिय मित्र और प्रहरी बन गया है।
भारत में संपन्न हुए सौलहवीं लोकसभा चुनाव में, हाल ही में पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में, अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने प्रजातंत्र की सेहत के लिये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है। कहा जा रहा है कि भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर तेजी के साथ आगे बढ़ रहा है। '']
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के महोत्सव यानि भारत के आम चुनाव 2019 में न केवल सर्वाधिक नया कुछ दिख रहा है बल्कि राजनीतिक दलों के साथसाथ चुनाव आयोग भी जिसका भरपूर इस्तेमाल कर रहा है। वह है संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी आधारित सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया । मतलब भारतीय लोकतंत्र का अभिनव अनुभव डिजिटल लोकतंत्र। 2014 के आम चुनाव के सभी चरणों में सर्वाधिक 66.48 फीसदी मतदान हुआ है। इसके पहले का सर्वाधिक मतदान 1984 में 64.01 प्रतिशत दर्ज किया गया था। कुल मिलाकर सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने में अहम भूमिका 2014 के चुनाव में निभाई है और इस बार के चुनाव में भी उससे अधिक व्यापक पैमाने पर एवं प्रभावी ढंग से निभाएगा। ऐसा सोशल मीडिया के उपयोग के कारण प्रतीत होता है। 
निर्वाचन आयोग कई तरह के अत्याधुनिक तकनीकी माध्यमों का इस्तेमाल कर रहा है।  चुनाव आयोग ने इंटरनेट के जरिए देश के हर बूथ को जोड़कर और मिनटों में हर सूचना देश के एक कोने से दूसरे कोने में पहुंचाने का भी इंतजाम किया था। इस बार भी कर रहा है। 
पिछले आम चुनाव में चुनाव आयोग, राजनैतिक दलों ने सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया का व्यापक पैमाने पर उपयोग किया। इससे मतदान का प्रतिशत ऐतिहासिक रूप से बढ़ा। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने सजगता के साथ मतदान में भागीदारी की। इस बार इसका दखल अत्याधिक इसलिए दिख रहा है। क्यो कि इसकी अपनी एक डिजिटल सोसायटी बन गई है और नई नई टेक्नॉअलाजी एवं उपकरण आ गए हैं।   
सोशल मीडिया आज एक शक्तिशाली विकल्प के रूप में ऐसे लोग की आवाज बन गया है जिनकी आवाज या तो नहीं थी या अनसुनी कर दी जाती थी। आज शक्तिशाली विचारों को व्यापक रूप से फैलाने के लिये सोशल मीडिया एक शक्तिशाली मंच के रूप में उपयोग हो रहा है। विचारों के फैलाव के साथ ही सोशल मीडिया बड़े सामाजिक परिवर्तनों और सोच में बदलाव का कारण बन रहा है। इस दृष्टि से सोशल मीडिया प्रजातंत्र का एक सर्वाधिक सक्रिय मित्र और प्रहरी बन गया है। सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने अपना अलग समुदाय और विशिष्ट नागरिकता की स्थिति बना ली है। सोशल मीडिया से जुड़े नागरिकों ने प्रजातांत्रिक प्रक्रिया में दबाव समूह के रूप में कार्य करने की संस्कृति भी विकसित कर ली है। वे न सिर्फ मत निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं बल्कि प्रजातंत्र को भी मजबूत करने का काम कर रहे हैं।
वैसे सोशल मीडिया का उद्भव आईटी और इंटरनेट से हुआ है। मुख्य रूप से वेबसाइट, न्यूज पोर्टल, सिटीजन जर्नलिज्म आधारित वेबसाइट- ई-मेल, ब्लॉग, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइटस, जैसे फेसबुक, माइक्रो ब्लागिंग वेबसाइट, ट्विटर, यूट्यूब, फ्लिकर, टम्बलर, स्टेमबेलपोन, लिंक्डइन, गूगल प्लस, इंस्टाग्राम, ब्लॉग्स, फॉरम, चैट व्हाट्सअप आदि सोशल मीडिया का हिस्सा है। सोशल मीडिया के विशेषज्ञ मोबाइल मीडिया को भी सोशल मीडिया का रूप मानते हैं जैसे एसएमएस, एमएमएस, मोबाइल वेबसाइट, मोबाइल एप, वीडियो लिंक, चेट, मोबाइल के माध्यम से वॉयस कॉल, वीडियो चेट और मोबाइल रेडियो आदि।
भारत में तेजी से मोबाईल यूजर,इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या बढ़ रही है। इसके साथ ही सोशल मीडिया पर सक्रियता भी बढ़ रही है। जल्दी ही भारत अमेरिका से आगे निकल जायेगा। ऐसी स्थिति निर्मित हो गई है। भारत में संपन्न हुए सौलहवीं लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया और मोबाईल मीडिया ने प्रजातंत्र की सेहत के लिये अपनी उपयोगिता सिद्ध कर दी है। इससे स्पष्ट है कि सोशल मीडिया के उपयोगकर्ताओं ने सजगता के साथ मतदान में भागीदारी की।
राजनैतिक वक्तव्यों और त्वरित टिप्पणियों की ट्विटर पर धूम मची रही। सरकारी और गैर-सरकारी मीडिया ने ट्विटर पर सबसे तेज चुनाव नतीजे के ट्रेंड को बताया।
आम चुनाव में मतदान का प्रतिशत बढ़ना इस बात को सिद्ध करता है कि चुनाव आयोग ने भी सोशल मीडिया के जरिए स्वीप कार्यक्रम चलाया और मत के महत्व को समझाया इससे मतदाताओ में जागरूकता बढ़ी और बड़ी संख्या में मतदान हुआ। इस बार भी चुनाव आयोग सोशल मीडिया पर मतदान प्रतिशत बढाने के लिए लगातार प्रभावी ढंग से नवाचार कर रहा है। राज्य और जिला निर्वाचन अधिकारियों ने तो बकायदा स्वीप के नाम से सोशल मीडिया पर अकाउंट खोले हुए हैं। जिन पर भी प्रतिदिन नए नए तरह की एक्टिविटी कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर केन्द्रित कार्याशालाएं की जा रही है। विभिन्न राज्यों के सीईओ कार्यालय में स्वीप गतिविधियों का कार्य देख रहे अधिकारी फेसबुक लाइव के जरिए आम मतदाता से जुड रहे हैं और उन्होंने चुनाव प्रक्रिया से संबंध में जागरूक कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों और मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी समेत सभी स्तरों पर निर्देश दिये हैं। चुनाव आयोग ने नामांकन भरने के दौरान उम्मीदवारों से सोशल मीडिया की जानकारी मांगी है, इसके आधार पर चुनाव आयोग मॉनिटरिंग करेगा। पिछले बार के चुनाव के मुकाबले इस बार चुनाव आयोग सोशल मीडिया की मॉनीटरिंग करने के लिए अधिक सक्रिय है और नए नए इंतजाम भी किये जा रहे हैं। इस मर्तबा सोशल मीडिया मंचों के भारत स्थित प्रतिनिधियों और सोशल मीडिया विशेषज्ञों के साथ मिलकर भारत निर्वाचन आयोग ने एक डेडीकेटेड व्यवस्था मॉनीटरिंग के लिए की है। भारत निर्वाचन आयोग के निर्देशानुसार राज्यों में भी सोशल मीडिया के क्षेत्र में दक्ष संस्थाओं का उपयोग किया जा रहा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव में एवं भारत के आम चुनाव 2014 और हाल ही में पांच राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों में सोशल मीडिया की नई भूमिका सामने आई है। जैसे ही भारत में सोशल मीडिया के उपयोग की समझ बढ़ी तो चुनावों में इसका असर दिखा। चुनाव आयोग ने युवाओं की सूची को भांपकर ही तो न केवल अनेक स्लोगन गढ़ बल्कि सोशल मीडिया पर केन्द्रित कई वीडियो फिल्म बनवाई। इसके साथ ही चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सुविधा के लिए मोबाईल आधारित फीचर्स का उपयोग भरपूर किया। चुनाव आयोग 20 मार्च 2019 के ट्विटर पर भी आ गया है। चुनाव आयोग के आईटी आधारित नवाचार जैसे नागरिकों को चुनाव अवधि के दौरान आदर्श आचार संहिता के उलंघन की जानकारी देकर मॉडल कोड पर रिपोर्ट करने के लिए एक आनलाइन एप शुरू किया है जो सीविजिल एप के नाम से जाना जाता है। क्यू मैनेजमेंट सिस्टम, ईवीएम प्रंबधन प्रणाली, उम्मीदवार नामांकन, अनुमति, मतदान दिवस, मतगणना और परिणाम प्रसार प्रणाली, ईआरओ नेट, राष्ट्रीय मतदाता सेवा पोर्टल, नागरिकों को अपनी शिकायतें प्रस्तुत करने के लिए सिंगल विंडो कामन इंटरफेस, इलेक्ट्रानिक रूप से प्रेषित पोस्टल बैलट सिस्टम ईटीपीबीएस, चुनाव कार्य में संलग्न लोगों के लिए आब्जर्वर पोर्टल, ईसीआई आथेंटिकेटर एप जैसी आईटी आधारित सुविधाएं इस चुनाव में आम मतदाताओं और चुनाव कार्य से जुडे हुए लोगों को ​चुनाव आयोग द्वारा उपलब्ध कराई जा रही है।
भारत में आम चुनाव 195152 से 2014 तक का मतदान प्रतिशत
पहला चुनाव 195152 कुल मतदान प्रतिशत 61.16
दूसरा चुनाव 1957 कुल मतदान प्रतिशत 63.73
तीसरा चुनाव 1962 कुल मतदान प्रतिशत 55.42
चौथा चुनाव 1967 कुल मतदान प्रतिशत 61.33
पांचवा चुनाव 1971 कुल मतदान प्रतिशत 55.27
छठा चुनाव 1977 कुल मतदान प्रतिशत 60.49
सातवां चुनाव 1980 कुल मतदान प्रतिशत 56.92
आठवां चुनाव 198485 कुल मतदान प्रतिशत 64.01
नौवां चुनाव 1989 कुल मतदान प्रतिशत 61.95
दसवां चुनाव 199192 कुल मतदान प्रतिशत 55.88
ग्यारवां चुनाव 1996 कुल मतदान प्रतिशत 57.94
बारहवां चुनाव 1998 कुल मतदान प्रतिशत 61.97
तेहरवां चुनाव 1999 कुल मतदान प्रतिशत 59.99
चौदहवां चुनाव 2004 कुल मतदान प्रतिशत 58.07
पंद्रहवां चुनाव 2009 कुल मतदान प्रतिशत 58.19
सोलहवां चुनाव 2014 कुल मतदान प्रतिशत 66.48

आज एक सबसे बड़ी बात यह है कि सोशल मीडिया के कारण सूचनाओं पर से विशेषाधिकार हट गया है। बंधन समाप्त हो गये हैं। इसलिये हर सूचना या तो नेट पर उपलब्ध है या आसानी से हासिल की जा सकती है। चूंकि जानकारी हासिल करना सरल हो गया है इसलिए अपनी अभिव्यक्तियां देना और मत व्यक्त करना और भी सरल और तेज हो गया है। मत का प्रसार तेज हो गया है, इसलिये निर्णय की प्रक्रिया भी तेज हो गई है। लब्बोलुआब यह है कि चुनाव में सोशल मीडिया की भूमिका ज्यादा से ज्यादा प्रासांगिक होती जा रही है। हम सब डिजिटल लोकतंत्र की ओर कदम बढा रहे हैं।
एक रिसर्च के मुताबिक सोशल मीडिया में अन्य मीडिया की तुलना में न केवल अधिक विस्तार किया है बल्कि जनमानस के उपर गहरी पेठ बनाता जा रहा है। वैसे रेडियो को कुल 78 साल हुए हैं जबकि टीवी को 19 साल लेकिन इन सब माध्यम को पीछे छोड़ते हुए सोशल मीडिया ने अपने 14 से 15 साल के अल्प समय में 80 गुना अधिक विस्तार किया है जितना अभी तक किसी मीडिया ने नहीं किया। यह प्रमाणित करता है कि भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर तेजी के साथ आगे बढ रहा है।
(लेखक-  न्यूज पोर्टल एमपीपोस्ट डॉट कॉम के संपादक हैं।)

मेरे बारे में

सरमन नगेले
संपादक
ई-समाचार पत्र
http://www.mppost.org/
http://www.mppost.com
पत्रकारिता - साधनों की शुध्दता के साथ लोकहित के उद्देश्य से सत्य उध्दाटित करने की रचनात्मक प्रक्रिया।
पत्रकार - एक चिंतक, योध्दा और सत्य का रक्षक।
सफलता - उत्कृष्ट होना और बने रहना सफल होने से ज्यादा चुनौतीपूर्ण है।
जन्म - 10 जून 1969 को बुंदेलखण्ड के झांसी शहर के स्व. श्री एम.एल. नगेले एवं श्रीमती शकुन नगेले के मध्यम परिवार में। शिक्षा - हिन्दी में स्नातक,
कैशोर्य की देहरी लांघते ही मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में पदार्पण।
जीवन यात्रा - रचनात्मक एवं राजनीतिक लेखन की ओर छात्रावस्था से ही रूझान रहा।
म.प्र. के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री सीडी संस्करण प्रथम एवं द्वितीय। सामाजिक-आर्थिक विषयों पर लेखन की दृष्टि से भारत सरकार ने अंडमान निकोबार द्वीप समूह, केरल, तामिलनाडू जैसे राज्यों का अध्ययन भ्रमण कराया। इस यात्रा तथा मधयप्रदेश के महाकौशल क्षेत्र की सामाजिक आर्थिक अधोसंरचना का अधययन भ्रमण के दौरान सृजित हुई।
''माया'' राष्ट्रीय राजनैतिक पत्रिका में कुछ मापदण्ड निर्धारित कर मध्यप्रदेश के टाँप टेन एम.एल.ए. चयनित कर विधायकों पर केन्द्रित विशेषांक का सृजन। अब तक के मप्र विधानसभा के अध्यक्षों पर केन्द्रित सीडी का सृजन। सिंहास्थ 2004 पर केन्द्रित सीडी का सृजन। आईटी स्टेटस इन मध्यप्रदेश, आईटी फॉर डव्लेपमेंट, ई@मध्यप्रदेश विशेषांक का संपादन। मध्यप्रदेश में ई-सेवाएं एक नजर में। प्रवासी भारतीय दिवस 7-9 जनवरी, 2008 पर विशेषांक का संपादन।
लगभग दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय - इंटरनेट मीडिया एक नये स्वरूप में सामने आ रहा है। हिन्दी भाषी राज्यों में इंटरनेट पत्रकारिता का शैशवकाल है। भारत में इंटरनेट पत्रकारिता की संभावनाओं को देखते हुए http://www.mppost.org/ पर मध्यप्रदेश का पहला इंटरनेट हिन्दी समाचार पत्र एक जनवरी 2005 से शुरू किया।
चंडीगढ़, दिल्ली, हरियाणा, छत्तीसगढ़, केरल, महाराष्ट्र, उड़ीसा, असाम, पंजाब, तमिलनाडू, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल और गुजरात की आई.टी. नीतियों का अध्ययन, इंटरनेट पत्रकारिता से जुड़े लोगों, संस्थाओं प्रमुख, आई.टी. कंपनियों, विशेषज्ञों से सतत् संवाद। इंटरनेट पर आयोजित अंर्तराष्ट्रीय सेमीनार डब्ल्यू3सी में मध्यप्रदेश की ओर से प्रतिनिधित्व किया। साऊथ एषिया की सबसे बड़ी आई.टी. प्रर्दशनी एवं सेमीनार जीटेक्स इंडिया में भाग लिया। साऊथ एशिया के सबसे बड़े संचार एवं आई.टी. इवेंट कर्न्वजेंस इंडिया- 2006 में शामिल हुए। प्रवासी भारतीय दिवस में विशेष रूप से मीडिया प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया। म.प्र. सरकार द्वारा आयोजित आई.टी. समिट में हिस्सा लिया।
पत्रकारिता -
बीबीसी- वेबदुनिया द्वारा आयोजित ऑन लाइन पत्रकारिता कार्यशाला में भागीदारी। राष्ट्रीय सहारा, दिल्ली, अक्षर भारत, दिल्ली, राज्य की नई दुनिया, भोपाल जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में संवाददाता के रूप में कार्य। म.प्र. के प्रमुख दैनिक नवीन दुनिया जबलपुर के भोपाल ब्यूरो प्रमुख के रूप में संबध्द रहे। महाकौशल के प्रमुख सांध्य दैनिक सीटाइम्स के भोपाल ब्यूरो प्रमुख के रूप में संबध्द रहे। राष्ट्रीय राजनैतिक पत्रिका ''माया'' के मध्यप्रदेश विशेष संवाददाता के रूप में संबध्द रहे। दूरदर्शन, आकाशवाणी के लिये संवाद लेखन, विधानसभा कार्यवाही की समीक्षात्मक रिर्पोट लेखन। भोपाल दूरदर्शन से प्रसारित लाइव फोन इन कार्यक्रम शुभ-शाम में 17 अगस्त 2009 को विषय विशेषज्ञ के रूप में वेब जर्नलिज्म में भविष्य का प्रसारण।
संप्रति -
संपादक - एमपीपोस्ट इंटरनेट समाचार एवं विचार सेवा और वेबसाइट http://www.mppost.org/
ब्लाग - http://journocrat.blogspot.com/
समन्वयक, सेन्ट्रल प्रेस क्लब, भोपाल। उपाध्यक्ष, ब्यूरो चीफ एसोशिएशन, भोपाल। संस्थापक, सदस्य एवं संचालक राजधानी पत्रकार गृह निर्माण सहकारी संस्था मर्यादित, भोपाल, सदस्य- मध्यप्रदेश जर्नलिस्ट यूनियन (जम्प)। आजीवन सदस्य, मध्यप्रदेश विधानसभा पुस्तकालय, भोपाल। सदस्य, इंटरनेट आधारित सेवा सॉल्यूषन एक्सचेंज। अनेक राष्ट्रीय एवं प्रांतीय सामाजिक एवं रचनात्मक संगोष्ठियों में हिस्सा लिया।
पत्राचार का पता
एफ-45/2,
साऊथ टी.टी. नगर, भोपाल म.प्र.
462 003. दूरभाष - (91)-755-2779562 (निवास)
098260-17170 (मोबाईल)